उत्तराखंड: प्रदेश में प्रतिवर्ष लगभग 60 से ज्यादा व्यक्ति वन्य पशुओं के हमले में मारे जाते हैं। इनमें से करीब आधे व्यक्तियों की मृत्यु का कारण बाघ व गुलदार रहे हैं। यह खुलासा सूचना अधिकार के तहत जारी किया गया है। आरटीआई के तहत वन विभाग से पिछले दस वर्षों में मनुष्य और वन्यजीव संघर्ष के आंकड़ों की रिपोर्ट मिली है।जिसमे खुलासा हुआ है कि उत्तराखंड में जानवरों के हमले में इंसानों की मृत्यु का औसत महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, कर्नाटक जैसे बड़े प्रदेशों से भी अधिक है। इसके अलावा राज्य में 45 गुलदार और 4 बाघ आदमखोर घोषित करने के बाद मार दिए गए हैं।
2021 में ही अब तक गुलदार 14 लोगों पर हमला करके मौत के घाट उतार चुका है
साल 2017 के बाद से गुलदार के हमलों में जान गंवाने वाले व्यक्तियों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हुई है। केवल 2021 में ही अब तक गुलदार 14 लोगों पर हमला करके मौत के घाट उतार चुका है। एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 603 लोगों की मौत जंगली जानवरों के हमलों से हुई और सबसे अधिक 236 लोगों को गुलदार ने अपना शिकार बनाया है। दूसरी ओर इंसानों की जान लेने में गुलदार के बाद हाथी का नंबर आता है। सर्वे के मुताबिक 127 लोग हाथी के हमले में अब तक मारे जा चुके हैं।
गुलदार के इंसानों पर हमले भी ज्यादा बढ़ रहे हैं।
राज्य में गुलदारों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जिसकी वजह से गुलदार के इंसानों पर हमले भी ज्यादा बढ़ रहे हैं। पिछले साल भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा किये गए एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में 839 गुलदार हैं। पशुओं के अवैध व्यापार पर नजर रखने वाली संस्था ट्रैफिक इंडिया के अनुसार राज्य में गुलदार ही सबसे ज्यादा मारे जा रहे वन्यजीव् हैं। गुलदार का सबसे ज्यादा शिकार, उसकी खाल और हड्डियों के लिए किया गया। पिछले पांच सालों में 140 गुलदारों की खाल, हड्डियां व अन्य अंग तस्करी होते हुए पाये गये हैं।
मौत के घाट उतारा
मनुष्यों पर वन्यजीवों के हमले की दर में इजाफा देखते हुए एक सर्वे किया गया जिसकी रिपोर्ट के अनुसार अब तक गुलदार ने 236, हाथी ने 127, बाघ ने 37, भालू ने 37 और अन्य वन्यजीवों ने 166 लोगों को मौत के घाट उतार है।
जंगली जानवरों के हमलों को कम करने के लिए बड़े स्तर पर हो रहा सर्वे
जंगली जानवरों के हमलों को कम करने के लिए बड़े स्तर पर सर्वे हो रहा है। वन्य वैज्ञानिक हमलों के पीछे वन्यजीवों का व्यवहार व उनकी प्रवृत्ति को समझने की कोशिश कर रहे हैं जिसमें कुछ तथ्य सामने आए हैं। हरिद्वार, नरेंद्रनगर सहित कई अन्य इलाकों में गुलदार व बाघ की रेडियोकॉलर ट्रेकिंग भी चल रही है। गुलदार के हमले का ज्यादा प्रभाव सघन वनों के आसपास के इलाकों में हैं। प्रदेश में बाघ व गुलदार की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन ये देखा गया है कि कुछ वर्षों से बाघ के हमले बहुत कम हो गये हैं।