पिथौरागढ से जुड़ी खबर सामने आई है। पिथौरागढ़ जिले में सोर घाटी के कुमौड़ में आस्था और विश्वास का प्रतीक हिलजात्रा को देखने के लिए बड़ी संख्या में भीड़ उमड़ी। यह हिलजात्रा प्रदेश में विशिष्ट पहचान रखती है। यह आस्था, विश्वास और रोमांच का प्रतीक है।
हजारों की संख्या में उमड़ी भीड़
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बुधवार को कुमौड़ के लोगों ने सुबह मंदिरों में पूजा-अर्चना की।जिसके बाद अपराह्न चार बजे बाद कोट से विभिन्न पात्र एक-एक कर मैदान में आते रहे। गल्या बल्द, बोड़या हौल, बड़ी हौल, नेपाली हौल, हलिया, पुतारियां, दही-ठेकी वाले आदि पात्र आए। इसके लिए बड़ी संख्या में भीड़ उमड़ी। लखिया के अवतरित होकर मैदान में आते ही सन्नाटा पसर गया। मैदान के चक्कर लगाने के बाद लखिया को मनाने के लिए महिलाओं ने अक्षत-फूलों से पूजा की। इसके बाद लखिया आशीर्वाद देकर वापस चला गया।
बेहद खास है पिथौरागढ की हिलजात्रा
रिपोर्ट्स के मुताबिक सोरघाटी पिथौरागढ़ में मनाए जाने वाला एक ऐसा ही ऐतिहासिक लोकपर्व है हिलजात्रा। इस पर्व में इस्तेमाल होने वाले मुखौटे, दिखने में साधारण से लगने वाले इन मुखौटों का इतिहास करीब 500 साल पुराना है। जिसे नेपाल के राजा ने पिथौरागढ़ के कुमौड़ गांव में रहने वाले चार महर भाईयों को उनकी वीरता के प्रतीक के रूप में भेंट किये थे। इसके बाद से ही पिथौरागढ़ में इन मुखौटों का इस्तेमाल कर यहां हिलजात्रा नाम से उत्सव शुरू हुआ तभी से पिथौरागढ़ की सोरघाटी में ये पर्व बड़ी धूम धाम से मनाया जाता रहा है। मान्यता है कि भगवान शिव के 12वें गण लखिया की उत्पत्ति उनके क्रोध से हुई जिसके चलते लखिया हमेशा क्रोध में ही रहतें है। लखिया के क्रोध को शांत करने के लिए ग्रामीण फूल अक्षत से उनकी फूल अक्षत से उनकी अर्चना कर उन्हें मनाते हैं। इस अर्चना से लखिया खुश होते हैं और लोगों को धन धान्य का आशीर्वाद देते हैं।