‘किसान दिवस’ के मौके पर देश भर के किसानों को शुभकामनाओं के संदेश दिये जा रहे हैं। सच पूछिए तो इन शुभकामनाओं के हकदार केवल पुरुष किसान नहीं बल्कि महिला किसान भी हैं। राष्ट्रीय किसान दिवस पर हम चर्चा करेंगे महिला किसानों की। दरअसल खेती के कामों में दिये जाने वाले उनके नियमित योगदान को कमतर आंका जाता है।
पूरी जिम्मेदारी महिलाओं के कंधों पर ही होती है
जनगणना 2011 के मुताबिक भारत में तकरीबन 6 करोड़ के आसपास महिला किसानों की संख्या बताई गई है। हालांकि धरातल पर उनकी संख्या कहीं ज्यादा है। बीते एकाध दशकों से ग्रामीण इलाके के पुरुषों विशेषकर युवाओं का रुझान खेती बाड़ी की बजाय नौकरियों व व्यापार में ज्यादा बढ़ा है। उनके नौकरियों या व्यापार में चले जाने के बाद खेती बाड़ी की पूरी जिम्मेदारी महिलाओं के कंधों पर ही होती है, जिसे महिलाएं पूरी जिम्मेदारी से निर्वाह करती हैं। घरों का काम निपटाने के बाद वह खेतों में लग जाती हैं। इस लिहाज से ये आंकड़ा पुरुषों के मुकाबले आधे से भी ज्यादा हो जाता है। बावजूद इसके महिलाओं की भूमिका को पर्दे के पीछे रखा जाता है।
बाड़ी का 32.8 प्रतिशत काम महिलाएं करती हैं
आंकड़ों के अनुसार खेती बाड़ी के काम में 32.8 प्रतिशत महिलाएं और 81.1 फीसदी पुरुष जुड़े हैं। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि ये कागजी आंकड़े सच्चाई बताने से मुकर जाते हैं। नहीं बताते कि इनमें 81.1 फीसदी पुरुष किसानों के घर की औरतें, वह औरतें जो किसान नहीं कहलातीं। महिलाएं फसलों की बुआई से लेकर, निराई, फसल काटने आदि में अपनी भागीदारी बढ़-चढ़कर निभाती हैं। लेकिन इनकी मेहनत कहीं नहीं गिनी जाती। आजादी से लेकर अभीतक महिला किसानों के नाम पर कोई कार्य योजनाएं नहीं बनाई गई। कृषि ऐसा सेक्टर है जो जीडीपी को कोरोना जैसे संकट काल में भी संजीवनी देता है। जीडीपी के ओवरऑल ग्रोथ में तकरीबन बीस फीसदी भूमिका अदा करता है। लेकिन वह आंकड़े हमें सार्वजनिक रूप से नहीं बताते कि सकल घरेलू उत्पाद में महिलाओं का कितना योगदान होता है? दरअसल, सिस्टम के पास इकनॉमिक ग्रोथ में आधी आबादी की भूमिका नापने का कोई पैमाना नहीं है।
जमीन पर महिला किसानों का हक फिर भी नहीं दिखता
2011 की जनगणना रिपोर्ट में भारत की छह करोड़ से ज्यादा औरतें खेती से जुड़ी बताई गईं। पर, जमीन पर महिला किसानों का हक फिर भी नहीं दिखता। किसानी के अच्छे परिणाम की वाहवाही पुरुष किसानों के हिस्से में चली जाती है। निश्चित रूप इसे नाइंसाफी ही कहेंगे। संयुक्त राष्ट्र की यूनएडीपी की रिपोर्ट बताती है कि किसानी में महिलाओं की हिस्सेदारी 43 फीसदी है जिन्हें किसान नहीं, बल्कि महिला मजदूर कहा जाता है। अरे भई, किसान क्यों नहीं? खेती से जुड़ी महिलाओं को मुकम्मल रूप से किसान माना जाए और उनके लिए वातावरण भी बनाया जाना चाहिए।