देश की राजधानी दिल्ली में हुए 2012 के बहुचर्चित गैंगरेप और हत्याकांड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तीन अभियुक्तों को बरी कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से टूटे परिजन
दरिंदगी की शिकार हुई किरन नेगी के परिजनों ने अपनी बिटिया को इंसाफ दिलाने के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। फैसले के बारे में पता चलते ही किरन की मां महेश्वरी देवी फफक-फफक कर रो पड़ीं। उन्होंने कहा कि निचली अदालतों में कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट में करीब 7 साल लग गए। आरोपियों को उम्र कैद या आजीवन कारावास की सजा भी हो जाती तो कम से कम उनका दिल तो मान जाता, लेकिन सभी आरोपी बरी ही हो गए। किरन की मां महेश्वरी देवी ने रोते हुए कहा कि 11 साल बाद यह फैसला आया है। इंतजार करते-करते वह हार गई। वह अपनी लाडो को इंसाफ नहीं दिला पाई। पीड़िता की मां ने सुप्रीम कोर्ट परिसर के बाहर फूट-फूटकर रोते हुए कहा, “11 साल बाद यह हताश करने वाला फैसला आया है। हम हार गए… हम जंग हार गए… मैं उम्मीद के साथ जी रही थी… मेरे जीने की इच्छा खत्म हो गई है’ मुझे लगता था कि मेरी बेटी को इंसाफ मिलेगा।” मां महेश्वरी देवी सहित परिजन कोर्ट के इस फैसले से जितना हैरान हैं उतने ही चिंतिंत भी। इन आरोपियों को निचली अदालत ने मौत की सज़ा सुनाई थी। बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के ज़रिए दी गई सज़ा को बरक़रार रखा था। लेकिन सात नवंबर सोमवार को अपने फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों के अभाव में तीनों अभियुक्तों को रिहा कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहकर तीनों को बरी कर दिया? जानें
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दिल्ली में साल 2012 में निर्भया की ही तरह उत्तराखंड की लड़की के साथ भी वैसी ही हैवानियत की गई थी। पीड़िता के परिवार को उम्मीद थी कि उन्हें न्याय जरूर मिलेगा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने तीनों दोषियों को बरी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियोजन आरोपियों के खिलाफ अपराध से जुड़े ठोस साक्ष्य पेश करने में असफल रहा, इसीलिए इस अदालत के पास जघन्य अपराध से जुड़े इस मामले में आरोपियों को बरी करने के सिवा और कोई विकल्प नहीं बचा है। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह सच हो सकता है कि यदि जघन्य अपराध में शामिल अभियुक्त को सजा न सुनाई जाए या उनके बरी होने पर साधारण रूप से समाज में और खासतौर पर पीड़ित के परिवार के लिए एक तरह का दुख और निराशा पैदा हो सकती है, हालांकि कानून अदालतों को नैतिक या अकेले संदेह के आधार पर दोषियों को सजा देने की इजाजत नहीं देता है। कोई भी दोषसिद्धि केवल फैसले का विरोध या निंदा की आशंका के आधार पर नहीं होनी चाहिए। अदालतों को हर मामले का फैसला कानून के मुताबिक कड़ाई से उनके अपने गुण-दोष के आधार पर करना चाहिए, किसी भी तरह के बाहरी नैतिकता या दबाव से प्रभावित हुए बिना।
पीड़िता के पिता ने कहीं यह बात-
