हाल ही में सैटलाइट तस्वीरों से खुलासा हुआ है कि चीन देपसांग इलाके पर अपनी पकड़ को और ज्यादा मजबूत करने में लगा हुआ है। भारत और चीन के बीच कई दौर की बातचीत के बाद भी लद्दाख के देपसांग इलाके में तनाव खत्म नहीं होने का नाम नहीं ले रहा है। इसके अलावा चीन तिआनवेंडियान हाइवे को और मजबूत बनाने के लिए मरम्मत और उसे चौड़ा करने का काम कर रहा है। चीन की यह सड़क अक्साई चिन इलाके में है जो भारत के दौलत बेग ओल्डी हवाई पट्टी के कुछ ही दूरी पर स्थित है।
पीएलए लगातार भारतीय गश्ती दल को रोक लगाने की कोशिश कर रहा है
चीनी सेना अपनी पुरानी सड़क को मजबूत बनाने के लिए जमीन को खोदने का भी काम कर रही है। देपसांग का इलाका उत्तर में दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) और काराकोरम दर्रे की ओर स्थित है। ओपन सोर्स इंटेलिजेंस की तस्वीरों में नजर आ रहा है कि चीन एक नई सड़क भी बना रहा है। भारत के अपने एरिया के भीतर 18 किलोमीटर की दूरी देपसांग के ‘अड़चन’ क्षेत्र में पीएलए लगातार भारतीय गश्ती दल को रोक लगाने की कोशिश कर रहा है।
इसका दोनों तरफ से वेरिफिकेशन भी कर लिया गया है
भारतीय सेना ने कहा है कि पेट्रोलिंग प्वाइंट 17ए (पीपी-17ए) पर सैनिकों को पीछे हटाये जाने की प्रक्रिया पूरी होने के साथ अब ध्यान हॉटस्प्रिंग्स, देपसांग और देमचोक पर होगा। इससे पहले दोनों पक्ष बारहवें दौर की सैन्य वार्ता में टकराव वाले शेष स्थानों पर लंबित मुद्दों का समाधान शीघ्रता से करने पर सहमत हुए थे। भारत और चीन ने पूर्वी लद्दाख के गोगरा में करीब 15 महीनों तक आमने-सामने रहने के बाद अपने-अपने सैनिकों को पीछे हटाने की प्रक्रिया पूरी कर ली थी। यहां पर जमीनी स्थिति को गतिरोध-पूर्व अवधि के समान बहाल किया गया जो कि क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता बहाल करने की दिशा में यह एक कदम है। है। इसका दोनों तरफ से वेरिफिकेशन भी कर लिया गया है। दोनों पक्षों की तरफ से पीपी-17 ए में एक बफर जोन (नो पेट्रोलिंग जोन) बनाया है, जहां दोनों तरफ के सैनिक गश्त नहीं करेंगे। दोनों पक्षों की तरफ से बनाए गए सभी अस्थायी ढांचों और अन्य बुनियादी ढांचों को गिरा दिया गया।
चीनी सेना ने आज से 20 साल पहले ही अपना बेस बना लिया था
कुछ समय पूर्व भी सैटेलाइट तस्वीरें जारी कर बताया गया था कि इस इलाके में चीनी सेना ने आज से 20 साल पहले ही अपना बेस बना लिया था। देपसांग इलाके में चीन ने 2013 में भी घुसपैठ की थी। तब भारतीय सेना ने चीन को पीछे खदेड़ दिया था। उसी ने लिखा है कि 2004 में भी इस इलाके में चीनी सेना के बेस देखे गए थे। चीन ने इस इलाके में अपनी उपस्थिति को मजबूत भी की है और इसके बाद इसी इलाके में 2010 में भी चीनी सेना की गतिविधियां दिखाई दी थी।