उत्तराखंड के कुमाऊं की होली का अलग ही है रंग, अल्मोड़ा की होली है सबसे ज्यादा विश्वविख्यात, अल्मोड़ा में 150 साल पुरानी पारपंरिक होली की जाने कैसे हुई शुरुआत

आज 15 मार्च 2025 है। पूरा देश होली के जश्न में डूबा हुआ है। आज होली की छलड़ी मनाई जा रही है। रंगों के त्योहार, होली की तैयारियां देशभर में जोर शोर से की जा रही है। इस त्योहार में रंगों और पानी के साथ लोग जमकर मस्ती करते हैं। उत्तराखंड में भी होली की खूब धूम मची हुई है।

होली में अबीर-गुलाल की बौछार से रंग में डूबा‌ उत्तराखंड

उत्तराखंड में होली त्यौहार को सभी धर्मों के लोग बड़े उत्साह से मनाते हैं। उत्तराखंड में होली का त्यौहार सबसे ज्यादा लोकप्रिय त्यौहार माना जाता है। कुमाऊं में होली की शुरुआत 2 महीने पहले हो जाती है। अबीर-गुलाल के साथ ही होली गायन की विशेष परंपरा है। यहां की होली पूरी तरह से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय अंदाज में गाई जाती है। होली गायन गणेश पूजन से शुरू होकर पशुपतिनाथ शिव की आराधना के साथ साथ ब्रज के राधाकृष्ण की हंसी-ठिठोली से सराबोर होता है। अंत में आशीष वचनों के साथ होली गायन खत्म होता है।

कुमाऊं की होली का महत्व

माना जाता है कि कुमाऊं अंचल में बैठकी होली की परंपरा 15वीं शताब्दी से शुरू हुई। चंपावत में चंद वंश के शासनकाल से होली गायन की परंपरा शुरू हुई। काली कुमाऊं, गुमदेश व सुई से शुरू होकर यह धीरे-धीरे सभी जगह फैल गई और पूरे कुमाऊं पर इसका रंग चढ़ गया। कुमाऊं की होली में चीरबंधन व चीरदहन का भी खासा महत्व है। आंवला एकादशी को चीरबंधन होता है। हरे पैया के पेड़ की टहनी को बीच में खड़ा किया जाता है। उसके चारों ओर रंगोली बनाई जाती है। हर घर से चीर लाया जाता है और पैया की टहनी पर चीर बांधे जाते हैं। होली के 1 दिन पहले होलिकादहन के साथ ही चीरदहन भी हो जाता है। यह प्रह्लाद का अपने पिता हिण्यकश्यप पर सांकेतिक जीत का उत्सव भी है। घरों में होल्यारों को गुजिया व आलू के गुटके परोसे जाते हैं। होली में स्वांग का भी बड़ा महत्व है। यह महिलाओं में अधिक प्रचलित है। जैसे-जैसे होली नजदीक आती जाती है, हंसी-ठिठौली भी चरम पर होती है। महिलाएं पुरुषों का भेष बनाकर स्वांग रचती हैं। समाज व परिवार के किसी पुरुष के वस्त्रों को पहन और उसका पूरा भेष बनाकर उसकी नकल की जाती है। स्वांग सामाजिक बुराई पर व्यंग्य करने का एक माध्यम भी है।

बैठकी होली और खड़ी होली की परंपरा

उत्तराखंड की सबसे ज्यादा प्रसिद्ध होली अल्मोड़ा जिले की मानी जाती है। उत्तराखंड में अल्मोड़ा जिला ऐसा जिला है जहां औरतों और आदमियों दोनों की होली होती है। औरतों की जो होली होती है, उसे बैठक होली कहा जाता है और जो आदमियों की होली होती है उसे खड़ी होली कहा जाता है।‌ बैठक होली में आस पड़ोस की महिलाएं एवं उनके सभी रिश्तेदार होते हैं और ये सब मिलकर एक दिन में लगभग 5 से 6 घरों में बैठक होली का आयोजन करते है। इसमें महिलाएं सभी महिलाओं के आंगन या घर में बैठकर होली के गीत गाती हैं व नृत्य करती है। ये सभी महिलाएं होली के इस माहौल में खूब मनोरंजन करती है।

अल्मोड़ा की विश्वविख्यात होली

सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा की प्रसिद्ध व ऐतिहासिक होली काफी लोकप्रिय हैं। अल्मोड़ा में बैठकी होली का इतिहास 150 साल से भी ज्यादा पुराना माना जाता है‌। सैकड़ों वर्ष पूर्व अल्मोड़ा से इस कुमाउंनी बैठकी होली की परंपरा शुरू हुई। इस बैठकी होली की विशेषता यह है कि ये होली शास्त्रीय रागों पर गायी जाती है। वहीं इस होली की एक विशेषता यह है कि ये होली शिवरात्रि तक बिना रंगों के सिर्फ संगीत की होली होती है। शाम होते ही संगीत प्रेमियों द्वारा अपने-अपने घरों में शास्त्रीय रागों पर आधारित बैठकी होली का गायन शुरू हो जाता है। कुमाऊं में होली गीतों के गायन की शुरुआत अल्मोड़ा से हुई। कहा जाता है कि अल्मोड़ा में 1860 में इसकी शुरूआत की गई थी। होली में गाई जाने वाली बंदिशे विभिन्न रागों पर आधारित होती हैं जो समय के अनुसार गाये जाते है। बैठक में होली को गाए जाने का एक तरीका है। राग काफी, जंगला काफी, खमाज, देश, विहाग, जैजेवन्ती, जोगिया आदि रागों में होली के पद गाये जाते रहे है। होली रसिक बताते है कि अब कुछ नये रागों पर भी होली के पद गाये जाने की परंपरा शुरू हो गई है जो नई पीढ़ी ने शुरू की है।