
माघ माह के पावन अवसर पर पल्टन बाजार स्थित रत्नेश्वर मंदिर में विगत वर्ष की भांति इस वर्ष भी माघी खिचड़ी का आयोजन किया गया। भक्त भोलेनाथ से मांगी गई मुराद पूरी होने पर उन्हें खिचड़ी का भोग लगाते हैं। रत्नेश्वर मंदिर सेवा समिति व धर्म जागरण समन्वय विभाग के तत्वाधान से आज माघी खिचड़ी का आयोजन किया गया। धर्म जागरण के सांस्कृतिक विभाग प्रमुख राजेश चंद्र जोशी द्वारा पूजा-पाठ कर भगवान भोलेनाथ को भोग लगाकर तत्पश्चात भक्तों को प्रसाद वितरण करने का कार्य किया गया।
महिला भक्तों द्वारा हर वर्ष की भांति भजन-कीर्तन मंदिर में आयोजित किया गया।

कोविड नियमों का पालन किया गया:
कोविड गाइडलाइन का पालन करते हुए रत्नेश्वर मंदिर में भक्तों ने कोविड के नियमों का ध्यान रखते हुए प्रसाद ग्रहण किया। मंदिर सेवा समिति व धर्म जागरण समन्वय विभाग ने भी कोविड गाइडलाइन का पालन करते हुए सभी भक्तों को प्रसाद वितरण कराया।
ग्रहों की प्रतीक है खिचड़ी:
सनातन धर्म में खिचड़ी में प्रयोग की जाने वाली सामग्रियों को ग्रहों का प्रतीक माना गया है। मान्यता है कि इस खाने से व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं से राहत मिलती है। यही कारण है कि खिचड़ी में कई तरह की सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। मकर संक्रांति के दिन काली दाल, मटर, गोभी और चावल की मिश्रित खिचड़ी बनायी जाती है।
आरोग्य वृद्धि के लिए खिचड़ी है लाभदायक:
ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक खिचड़ी का मुख्य तत्व चावल और जल चंद्रमा के प्रभाव में होता है। इस दिन खिचड़ी में डाली जाने वाली उड़द की दाल का संबंध शनि देव से माना गया है। वहीं हल्दी का संबंध गुरु ग्रह से और हरी सब्जियों का संबंध बुध से माना जाता है। वहीं खिचड़ी में पड़ने वाले घी का संबंध सूर्य देव से होता है। इसके अलावा घी से शुक्र और मंगल भी प्रभावित होते हैं। यही कारण है कि माघ में खिचड़ी खाने से आरोग्य में वृद्धि होती है।
खिचड़ी का पहला भोग भगवान को लगाया जाता है:
मान्यता है कि माघ माह के दिनों में खिचड़ी खाने से ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है और व्यक्ति के जीवन में परेशानियां कम आती हैं। कई जगहों पर खिचड़ी से भगवान को भोग लगाया जाता है और भंडारे का आयोजन करके लोगों में प्रसाद स्वरुप बांटा जाता है।
बाबा गोरखनाथ ने शुरु की परंपरा:
ऐसा माना जाता है कि खिलजी से युद्ध लड़ते हुए नाथ योगी बहुत कमजोर हो गए और उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। तब बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाकर पौष्टिक खिचड़ी तैयार करने का आदेश दिया। यही खिचड़ी खाकर नाथ योगियों को तुरंत ऊर्जा मिली और उनकी सेहत में सुधार हुआ। तभी से बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी बनाने की परंपरा की शुरूआत करने का श्रेय दिया जाता है।