पति-पत्नी के बीच सुलह नहीं होने पर नहीं करना होगा छः महीनों का इंतजार, उच्चतम न्यायालय ने सुनाया ये फैसला

उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि वह तलाक के असाध्‍य मामलों में संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल कर सकता है। ऐसा तभी संभव जब पति-पत्नी के बीच सुलह की सभी संभावनाएं समाप्त हो गई हो। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्‍यक्षता में संविधान पीठ ने कहा है कि हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी के अन्तर्गत तलाक लेने के लिए अनिवार्य छह महीने की अवधि को हटाया जा सकता है। इसके लिए दम्पति को पारिवरिक अदालत जाने की आवश्यकता नहीं होगी।

उच्चतम न्यायालय के पास किसी भी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आदेश देने का है अधिकार

तलाक मंजूर करने के मामलों में उच्चतम न्यायालय की विशेष शक्तियों के इस्तेमाल करने के संबंध में कई याचिकाए दायर की गई थीं। अनुच्छेद 142 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय के पास किसी भी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आदेश देने का अधिकार है।

मामले पांच साल पहले 29 जून 2016 को संविधान पीठ कौ सौंप दिया था

न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह और आर. बानूमती की खण्डपीठ ने एक याचिका पर इस मामले को  लगभग पांच साल पहले 29 जून 2016 को संविधान पीठ कौ सौंप दिया था।संविधान पीठ ने पिछले साल 29 सिंतबर को इस मुकदमे में फैसला सुरक्षित रख लिया था।अदालत ने कहा था कि सामाजिक परिवर्तन में ‘थोड़ा समय’ लगता है और कभी-कभी कानून लाना आसान होता है, लेकिन समाज को इसके साथ बदलने के लिए राजी करना मुश्किल होता है।