March 29, 2024

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रामायणकाल से पूर्व भी मनाई जाती थी दिवाली, दीपों की दी गयी ये संज्ञा

रामायणकाल से पूर्व दीपावली का संबंध बलि कथा के संदर्भ में ही मान्य तथा प्रचलन में था। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को ”बलि प्रतिपदा’ भी कहते हैं। इस दिन बलि महाराज की अर्चना भी की जाती है। राजा बलि अपने राज्य में चतुर्दशी से तीन दिन चलते हैं और तीनों दिन दीपदान भी करते हैं। बलि के इस दीपदान से ही इस उत्सव को दीपावली कहा गया है। हरिद्वार में हर की पौड़ी पर गंगा में अपने वंश की समृद्धि के लिए ही प्रतिदिन गंगा की संध्या आरती के समय बड़ी संख्या में दीपदान किए जाते हैं। ऐसा ही वाराणसी के गंगा घाट पर भी होता है।

दीपो को दी गई संज्ञा

प्राचीन भारत में मनुष्य के सभ्य व संस्कारजन्य होने के अनुक्रम में दीपक का महत्व हर एक महत्वपूर्ण उद्देश्य से जुड़ता चला गया। प्रयोजन के अनुसार ही इनका नामांकन हुआ दीपावली पर जो दीप आकाश में सबसे ज्यादा ऊंचाई पर टांगा जाने लगा उसे ‘आशा-दीप’, स्वयंवर के समय जलाए जाने वाले दीप को ‘साक्षी-दीप’ पूजा वाले दीप को ‘अर्चना-दीप’ साधना के समय रोशन किए जाने वाले दीप को ‘आरती-दीप’ मंदिरों के गर्भगृह में अनवरत जलने वाले दीप को ‘नंदा-दीप’ की संज्ञा दी गई। मंदिरों के प्रवेश द्वार और नगरों के प्रमुख मार्गों पर बनाए जाने वाले दीपकों को ‘दीप-स्तंभ’ का स्वरूप दिया गया, जिन पर सैंकड़ों दीपक एक साथ प्रकाशमान करने की व्यवस्था की गई।

बहरहाल वर्तमान में भले ही दीपकों का स्थान मोमबत्ती और विद्युत बल्वों ने ले लिया हो लेकिन प्रकृति से आत्मा का तादात्म्य स्थापित करने वाली भावना के प्रतीक के रूप में जो दीपक जलाए जाते हैं, वे आज भी मिट्टी, पीतल अथवा तांबे के हैं। घी से जज्वलमान यही दीपक हमारे अंतर्मन की कलुषता को धोता है।

दीपावली पर कैसे जलाएं दीपक

पूजन के समय देवी-देवताओं के सम्मुख दीप उनके तत्व के आधार पर जलाए जाते हैं। देवी मां भगवती के लिए तिल के तेल का दीपक तथा मौली की बाती उत्तम मानी गई है। देवताओं को प्रसन्न करने के लिए देशी घी का दीपक जलाना चाहिए। वहीं शत्रु का दमन करने के लिए सरसों व चमेली का तेल सर्वोत्तम माने गए हैं।

देवताओं के अनुकूल बत्तियों को जलाने का भी योग है। भगवान सूर्य नारायण की पूजा एक या सात बत्तियों से करने का विशेष महत्व है। वहीं माता भगवती को नौ बत्तियों का दीपक अर्पित करना सर्वोत्तम कहा गया है। हनुमान जी एवं शंकरजी की प्रसन्नता के लिए पांच बत्तियों का दीपक जलाने का विधान है। इससे इन देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।

अनुष्ठान में पांच धातुओं सोना, चांदी, कांसा, तांबा और लोहे के दीपक प्रज्ज्वलित करने का महत्व है। दीपक जलाते समय उसके नीचे सप्तधान्य (सात प्रकार का अनाज) रखने से सब प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। यदि दीपक जलाते समय उसके नीचे गेहूँ रखें तो धन-धान्य की वृद्धि होगी, यदि चावल रखें तो महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होगी। इसी प्रकार यदि उसके नीचे काले तिल या उड़द रखें तो स्वयं माँ काली, भैरव, शनि, दस दिक्पाल, क्षेत्रपाल हमारी रक्षा करेंगे, इसलिए दीपक के नीचे किसी न किसी अनाज को रखा जाना चाहिए। साथ में जलते दीपक के अन्दर अगर गुलाब की पंखुड़ी या लौंग रखें तो जीवन अनेक प्रकार की सुगंधियों से भर उठता।