उत्तराखंड से जुड़ी दुखद खबर सामने आई है। उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकगायक प्रह्लाद मेहरा का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रह्लाद मेहरा ने हल्द्वानी के कृष्णा अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके निधन पर संगीत जगत में शोक की लहर है।
उत्तराखंड की संस्कृति और सभ्यता को बचाने के लिए गाए कई गीत
प्रह्लाद मेहरा का जन्म 4 जनवरी 1971 को उत्तराखंड के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के ग्राम चामी भैंसकोट भरोडा के मुनस्यारी विकास खंड में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह नैनीताल जिले के बिन्दुखत्ता गांव पहुंच गए। यहां उन्होंने 1987 में सांस्कृतिक मंच तैयार किया और संगीत के क्षेत्र में काम करने का बहुत मौका मिला। कई सांस्कृतिक दलों के साथ काम किया। धीरे-धीरे उनकी पहचान उत्तराखंड सहित अन्य जगहों पर होने लगी। प्रह्लाद मेहरा ने उत्तराखंड की संस्कृति और सभ्यता को बचाने के लिए कई गीत गाए है।
गाए हिट कुमाऊंनी गीत
उनके कई हिट कुमाऊंनी गाने हैं। इसमें पहाड़ की चेली ले, दु रवाटा कभे न खाया, ओ हिमा जाग…का छ तेरो जलेबी को डाब, चंदी बटना दाज्यू, कुर्ती कॉलर मां मेरी मधुली, एजा मेरा दानपुरा जैसे सुपर हिट गानों को अपनी आवाज देकर वह उत्तराखंड के लाखों लोगों के दिलों में छा गए। जिसके बाद कुमाऊनी गानों में अपनी परफॉर्मेंस देकर वह उत्तराखंड म्यूजिक इंडस्ट्री के एक सीनियर स्टार सिंगर बन गए।