उत्तराखंड में कई जगह दीपावली के ठीक एक माह बाद मंगसीर बग्वाल मनाई जाती है। टिहरी जिले के बूढ़ाकेदार क्षेत्र में तीन दिवसीय कैलापीर मंगशीर बग्वाल उल्लास के साथ मनाई गई। देश भर में मनाई जाने वाली दीपावली के ठीक एक माह बाद थाती बूढ़ाकेदार क्षेत्र में मंगशीर बग्वाल मनाई जाती है। तीन दिन तक पूरे क्षेत्र में उत्सव चलता है।
कैलापीर का मेला भी इन तीन दिन में आयोजित होता है
टिहरी के इस क्षेत्र के साथ ही इससे सटे उत्तरकाशी जिले के 180 गांवों के आराध्य देव गुरू कैलापीर का मेला भी इन तीन दिन में आयोजित किया जाता है। गुरु कैलापीर के पश्वा के साथ श्रद्धालु गेहूं की खेतों में दौड़ लगाते हैं। माना जाता है कि इससे खुशहाली आती है।
इस कारण मनाई जाती है
मान्यता है कि गढ़वाल नरेश महिपत शाह के शासनकाल में तिब्बती लुटेरे गढ़वाल की सीमाओं में घुस आए थे। तब राजा ने माधो सिंह भंडारी व लोदी रिखोला के नेतृत्व में सेना भेजी थी। कार्तिक मास की बग्वाल के लिए माधो सिंह नहीं पहुंच पाए जो एक माह जीतकर लौटे। तब ही से इस दिन को मंगसीर बग्वाल मनाई जाती है।
प्रवासी भी अपने गांव पहुँचे
उत्तरकाशी के रामलीला मैदान में मंगसीर की बग्वाल बड़ी धूमधाम से मनाई गयी। देवदार और चीड़ की लकड़ी से बने भेलों को जलाकर लोगों ने मंगसीर की बग्वाल का लुत्फ उठाया। इस दौरान पारंपरिक वाद्य यंत्रों ढोल दमाऊ और रणसिंगे की खूबसूरत प्रस्तुति देखते ही बनी। बग्वाल को मनाने के लिए अन्य राज्यों में रह रहे प्रवासी भी बड़ी संख्या में गांव में पहुंचे ।