सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय,अल्मोड़ा के वनस्पति विज्ञान विभाग द्वारा ‘सॉल्विंग एनवायरमेंटल प्रॉब्लम्स ऑन कम्युनिटी इंवॉल्वमेंट, इन हिमालयन रीजन’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन हुआ।
विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ बलवंत कुमार के संयोजन में एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के तौर पर सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रोफेसर नरेंद्र सिंह भंडारी, विशिष्ट अतिथि के तौर पर उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर ओ. पी. एस. नेगी, बीज वक्ता के रूप में प्रोफेसर के.एन. दुबे (FNASc, FNAAS और BHU के बॉटनी विभाग के अध्यक्ष) और प्रोफेसर डी. के.उप्रेती (FNA,FNASc, FES, FISEB, CsIR- एमेरिटस Scientist, CSIR-NBRI लखनऊ) थे। साथ ही रेसोर्स पर्सन के तौर पर प्रोफेसर एस. डी. तिवारी (विभागाध्यक्ष, वनस्पति विज्ञान,राजकीय महिला कॉलेज हल्द्वानी), डॉ,जी. सी. एस. नेगी (G.B.Pant संस्थान,कोसी कटारमल के सेंटर फॉर सोशियो-इकोनॉमिक डेवलेपमेंट के अध्यक्ष),कार्यक्रम के संयोजक डॉ बलवंत कुमार (विभागाध्यक्ष, वनस्पति विज्ञान विभाग), डॉ. धनी आर्या ने कार्यक्रम का वर्चुअल रूप से उद्घाटन किया।
विश्व में पर्यावरण चिंतन, एक गंभीर विषय बनकर उभरा है।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के तौर पर सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर नरेंद्र सिंह भंडारी ने वनस्पति विज्ञान विभाग के डॉक्टर बलवंत कुमार एवं उनकी टीम को बधाई दी। उन्होंने कहा कि हम प्रकृति की सुंदरता को खराब कर रहे हैं। जो चिंता की बात है। विश्व में पर्यावरण चिंतन, एक गंभीर विषय बनकर उभरा है। हालिया वर्षों में जिस तरीके से प्रकृति को नुकसान हुआ है, उससे जीवन में संघर्ष उत्पन्न हुआ है। पर्यावरण पर काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी जैव विविधता, पर्यावरण चिंतन विषय पर संवेदनशीलता के साथ कार्य कर रही हैं। उन्होंने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या भविष्य के लिए चिंता का विषय है। उन्होंने वेदों की उक्तियों के माध्यम से पर्यावरण के संतुलन बनाने, उसकी निरंतरता को बनाये रखने की अपील की।
उन्होंने कहा कि प्रकृति का क्षरण जिस तरीके से हो रहा है बहुत चिंतनीय है। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ से हमें भविष्य में बहुत गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। उन्होंने कहा कि अंतराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर भी पर्यावरण के क्षरण पर चिंता व्यक्त हुई है। प्रकृति का सीधा सीधा संदेश हमें कोरोनाकाल में देखने को मिला है। यदि हमने प्रकृति के साथ अन्याय किया तो वो सही नहीं होगा और ऐसी स्थितियां हमारे सामने आने लगेंगी। उन्होंने धरती माता को बचाने के लिए कार्य करने पर बल दिया। उन्होंने अपने उदबोधन में भारतीय प्राचीन साहित्य, शास्त्रों में प्रकृति की बातों का भी उल्लेख किया। भारत के प्राचीन ग्रंथों में प्रकृति और मानव के बीच के संबंध को प्रकट किया है। आज हमें उस संबंध को समझने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हम समुदाय से जुड़कर ऐसे कार्य कर सकते हैं। हमें प्रकृति के साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार करने की आवश्यकता है। सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय,अल्मोड़ा के द्वारा पर्यावरण के लिए किए जा रहे कार्यों का हवाला देते हुए कहा कि पर्यावरण के संरक्षण, जैव विविधता को बनाये रखने के लिए, समुदाय के साथ मिलकर इस तरफ कार्य करने की योजना तैयार कर कार्य भी करना प्रारंभ किया है। पर्यावरण इकोसिस्टम री स्टोरेशन के लिए हमें अपना योगदान देना होगा
आज महामारी के दौर में इन वनस्पतियों को जानने की जरुरत है
रिसोर्स पर्सन के तौर पर डॉक्टर एन के दुबे ने कहा कि पर्यावरण की चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पर्यावरण बहुत संवेदनशील विषय के तौर पर उभर रहा है।इस तरफ हमें ध्यान आकर्षित करना होगा। उन्होंने कहा कि धरती का संतुलन बिगड़ रहा है। हमारे पूर्वज हर्बल, वनस्पतियों को जानते थे, अपने आसपास के जानवरों की आवाज से परिचित थे, इसीलिए वह इलाज भी कर लेते थे। कई ऐसी वनस्पतियों का प्रयोग आज भी ग्रामों में प्रयोग किया जा रहा है। यह हमारा प्राचीन ज्ञान ही था लेकिन हमने उस ज्ञान को नजरअंदाज किया। हम अब इनके बारे में कम ही जानते हैं। आज महामारी के दौर में इन वनस्पतियों को जानने की जरुरत है। अब हमें उन औषधीय वनस्पतियों के बारे में जानने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह परंपरागत ज्ञान हमारे देश से ज्ञान बाहर को गया है। हमारे पूर्वज बायो डायवर्सिटी को समझते और उसका प्रयोग करना जानते थे। कोरोना के दौर में हमें अपने प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए इन मेडिसिनल प्लांट की जरूरत पडी है। अब हमें इन वनस्पतियों को बचाने व संवर्द्धन के लिए कार्य करना होगा। उन्होंने कहा कि पर्यावरण परिवर्तन से हमारे जो मेडिसिनल प्लांट समाप्त हो रही हैं। इस पर बड़े स्तर पर शोध किया जाना जरूरी है।
