March 29, 2024

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कई महान विचारों को लेकर नासा का स्पेसक्राफ्ट लूसी भरेगा उड़ान

बृहस्पति ग्रह से जुड़े ट्रोजन क्षुद्रग्रहों के लिए नासा अपना पहला मिशन भेज रहा है। दूर भविष्य में मानवता को प्रेरित करने के लिए यान पर विद्वानों के कुछ विचारों को उद्धृत किया जाएगा। लूसी नामक यह अंतरिक्ष यान अक्टूबर 2021 में लॉन्च होने वाला है, और इसे हाल ही में एक पट्टिका के साथ बाहर रखा गया था जिस पर यह सब अंकित है। यह पट्टिका एक समय कैप्सूल के रूप में कार्य करेगी।

स्पेसक्राफ्ट का नाम लूसी है

स्पेसक्राफ्ट का नाम लूसी है, जिसका शाब्दिक अर्थ मानव पूर्वज के जीवाश्म कंकाल से संबंधित है। इस स्पैसक्राफ्ट का नाम ‘द बीटल्स के 1967 के क्लासिक गीत लूसी इन द स्काई विद डायमंड्स से भी प्रेरित था। अंतरिक्ष यान की पट्टिका पर बीटल्स बैंड के सदस्यों जॉन लेनन, पॉल मेकार्टनी, रिंगो स्टार और जॉर्ज हैरिसन के उद्धरणों सजे हुए हैं।
बीटल्स के अलावा अन्य प्रसिद्ध लोगों के विचार भी इसपर लिखें होंगे। पट्टिका में कार्ल सैगान, अल्बर्ट आइंस्टीन, कवि जॉय हार्जो, लेखक काज़ुओ इशिगुरो, मार्टिन लूथर किंग जूनियर, ब्रायन मे ऑफ क्वीन, योको ओनो और अन्य के उद्धरण भी शामिल हैं।

कार्ल सैगान ने माना है प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान का लोहा

कार्ल सैगान प्रसिद्ध अमेरिकी खगोल विज्ञानी हैं। उन्होंने अंतरिक्ष के बारें में कई बेहतरीन किताबें लिखी हैं। कार्ल सैगान ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में बात करते हैं और कहते हैं कैसे सभी धर्मों के बीच, केवल हिंदू धर्म ने प्रकृति में निहित चक्रीय प्रकृति को देखकर ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारें में सही सोचा था। सबसे महत्वपूर्ण बात, सागन बताते हैं कि केवल हिंदुओं ने इस विषय पर गैर-हठधर्मिता से विचार किया। ऋग्वेद के नासदीय सूक्त को लिखने वाले ऋषि ब्रह्मांडीय अनिश्चितता को अच्छे से समझते थे। ऋषियों ने इस संभावना को भी स्वीकार किया कि शायद देवता भी ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे नहीं जानते!

ऋग्वेद में हैं नासदीय सूक्त

नासदिय सूक्त ऋग्वेद के दसवें मण्डल में हैं। ये कुल सात सूक्त हैं। ये सूक्त मुख्यता इस बात पर आधारित हैं कि ब्रह्मांड की रचना कैसे हुई है। इंसानी इतिहास की सर्वप्रथम पुस्तक में ब्रह्मांड के बारें में इतना सटीक वर्णन देखकर आज के वैज्ञानिक आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह पाते हैं। नासदीय सूक्त का पहला सूक्त इस प्रकार है

नासदासीन्नो सदासात्तदानीं नासीद्रजो नोव्योमा परोयत्।
किमावरीवः कुहकस्य शर्मन्नंभः किमासीद् गहनंगभीरम्

अर्थात् सृष्टि की उत्पत्ति से पहले प्रलय की दशा में असत् अर्थात् अभावात्मक तत्त्व नहीं था। सत् अर्थात भाव तत्त्व भी नहीं था, रजः अर्थात स्वर्गलोक मृत्युलोक और पाताल लोक नहीं थे, अन्तरिक्ष नहीं था और उससे परे जो कुछ है वह भी नहीं था, वह आवरण करने वाला तत्त्व कहाँ था और किसके संरक्षण में था। उस समय गहन अर्थात कठिनाई से प्रवेश करने योग्य गहरा क्या था, अर्थात् वे सब नहीं थे।