भारत सरकार ने भूकंपीय वेधशालाओं की संख्या बढ़ाने का निर्णय लिया है, जिससे देशभर में वेधशालाओं का एक सघन नेटवर्क स्थापित हो सके और हर क्षेत्र समय से पहले भूकंप से बचाव की तैयारी कर सके। विज्ञान और प्रौद्योगिकी, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष विभाग में केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत में इस साल के अंत तक 35 भूकंपीय वेधशालाएं स्थापित की जाएंगी। उन्होंने आगे कहा कि अगले पांच वर्षों में ऐसी 100 और वेधशालाएं केंद्र सरकार द्वारा देश में बनाई जाएंगी।
देश में 65 साल में सिर्फ 115 वेधशालाएं ही थीं
इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ जियोमैग्नेटिज्म एंड एरोनॉमी (IAGA) – इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ सीस्मोलॉजी एंड फिजिक्स ऑफ द अर्थ इंटीरियर (IASPEI) के संयुक्त वैज्ञानिक सभा के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए केंद्रिय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि आजादी के बाद से पिछले साढ़े छह दशकों यानि 65 साल के इतिहास में, देश में केवल 115 भूकंपीय वेधशालाएं थीं, लेकिन अब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, देश में भूकंपीय वेधशालाओं की संख्या में एक बड़ी बढ़ोतरी होने जा रही है।
बचाव ही सिर्फ एकमात्र तरीका है
आए दिन हम सुनते रहते हैं कि इस राज्य में भूकंप के झटके महसूस किए गए। भारतीय उपमहाद्वीप, भूकंप, तूफान, बाढ़, सुनामी और भूस्खलन के लिए एक हाई रिस्क क्षेत्र है। सेस्मिक जोनिंग मैपिंग के हिसाब से भारत को 4 जोन में बांटा गया है। ये जोन भूकंप की तीव्रता के अनुमान के आधार पर बांटे गए हैं। भारत जोन 2, जोन 3, जोन 4 और जोन 5 में विभक्त है। जोन 2 वाला क्षेत्र कम खतरनाक और जोन 5 वाला क्षेत्र अत्यधिक खतरनाक होता है। भूकंप हमेशा अपने साथ बर्बादी लेकर आता है। भूकंप का आना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसे रोकना मानव के बूते से बहार है। बचाव ही सिर्फ एकमात्र तरीका है। इस प्रक्रिया में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है भूकंप आने के समय का सटीक पूर्वानुमान लगा पाना। यह काम भूकंपीय वेधशालाएं करती हैं।
हिमालय के आसपास आते हैं बड़े भूकंप
भारत की बढ़ती आबादी तथा इसमें व्यापक रूप से लगातार बढ़ रहे अवैज्ञानिक निर्माण और असंयमित प्राकृतिक संसाधनों का दोहन की वजह से भारतीय उपमहाद्वीप में भूकंपों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। पिछले 15 सालों के दौरान, देश ने 10 बड़े भूकंपों को झेला है, जिसके कारण देश की संपत्ति के साथ 20,000 से अधिक लोगों की जानें गई हैं। देश के वर्तमान भूकंपीय क्षेत्र मानचित्र के अनुसार, भारत की भूमि का 59% हिस्सा सामान्य से गंभीर भूकंपीय खतरों की चेतावनी के अधीन है, जिसका अर्थ यह है कि भारत में 7 और उससे अधिक तीव्रता के झटकों का खतरा रहता है। वास्तव में संपूर्ण हिमालय क्षेत्र को 8.0 की तीव्रता वाले बड़े भूकंपों के अनुकूल माना जाता है। 50 साल की अपेक्षाकृत अल्पावधि में 4 ऐसे बड़े भूकंप आ चुके हैं, जिन्होंने इस बात को सिद्ध किया है। 1897 शिलांग में 8.7 तीव्रता का, 1905 में कांगड़ा 8.0 तीव्रता का, 1934 में बिहार-नेपाल बॉर्डर पर 8.3 तीव्रता का, और 1950 में असम-तिब्बत बॉर्डर में 8.6 तीव्रता का भूकंप आया था। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार वैज्ञानिक प्रकाशनों में हिमालयी क्षेत्र में एक बड़े शक्तिशाली भूकप के आने की संभावना के बारे में चेतावनी दी है, जिनसे भारत में करोड़ों लोगों की जिंदगी पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।