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर ओ. पी. एस. नेगी ने अपने विचार कुछ इस प्रकार रखे
विशिष्ट अतिथि के तौर पर उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर ओ. पी. एस. नेगी ने कहा कि हम अपनी प्रकृति के साथ मानवीय संबंध स्थापित कर उसको बहाल कर सकते हैं। प्रकृति एवं मानव के सहयोग से हम प्रकृति को संरक्षित कर सकते हैं। कोरोना काल में हमें प्राकृतिक तत्वों की आवश्यकता महसूस हुई है। उन्होंने कहा कि प्रकृति में निरंतर क्षरण हो रहा है। जो भयावह है। ऐसे क्षरण होना ठीक नहीं है। पर्यावरण प्रदूषण, प्राकृतिक आपदाओं के प्रति हमें चिंतित होने की जरुरत है। उन्होंने कहा कि महामारी के दौर में प्रकृति में भी सुधार देखने को मिला है। इस दौरान प्रदूषण कम हुआ है। आगे कहा कि हमें अपनी इस धरती माता को बचाना होगा।
इस अवसर पर डॉ.डी. के. उप्रेती ने कहा कि पर्यावरण में असंतुलन हो रहा है, तापमान निरंतर बढ़ रहा है। जिससे वनस्पतियां इससे मेडिसिनल प्लांट्स को भी नुकसान हुआ है। हमें जैव विविधता को बचाये रखने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में कार्य करना होगा। जन समुदाय का सहयोग लेकर हम क्षेत्रीय स्तर पर वहां के अनुरूप औषधियों को उगाने के लिए काम कर सकते हैं।
ग्रामीणों/ सामुदायिक सहयोग लेकर हम पर्यावरण को बचा सकते हैं
प्रोफेसर एस. डी. तिवारी ने कहा कि ग्रामीणों/ सामुदायिक सहयोग लेकर हम पर्यावरण को बचा सकते हैं। इसके लिए हमें तत्पर रहना होगा। इकोसिस्टम को बनाए रखने के लिए हमें वनारोपण करने की आवश्यकता है। प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित प्रयोग करने की आवश्यकता है। हमें वृक्ष लगाना होगा। प्रत्येक व्यक्ति को पर्यावरण की निरंतरता को बनाए रखने के लिए सहयोग करने की आवश्यकता है।
डॉ जी. सी.एस. नेगी ने कहा प्रकृति का निरंतर क्षरण चिंताजनक है ।
डॉ जी. सी.एस. नेगी ने कहा कि प्रकृति का निरंतर क्षरण होना चिंता की बात है। जिस कारण हमारी वनस्पतियां और जैव विविधता खतरे में पड़ी है। हमें जैव विविधता को बनाए रखने के लिए और इस प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने के लिए कार्य करना होगा. हमें हिमालयी विकास के लिए पर्यावरण को ध्यान में रखना होगा। हमें ऐसी योजनाएं बनाने जाने की जररुरत है। जिससे प्रकृति एवं मानव के बीच संतुलन बरकरार रहे। हमें प्लानिंग करने की जररुरत है। हमें पौधारोपण, जल संवर्धन, औषधियों का रोपण करने और इन को बढ़ावा देने के लिए कार्य करने की आवश्यकता है।
डॉ. जी. सी. जोशी ने कहा कि मेडिशनल प्लांट्स के प्रयोग पर दिया जोर
डॉ. जी. सी. जोशी ने कहा कि मेडिशनल प्लांट्स के प्रयोग से हम शरीर को बचा सकते हैं। गांव घरों में इन औषधियों का आज भी प्रयोग होता है। परंपरागत औषधि ज्ञान को वैज्ञानिक कसौटी पर परखकर उसका उपयोग करने की आवश्यकता है। परंपरागत औषधीय वनस्पतियों से संबंधित ज्ञान को संकलित कर अपने शोध पत्र में संकलित कर जनमानस तक ले जाएं। प्राचीन साहित्य में औषधिय तकनीक, औषधीय ज्ञान का अध्ययन करने, औषधि को समझने एवं जानने की जरुरत है।
प्रकृति के साथ छेड़छाड़ नहीं कि जानी चाहिए।
वेबिनार के संयोजक डॉ बलवंत कुमार ने संचालन करते हुए कहा कि पर्यावरण की निरंतरता को बनाये रखने के लिए वनस्पतियों को संरक्षण करने की जरूरत है। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ नहीं कि जानी चाहिए। हमें अपने आसपास जैव विविधता बनाये रखने की जरुरत है। उन्होंने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए वेबिनार की रूपरेखा रखी। इस अवसर पर वनस्पति विज्ञान विभाग के शिक्षक
डॉ. धनी आर्या ने कहा कि पर्यावरण चिंतन आज के समय के लिए बेहद जरूरी है। हमें वनस्पतियों के संरक्षण करने की आवश्यकता है। उन्होंने सभी अतिथियों का आभार जताया।
इतने लोग रहे शामिल
इस वेबिनार में डॉ धनी आर्य, डॉ मंजुलता उपाध्याय, डॉ सुभाष चंद्रा, डॉ.ममता असवाल, डॉ महेंद्र राणा, डॉ ललित जोशी, डॉ मनीष त्रिपाठी, डॉ क़े चंद्रशेखर, डॉ स्नेहलता, डॉ मनुहर आर्या, मनीष ममगई आदि देशभर के विद्वान, विद्यार्थी शामिल रहे।