आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग द्वारा भूगोल विभाग के सभागार में अंतराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर डिग्निटी, फ्रीडम एंड जस्टिस फ़ॉर ऑल विषय पर एकदिवसीय संगोष्ठी आयोजित हुई। जिसके मुख्य अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय के नवनियुक्त कुलपति प्रो जगत सिंह बिष्ट, कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि रूप में अधिष्ठाता प्रशासन प्रो प्रवीण सिंह बिष्ट, मुख्य वक्ता रूप में विधि संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो.जे.एस. बिष्ट, संगोष्ठी के अध्यक्ष एवं संयोजन प्रो. विद्याधर सिंह नेगी, डॉ चंद्र प्रकाश फूलोरिया,कला संकायाध्यक्ष प्रो अरविंद सिंह अधिकारी, प्रो के एन पांडे आदि ने सरस्वती चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर एवं पुष्पार्पण कर उद्घाटन किया। आयोजकों एवं विश्वविद्यालय के शिक्षकों द्वारा मुख्य अतिथि रूप में पधारे हुए नवनियुक्त कुलपति प्रो बिष्ट को शॉल ओढ़ाकर एवं प्रतीक चिन्ह देकर स्वागत एवं अभिनंदन किया।
मानवाधिकार के विषय में विस्तार से व्याख्यान दिया
मुख्य वक्ता के रूप में प्रो.जे.एस. बिष्ट ने मानवाधिकार के विषय में विस्तार से व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा मानवाधिकार आज के परिप्रेक्ष्य में काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि समाज में कई प्रकार की घटनाएं प्रकाश में निरन्तर आ रही हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा मानवाधिकार को सार्वभौमिक रूप से सबके लिए प्रदान किये हैं। किसी जातिगत धारणा, धर्म, सम्प्रदाय, व्यक्ति विशेष आदि से ऊपर उठकर सभी के लिए मानवाधिकारों की व्यवस्था की गई है। सुप्रीम कोर्ट इसकी संरक्षक है। मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट स्वतः ही संज्ञान लेती है, ऐसे कई उद्धरण हमारे देश में अमूमन दिखाई पड़ते हैं।
यह संगोष्ठी मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए उपयोगी सिद्ध हुई
अधिष्ठाता प्रशासन प्रो प्रवीण सिंह बिष्ट ने कहा यह संगोष्ठी मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए उपयोगी सिद्ध हुई है। समाज के उत्थान के लिए ये आवश्यक है। मानवाधिकार का विशेष महत्व है। इस गंभीर विषय को लेकर आगे भी बात होनी चाहिए। उन्होंने आयोजकों को संगोष्ठी के लिए बधाई दी।मुख्य अतिथि रूप में कुलपति प्रो. जगत सिंह बिष्ट ने आजादी के उपरांत मानवाधिकार पर विस्तार से बात हुई है। अधिकारों और कर्तव्यों की रक्षा के लिए मानवाधिकार उपयोगी हैं। व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए मानवाधिकार आवश्यक हैं। पुनीत भावनाओं, मानव मूल्यों, अधिकारों, कर्तव्यों, समानता को लेकर मानवाधिकार प्रासंगिक हैं। जियो और जीने दो को चरितार्थ करने में मानवाधिकार का योगदान है। उन्होंने साहित्यक संदर्भों को उदाहरण देकर मानवाधिकार को स्पष्ट किया।
भारतीय समाज में कई रूढिवादिता व्याप्त थी, उनको दूर करने में मानवाधिकार का योगदान अविस्मरणीय
संगोष्ठी के अध्यक्ष एवं संयोजन प्रो. विद्याधर सिंह नेगी ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि भारतीय समाज में कई रूढिवादिता व्याप्त थी, उनको दूर करने में मानवाधिकार का योगदान अविस्मरणीय है। समाज में निम्न वर्ग के साथ अभद्र व्यवहार हुआ है, ऐसे में ज्योतिबाफुले जी जैसे लोगों ने कार्य किया है। वहीं से मानवाधिकार को लेकर जागरूकता बढ़ी है। संस्कृति में मानवाधिकार की आवश्यकता नहीं थी किंतु अब मानवाधिकारों की बहुत जरूरत है।
इस अवसर पर मौजूद रहे
इस अवसर पर कला संकायाध्यक्ष प्रो अरविंद सिंह अधिकारी, प्रो के एन पांडे (विभागाध्यक्ष, संस्कृत), प्रो नीरज तिवारी(विभागाध्यक्ष, सांख्यिकी), प्रो ज्योति जोशी(विभागाध्यक्ष, भूगोल),प्रो हरीश चंद्र जोशी (विभागाध्यक्ष,अर्थशास्त्र), प्रो निर्मला पंत (विभागाध्यक्ष, अंग्रेजी), अधिष्ठाता छात्र कल्याण डॉ मनोज सिंह बिष्ट,
डॉ गोकुल देवपा, डॉ लक्ष्मी वर्मा, डॉ.प्रेमा खाती, डॉ.रवि कुमार, जीवन भट्ट, डॉ माया गोला (विभागाध्यक्ष, हिंदी), डॉ धनी आर्या, डॉ मंजुलता उपाध्याय, डॉ रिजवाना सिद्धिकी, वैयक्तिक सहायक श्री विपिन जोशी, डॉ पुष्पा वर्मा,डॉ ललित जोशी (प्रभारी पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग), डॉ लता आर्या, डॉ आस्था नेगी, डॉ नरेश पंत, डॉ अरविंद यादव, डॉ पूरन जोशी, प्रतिमा उपाध्याय,डॉ युगल पांडे सहित कई संख्या में शिक्षक, शोधार्थी शामिल हुए। संचालन डॉ चंद्र प्रकाश फुलोरिया ने किया।