हिंदू पंचांग के अनुसार हर महीने में दो एकादशी (Ekadashi) होती हैं, इस तरह एक साल में कुल 24 एकादशी होती हैं। हर एकादशी का अलग नाम और महत्व होता है। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है। सभी एकादशी में इसे सर्वश्रेष्ठ माना गया है। हर माह में दो बार एकादशी एक कृष्ण पक्ष और दूसरी शुक्ल पक्ष तिथि पड़ती है।
आज मनाई जाएगी देवशयनी एकादशी
इस बार देवशयनी एकादशी 29 जून को है। देवशयनी एकादशी से चतुर्मास शुरू हो जाता है। इसके बाद सभी मांगलिक कार्य वर्जित रहेंगे। भगवान श्रीहरि विष्णु चार माह तक योग निद्रा में रहेंगे। योग निद्रा में होने के कारण देवउठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी तक कोई भी शुभ कार्य नहीं होगा। अब चार माह के लिए देवगण विश्राम करेंगे। इसी के साथ विविध संस्कारों पर रोक लग जाएगी। भगवान विष्णु चार माह के लिए क्षीरसागर में शयन करेंगे।
जानें शुभ मुहूर्त
ईश्वर देवशयनी एकादशी ब्रह्म मुहूर्त से ही शुरू हो जाएगी। आषाढ़ शुक्ल देवशयनी एकादशी तिथि की शुरुआत 29 जून की सुबह 3 बजकर 18 मिनट से हो जाएगी और देवशयनी एकादशी तिथि का समापन 30 जून की सुबह 2 बजकर 42 मिनट में होगा।
इस विधि से पूजा पर मिलेगा भगवान विष्णु का आशीर्वाद
विष्णु भगवान की आराधना के लिए एकादशी व्रत से कोई भी प्रभावशाली व्रत नहीं है। दिन जप- तप, पूजा-पाठ, उपवास करने से मनुष्य श्री हरि की कृपा प्राप्त कर लेता है। भगवान विष्णु को तुलसी बहुत ही प्रिय होती है। बिना तुलसी दल के भोग इनकी पूजा को अधूरा माना जाता है। ऐसे में देवशयनी एकादशी पर तुलसी की मंजरी, पीला चंदन, रोली, अक्षत, पीले पुष्प, ऋतु फल एवं धूप-दीप, मिश्री आदि से भगवान वामन की भक्ति भाव से पूजा करनी चाहिए। पदम् पुराण के अनुसार, देवशयनी एकादशी के दिन कमललोचन भगवान विष्णु का कमल के फूलों से पूजन करने से तीनों लोकों के देवताओं का पूजन हो जाता है। रात के समय भगवान नारायण की प्रसन्नता के लिए नृत्य, भजन-कीर्तन और स्तुति द्वारा जागरण करना चाहिए।
जानें देवशयनी एकादशी व्रत की कथा
देवशयनी एकादशी पूजा के बाद यह व्रत कथा जरूर पढ़नी चाहिए। कथा के अनुसार एक बार श्री कृष्ण से युधिष्ठिर ने पूछा कि आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी का महत्व क्या है, तब श्री कृष्ण ने बताया कि इस एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। एक बार नारद मुनि ने ब्रह्मा जी से इसके महत्व और विधि के बारे में पूछा तो उन्होंने इससे संबंधित व्रत कथा सुनाई ब्रह्मा जी ने कहा कि इस एकादशी व्रतको पद्मा एकादशी भी कहा जाता है जो भी इस व्रत की कथा को पढ़ता है उससे भगवान विष्णु बेहद ही प्रसन्न होते हैं। कथा के अनुसार एक बार सूर्यवंश में एक महान प्रतापी राजा मांधाता राज करते थे। वे अपनी प्रजा का पूरा ध्यान रखते थे। धन धान्य से परिपूर्ण उनके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ा था। लेकिन एक बार लगातार 3 वर्षों तक बारिश नहीं हुई और भयंकर अकाल पड़ गया। अकाल पड़ने के कारण प्रजा को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। धन-अनाज की कमी होने के कारण सारे धार्मिक कार्य बंद हो गए। जब राजा तक यह बात पहुंची तो जंगल में अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे। जब उनसे आने का कारण पूछा गया तो उन्होंने सारी बात बता दी। तब उन्होंने देवशयनी एकादशी के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि आप पूरी प्रजा के साथ देवशयनी एकादशी एकादशी का व्रत विधि पूर्वक करें। ऐसा करने से प्रजा को अकाल पड़ने से मुक्ति मिलेगी। तब राजा ने अपनी प्रजा के साथ यह व्रत किया। ऐसा करने से अकाल से मुक्ति मिली और राज्य के लोग फिर से संपन्न हो गये।