सोबन सिंह जीना विवि के कुलपति प्रो. नरेंद्र सिंह भंडारी अपने पद से हट रहे है। कुलपति के पद में उनका यह कार्यकाल सवा साल से भी कम रहा।
प्रदेश में है यह दूसरा मामला-
उनकी नियुक्ति को हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया है। प्रदेश में यह दूसरा मामला है, जब किसी कुलपति की नियुक्ति को हाईकोर्ट ने निरस्त करने के आदेश दिए हैं। इससे पहले 2019 में दून विवि के कुलपति डॉ. सीएस नौटियाल की नियुक्ति को हाईकोर्ट ने गलत मानते हुए निरस्त कर दिया था।
प्रो. भंडारी ने 14 अगस्त 2020 को संभाला था पद-
प्रो. भंडारी ने शुक्रवार 14 अगस्त 2020 को पद भार संभाला था। इससे पहले प्रो. भंडारी नियुक्ति के दौरान उत्तराखंड राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्य थे। कुमाऊं विवि के छात्र रहे प्रो. भंडारी ने एसएस जीना परिसर में 1988 में बतौर सहायक प्रोफेसर अपनी सेवा शुरू की। 1998 में एसोसिएट प्रोफेसर बने थे , जबकि मई 2009 से अकार्बनिक रसायन विज्ञान के प्रोफेसर बने। इसमें कुलपति के लिए बतौर प्रोफेसर न्यूनतम 10 साल की सेवा का प्राविधान है। उनके लोक सेवा आयोग में बतौर सदस्य पद पर रही तैनाती को प्रोफेसरशिप में नहीं जोड़ा गया है।
एसएसजे विवि के शासनादेश के बाद कुलपति के चयन की चली थी प्रक्रिया-
कुमाऊं विवि के एसएसजे परिसर को ध्यान में रख कर नए विवि की स्थापना की गई थी। एसएसजे विवि के शासनादेश के बाद इसके कुलपति के चयन की प्रक्रिया चली। नए विवि में कुलाधिपति यानि राज्यपाल के माध्यम से कुलपति की नियुक्ति की प्रक्रिया नहीं होती है। सरकार सीधे कुलपति की नियुक्ति करती है। हालांकि इसके लिए पैनल आदि बनाने की प्रक्रिया पूरी की जाती है। उत्तराखंड शासन उच्च शिक्षा अनुभाग-1 से मंगलवार 11 अगस्त 2020 को उनकी बतौर कुलपति तैनाती का आदेश जारी हुआ था। प्रमुख सचिव आनंद बर्धन के हस्ताक्षर जारी आदेश में यह जानकारी दी गई थी। विवि के गठन के बाद से प्रो. भंडारी का नाम कुलपति बनाए जाने वाले नामों चर्चा में था।