देहरादून: उत्तराखंड से जुड़ी खबर सामने आई है। उत्तराखंड हिमालय में फलों के उत्पादन और बाजार के सवाल पर धाद संस्था की ओर से हरेला गांव-धाद का वार्षिक आयोजन माल्टा के महीना शुरू हो गया। मंगलवार को लैंसडौन चौक स्थित दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में अभियान की शुरूआत की गई।
सरकार को चाहिए कि दीर्घकालिक योजना तैयार करें
इस मौके पर विशेषज्ञों ने कहा कि सरकार को चाहिए कि दीर्घकालिक योजना तैयार करें ताकि माल्टा उत्पादकों के चेहरे पर खुशी हो। एप्पल मिशन की तरह सिट्रस मिशन को उत्तराखंड में लाॅन्च किया जाना चाहिए।
एक महीने तक चलने वाले इस अभियान में विभिन्न जिलों में लोगों के साथ चर्चा कर माल्टा की महत्ता और बाजार का सही मूल्य के लिए जागरूक किया जाएगा। विशेषज्ञों की ओर से सुझाव भी दिए जाएंगे। साथ ही बागवानी की आर्थिकी पर भी गहनता से चर्चा हुई।
इस वर्ष भी माल्टा उत्पादकों के चेहरे अच्छे भाव न मिल पाने के कारण उदास
गढ़वाल और कुमाऊं मंडल विकास निगम को स्पेशल रिवाल्विंग फंड देकर माल्टा बेचने, रुद्रप्रयाग के तिलवाड़ा में गढ़वाल मंडल विकास निगम की ओर से माल्टा फल के प्रोसेसिंग करने, अल्मोड़ा के मटैला में कोल्ड स्टोरेज स्थापित करने, किसानों को कलेक्शन सेंटर पर पहुंचाने पर सात से 10 रुपये प्रतिकिलो समर्थन मूल्य देने की बात समय समय पर हुई। गत वर्ष उत्तराखंड के माल्टा से गोवा में बनेगी वाइन, माल्टा को जीआई टैग आदि इतने सारे सरकारों के प्रयास, दावे के बाद भी इस वर्ष भी माल्टा उत्पादकों के चेहरे अच्छे भाव न मिल पाने के कारण उदास हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि दीर्घकालिक योजना तैयार करें ताकि माल्टा उत्पादकों चेहरे पर खुशी हो। उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों में 1000 मीटर से 2000 मीटर तक की ऊंचाई वाले स्थानों में माल्टा के बाग देखने को मिलते हैं। उद्यान विभाग के फल उत्पादन के वर्ष 2023 के आंकड़ों के अनुसार राज्य में नींबू वर्गीय फलों (माल्टा संतरा कागजी नींबू)के अंतर्गत क्षेत्र फल 9992 हेक्टेयर और उत्पादन 36912 मैट्रिक टन दर्शाया गया है जबकि 2019-20 के फल उत्पादन आंकड़ों में राज्य में नींबू वर्गीय फलों के अंतर्गत कुल क्षेत्रफल 21739 हेक्टेयर जबकि उत्पादन 91177 मैट्रिक टन रहा। राज्य सरकार ने विगत वर्ष माल्टा के सी-ग्रेड फलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य नौ रुपया प्रति किलो निर्धारित किया, जो कि बहुत ही कम है। इस दर पर माल्टा फल उत्पादक जनपदों में बनाए गए कलेक्शन सेंटरों तक माल्टा फल लाने को तैयार नहीं है। बताया कि जहां विदेशी माल्टा देशभर में 200-250 रुपये प्रतिकिलो बिक रहा है वहीं राज्य का माल्टा 30-35 रुपये तक ही पहुंच पाया है। राज्य सरकार इसे नौ रुपये के दर से क्रय कर रही है। किसान बोरियों में माल्टा को मंडियों में भेजते हैं। राज्य का मार्केटिंग बोर्ड आजतक माल्टा के लिए गत्ते के डिब्बे उपलब्ध नहीं करा पाया है। यदि फल बाेरियों में आएगा तो बिक्री भी उसी हिसाब से होगी। ऐसे में बागवानों और स्वयं सेवी संस्थाओं को साथ मिलकर इसके विपणन पर ध्यान देने की जरूरत है।
दी यह जानकारी
केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल के उद्यानिकी विभाग डा. तेजपाल बिष्ट ने बताया कि माल्टा के लिए राज्य में वातावरण बेहतर है। ऊंचाई के आधार पर देहरादून से चमोली और उत्तरकाशी में इसकी अधिकता है। आज जरूरत है तो मार्केटिंग और प्रोसेसिंग की। आजकल राज्य में बहुतायात में माल्टा है लेकिन, बाजार में दाम किसानों के लिए ज्यादा संतोषजनक नहीं हैं। ऐसे में एप्पल मिशन की तरह सिट्रस मिशन को उत्तराखंड में लाॅन्च करना चाहिए। माल्टा का जूस को सालभर तक पी सकें इसपर भी कार्य करने की जरूरत है। जूस के अलावा माल्टा का बाहरी छिलका में तेल व दवा बनाई जा सकती है। मध्यभाग में स्थित सफेद छिलके से शुगर कैंडी बन सकती है। उत्तराखंड में हमें एक-दो आइडल लोकेशन चयनित करने होंगे ताकि बेहतर कलेक्शन और लंबे समय तक माल्टा को रखा जा सके।
रहें उपस्थित
इस मौके पर अवधेश शर्मा, दिनेश भंडारी, दिनेश बौड़ाई, शेर सिंह, वीरेन्द्र सिंह असवाल, लोकेश ओहरी, रितु भारद्वाज, राजेश नेगी, पूजा चमोली, हिमांशु आहूजा, गणेश उनियाल, वीरेन्द्र खंडूरी, बिजू नेगी, बी एस खोलिया, मानवेन्द्र सिंह बर्तवाल, रोशन धस्माना, गजेंद्र भंडारी, महाबीर सिंह रावत, देवेन्द्र कांडपाल आदि उपस्थित रहें।
हरेला गांव है सामाजिक पहल
धाद संस्था का हरेला गांव गांव के सवाल के पक्ष में यह सामाजिक पहल है। जिसमें खाली हो रहे गांव और खेतों के बंजर होने के सवाल पर सामाजिक सहभागिता के साथ काम किया जाता है। हरेला गांव के साथी पहाड़ के गांव के साथ खड़ा होने के साथ उसकी बेहतरी के लिए अपने सुझाव देते हैं। साथ ही हम इसमें गांव के उत्पादन, उसकी चुनौतियों और उसके बाजार के सवाल पर अलग-अलग गतिविधियों का आयोजन भी करते हैं।