आज पेशावर कांड की 92वीं बरसी, इस मौके पर इतिहास के महान नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली को किया गया याद

आज 23 अप्रैल है। पेशावर कांड आज ही के दिन 1930 को घटित हुआ । 23 अप्रैल 1930 को पेशावर में अंग्रेजों ने निहत्थे प्रदर्शनकारी पठानों पर गोली चलाने का हुक्म दिया था। आज पेशावर कांड की 92वीं बरसी है। इस मौके पर वीर चंद्र सिंह गढ़वाली को याद किया जा रहा है। पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल थे। पठानों पर हिंदू सैनिकों द्वारा फायर करवाकर अंग्रेज भारत में हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच फूट डालकर आजादी के आंदोलन को भटकाना चाहते थे। लेकिन वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने अंग्रेजों की इस चाल को न सिर्फ भांप लिया, बल्कि उस रणनीति को विफल कर वह इतिहास के महान नायक बन गए।

पेशेवर कांड की बरसी-

चंद्र सिंह का जन्म 25 दिसंबर 1891 को जलौथ सिंह भंडारी के घर पर ​हुआ था। 3 सितंबर 1914 को वे सेना में भर्ती हुए, 1 अगस्त 1915 को उन्हें सैनिकों के साथ अंग्रेजों ने फ्रांस भेज दिया। 1 फरवरी 1916 को वे वापस लैंसडौन आ गये। इसके बाद 1917 में उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों की ओर से मेसोपोटामिया युद्ध व 1918 में बगदाद की लड़ाई लड़ी। प्रथम विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों ने उन्हें हवलदार से सैनिक बना दिया। चंद्र सिंह की सेना से छुट्टी के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से मुलाकात हुई। 1920 में चंद्र सिंह को बटालियन के साथ बजीरिस्तान भेजा गया। वापस आने पर उन्हे खैबर दर्रा भेजा गया और उन्हें मेजर हवलदार की पदवी भी मिल गई। इस दौरान पेशावर में आजादी की जंग चल रही थी। अंग्रेजों ने चंद्र सिंह को उनकी बटालियन के साथ पेशावर भेज दिया और इस आंदोलन को कुचलने के निर्देश दिए।

पेशावर कांड ने चंद्र सिंह और गढ़वाल बटालियन को ऊंचा दर्जा दिलाया-

23 अप्रैल 1930 को आंदोलनरत जनता पर फायरिग का हुक्म दिया गया, तो चंद्र सिंह ने ‘गढ़वाली सीज फायर’ कहते हुए निहत्थों पर फायर करने के मना कर दिया। आज्ञा न मानने पर अंग्रेजों ने चंद्र सिंह व उनके साथियों पर मुकदमा चलाया। उन्हें सजा हुई व उनकी संपत्ति भी जब्त कर ली गई। अलग-अलग जेलों में रहने के बाद 26 सितंबर 1941 को वे जेल से रिहा हुए। पेशावर कांड ने चंद्र सिंह और गढ़वाल बटालियन को ऊंचा दर्जा दिलाया। चारों तरफ चंद्रसिंह की चर्चा होने लगी। इसके बाद इन्हें चंद्र सिंह गढ़वाली के नाम से जाना जाने लगा। जब वो जेल से छूट कर बाहर आये तो उन्होंने महात्मा गांधी के साथ मिलकर भारत की आजादी के लिए आन्दोलन छेड दिया था। भारत की आजादी के पश्चात भी वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ने उत्तराखंड और गढ़वाल में व्याप्त अनेक कुरीतियों से जंग लड़ी। पृथक उत्तराखंड राज्य की मांग के लिए भी वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली आजीवन लड़ते रहे और उनका ये भी मानना था कि पहाड़ी राज्य की राजधानी भी पहाड़ में ही होनी चाहिए। 1 अक्टूबर 1979 को वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली का लम्बी बिमारी के बाद देहान्त हो गया। 1994 में भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया गया। और आज कई सड़कों और योजनाओं के नाम भी इनके नाम पर रखे गए हैं।