पीड़िता के पिता ने मंगलवार को एक न्यूज चैनल पर विशेष बातचीत में कहा कि “इस फैसले से वे हैरान हैं, लेकिन थके-हारे नहीं हैं। असली लड़ाई तो अब शुरू हुई है। उनकी बेटी के कातिलों को बाइज्जत बरी कर दिया गया। वो भी सुप्रीम कोर्ट से। यह हैरान करने वाला फैसला है।” पीड़िता के पिता ने कहा कि इस मामले में लोअर कोर्ट से सुनाई गई फांसी की सजा को दिल्ली हाईकोर्ट तक ने बरकरार रखा था। उन्होंने कहा वह फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में ही फिर से पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे। हालांकि इससे पहले उन बिंदुओं पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए, जिनके चलते ऐसा अविश्वसनीय फैसला उनकी बेटी के कत्ल के मुकदमे में पलट दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर फूंटा उत्तराखंड की महिलाओं का गुस्सा-




सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आहत उत्तराखंड की महिलाओं का आक्रोश किरण नेगी के हत्यारों को बरी किए जाने के बाद आज फूट पड़ा। आज गुरुवार 10 नवंबर को उत्तराखंडी महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट के बाहर सर में काली पट्टी बांध प्रदर्शन कर उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपने गुस्से का इजहार किया। सुप्रीम कोर्ट पर प्रदर्शन की जानकारी मिलते ही दिल्ली पुलिस के हाथ पांव फूल गए। आनन फानन में तिलक मार्ग थाने से भारी पुलिस फोर्स मौके पर पहुंच गया। जिसके बाद प्रदर्शन कर रही महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया गया। खबर लिखे जाने तक गिरफ्तार इन महिलाओं को निजी मुचलके पर रिहा कर दिया गया है। गौरतलब है कि मूल रूप से उत्तराखंड के पौड़ी जनपद निवासी किरण नेगी की ग्यारह साल पहले दिल्ली में तीन युवकों ने बलात्कार के बाद क्रूरता के साथ हत्या कर दी थी। अपराधियों द्वारा किरण के साथ की गई क्रूरता का यह आलम था की ट्रायल कोर्ट ने इसे फांसी से कम का मामला नहीं माना था। हाईकोर्ट ने एक कदम और आगे बढ़कर टिप्पणी की थी कि यह हत्यारे सड़क पर शिकार की तलाश में घूम रहे थे। इन पर रहम का अर्थ न्याय की गरिमा को नुकसान पहुंचाना है। निचले स्तर की अदालतों की इतनी प्रतिकूल टिप्पणियों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आश्चर्यजनक रुख अपनाते हुए इन सजायाफ्ता अपराधियों को जुर्म से ही बरी कर दिया। घंटों की जद्दोजहद के बाद आंदोलित इन महिलाओं को गिरफ्तार कर तिलक मार्ग थाने ले जाया गया। जहां से दो घंटे बाद इन्हें निजी मुचलके पर रिहा कर दिया गया। इस दौरान आंदोलन करने वालो में दीपिका नयाल,रोशनी,प्रेमा धौनी, दीपक,किरण लखेड़ा,लक्ष्मी रावत,योगिता भयाना सहित कई महिलाएं मौजूद रही।
जानें दिल्ली छावला गैंगरेप की खौफनाक घटना
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक निर्भया की ही तरह इस मासूम का नाम भी बदलकर अनामिका रखा गया था। वह मूल रूप से उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल की रहने वाली थी। दिल्ली में वह छावला के कुतुब विहार में रहती थी। 9 फरवरी 2012 को आम दिन की तरह अनामिका अपने काम से खाली होकर घर की ओर जा रही थी। तभी रास्ते में राहुल, रवि और विनोद नाम के तीनों आरोपियों ने लड़की को अगवा कर लिया। आरोपियों ने युवती संग गैंगरेप किया और इस दौरान हैवानियत की सभी हदें पार कर दीं। कार में रखे औजारों से उसे बुरी तरह पीटा, निजी अंग के साथ बर्बरता की और शरीर को सिगरेट से दागा। इसके बाद आरोपियों ने लड़की की आंखों में तेजाब डालकर उसे मार डाला। पुलिस ने इस मामले में राहुल, रवि और विनोद नाम के तीन लोगों को गिरफ़्तार किया था। इनकी पूछताछ के बाद पुलिस ने 14 फरवरी को दिल्ली से सटे हरियाणा के रेवाड़ी के एक खेत में से युवती की लाश बरामद की थी। पुलिस के अनुसार लाश बहुत ही बुरी हालत में थी।