उत्तराखंड: पारंपरिक बालगीतों की पहली किताब घुघूती बासूती, बच्चों के स्कूल पाठ्यक्रम में हुई शामिल

घुघूति बासुति उत्तराखंड के पारम्परिक बालगीतों की पहली किताब है। जो पर्वतीय गांवों में बच्चों को सुनाए जाने वाले गीतों का संग्रह है।

घुघूती बासूती को पाठ्यक्रम में शामिल किया

चंपावत (टनकपुर) से जुड़ी खबर है। अब स्कूली पाठ्यक्रम में उत्तराखंड के परंपरागत बालगीतों के संग्रह हेम पंत की पुस्तक घुघूती बासूती को भी शामिल किया जा रहा है। स्थानीय विजन पब्लिक स्कूल ने इस पुस्तक को आगामी शिक्षा सत्र से अपने पाठ्यक्रम में शामिल किया है। इस पुस्तक में परंपरागत लोरी, पर्वगीत, क्रीड़ागीत एवं पढ़ाई में सहायक गीतों का बेहतर संकलन है, जो नर्सरी एवं प्राथमिक के बच्चों को अपने समाज और प्रकृति से जोड़ने की सीख देते हैं।

हेम पन्त द्वारा है संकलित

हेम पन्त द्वारा संकलित किताब ‘घुघूति बासूती’ अब स्कूली बच्चों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बन गई है। उत्तराखंड के बालगीत एवं क्रीडागीतों की किताब ‘घुघूति बासूती’ पिछले लम्बे अरसे से राज्यभर में चर्चा का विषय रही है। इस किताब को राज्यभर में ख़ूब सराहा गया।

इस शब्द के साथ लगभग प्रत्येक कुमाऊँनी बच्चे की और माँ की यादें भी जुड़ी होती हैं ।

हर कुमाऊँनी माँ लेटकर , बच्चे को अपने पैरों पर कुछ इस प्रकार से बैठाकर जिससे उसका शरीर माँ के घुटनों तक चिपका रहता है, बच्चे को झुलाती है और गाती है :
घुघूती बासूती
माम काँ छू =मामा कहाँ है
मालकोटी =मामा के घर
के ल्यालो =क्या लाएँगे
दूध भाती =दूध भात
को खालो = कौन खाएगा
फिर बच्चे का नाम लेकर …….. खालो ,……. खालो कहती है और बच्चा खुशी से किलकारियाँ मारता है ।

इसके अलावा यहां एक चिड़िया पाई जाती है जिसे कहते हैं घुघूति। एक सुन्दर सौम्य चिड़िया।

घुघूति का कुमाऊँ के लोकगीतों में विशेष स्थान है।
कुछ गीत त
घूर घुघूती घूर घूर
घूर घुघूती घूर,
मैत की नौराई लागी
मैत मेरो दूर ।
मैत =मायका, नौराई =याद आना, होम सिक महसूस करना।

इसके अलावा अन्य पंक्तियां भी है

घुघूती बासूती
भै आलो मैं सूती ।
या भै भूक गो, मैं सूती ।
भै = भाई
आलो=आया
भूक गो =भूखा चला गया
सूती=सोई हुई थी

यह एक लोक कथा का अंश है। जो कुछ ऐसे है, एक विवाहिता से मिलने उसका भाई आया। बहन सो रही थी सो भाई ने उसे उठाना उचित नहीं समझा। वह पास बैठा उसके उठने की प्रतीक्षा करता रहा। जब जाने का समय हुआ तो उसने बहन के चरयो (मंगलसूत्र) को उसके गले में में आगे से पीछे कर दिया और चला गया। जब वह उठी तो चरयो देखा। शायद अनुमान लगाया या किसी से पूछा या फिर भाई कुछ बाल मिठाई (अल्मोड़ा, कुमाऊँ की एक प्रसिद्ध मिठाई) आदि छोड़ गया होगा। उसे बहुत दुख हुआ कि भाई आया और भूखा उससे मिले बिना चला गया, वह सोती ही रह गई। वह रो रोकर यह पंक्तियाँ गाती हुई मर गई। उसने ही फिर चिड़िया बन घुघुति के रूप में जन्म लिया। घुघुति के गले में, चरयो के मोती जैसे पिरो रखे हों, वैसे चिन्ह होते हैं। ऐसा लगता है कि चरयो पहना हो और आज भी वह यही गीत गाती है:
घुघूती बासूती
भै आलो मैं सूती।