जी-20: भारत आज इंडोनेशियाई जी-20 प्रेसीडेंसी के तहत मैंग्रोव एलायंस फॉर क्लाइमेट में हुआ शामिल



पीएम मोदी ने बुधवार 16 नवंबर 2022 को बाली में जी-20 के अन्य नेताओं के साथ ”तमन हटन राया नगुराह राय” मैंग्रोव फॉरेस्ट का दौरा किया और वहां पौधे लगाए। बता दें, मैंग्रोव वैश्विक संरक्षण प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस क्रम में भारत इंडोनेशियाई जी-20 प्रेसीडेंसी के तहत इंडोनेशिया और यूएई (UAE) की संयुक्त पहल, मैंग्रोव एलायंस फॉर क्लाइमेट (MAC) में शामिल हो गया है।

पीएम मोदी और अन्य जी-20 नेताओं ने मैंग्रोव वन का किया दौरा

इस संबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने एक ट्वीट संदेश में कहा कि ”पीएम मोदी और अन्य जी-20 नेताओं ने बाली में एक मैंग्रोव वन का दौरा किया। साथ ही जलवायु परिवर्तन से निपटने और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए एक साथ आने का एक मजबूत संदेश दिया। भारत जलवायु के लिए मैंग्रोव एलायंस में भी शामिल हो गया है।” बता दें इस क्रम में ‘मैक’ नामक एक अंतर सरकारी गठबंधन है जो मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण की दिशा में तेजी से प्रगति का प्रयास कर रहा है। भारत मैक में शामिल होने वाले पहले पांच देशों- ऑस्ट्रेलिया, जापान, स्पेन और श्रीलंका में से एक है। मैक का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए मैंग्रोव वनों की भूमिका के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाना है। ऐसे में आइए विस्तार से जानते हैं कि ‘मैंग्रोव’ क्या है और ये हमारे लिए कैसे महत्वपूर्ण हैं और ये हमारे जीवन पर क्या प्रभाव डालते हैं..?

क्या है मैंग्रोव ?

मैंग्रोव एक प्रकार के उष्ण कटिबंधीय वृक्ष व झाड़ियां हैं, जो ज्वारीय क्षेत्रों में होते हैं यानि ये वृक्ष और झाड़ियों के रूप में समुद्र से सटे इलाकों में, लवणीय दलदल और कीचड़ भरे तटों पर पाए जाते हैं। ये जलवायु परिवर्तन का सामना करने, जैव विविधता की रक्षा और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को कम करने में मैंग्रोव अहम भूमिका निभाते हैं। मैंग्रोव वन उष्णकटिबंधीय वनों की तुलना में चार से पांच गुना अधिक कार्बन उत्सर्जन को अवशोषित कर सकते हैं। समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की मजबूत कड़ी होने के साथ-साथ ये पर्यावरण, अर्थव्यवस्था तथा समुदायों को लाभ पहुंचाने के लिए विख्यात मैंग्रोव विभिन्न मानवीय गतिविधियों के कारण आज स्वयं संकट में हैं। बताना चाहेंगे कि सुंदरबन, भितरकनिका, पिचवरम, चोराओ और बाराटांग इत्यादि भारत के कुछ खूबसूरत मैंग्रोव क्षेत्रों के रूप में जाने जाते हैं, जो आज सबसे अधिक संकटग्रस्त मैंग्रोव पट्टियों में शामिल हैं।

मैंग्रोव दुनिया में पेड़ों की एकमात्र प्रजाति

मैंग्रोव दुनिया में पेड़ों की एकमात्र ऐसी प्रजाति है, जो समुद्र के खारे पानी को सहन करने में सक्षम है। मैंग्रोव जैव विविधता का एक अनूठा पारिस्थितिकी तंत्र है, जिसमें सैंकड़ों मछलियां, सरीसृप कीट, सूक्ष्मजीव, शैवाल, पक्षी और स्तनपायी प्रजातियां पाई जाती हैं। वे ज्वार की लहरों के अवशोषक के रूप में कार्य करते हैं और अपनी उलझी हुई जड़ प्रणालियों के साथ तलछट को स्थिर कर मिट्टी के कटाव को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

वैश्विक संरक्षण में महत्वपूर्ण

इसलिए वैज्ञानिकों का मानना है कि ‘मैंग्रोव’ वैश्विक संरक्षण प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मैंग्रोव न केवल जीवों एवं पादप प्रजातियों को आवास प्रदान करते हैं बल्कि उनकी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए, समुद्र तटीय समुदाय के लोगों के जीवन का समर्थन करने के साथ-साथ कार्बन सिंक के रूप में भी प्रभावशाली भूमिका निभाते हैं। मैंग्रोव आवास क्षेत्र, उन्हें दुनिया के अधिकांश निम्न और मध्यम आय वाले देश विशेष रूप से महत्वपूर्ण बनाते हैं, जहां वे पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं और आजीविका की एक विस्तृत ऋंखला प्रदान करते हैं, लेकिन विश्व में ‘मैंग्रोव’ पर खतरा मंडरा रहा है।

‘मैंग्रोव’ के संरक्षण की जरूरत

मैंग्रोव के महत्व को देखते हुए इसके संरक्षण की तीव्रता से आवश्यकता महसूस की जा रही है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) मैंग्रोव की निगरानी, वैज्ञानिक अनुसंधान और सतत उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए कार्य कर रहा है। यूनेस्को द्वारा निर्दिष्ट साइटों जैसे बायोस्फीयर रिजर्व, विश्व धरोहर स्थलों और ग्लोबल जियोपार्क में मैंग्रोव को शामिल करने से दुनियाभर में मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित ज्ञान, प्रबंधन और संरक्षण गतिविधियों में सुधार करने में योगदान मिला है।