प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के शिल्पकार, अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का नेतृत्व करने वाले, वीरयोद्धा नाना साहब की जयंती आज,जानें

सन् 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के शिल्पकार, अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का नेतृत्व करने वाले, वीरयोद्धा नाना साहब पेशवा की आज  जयंती है । नाना साहब पेशवा धूंधूपंत का जन्म 19 मई 1824 में महाराष्ट्र के गांव वेणु में हुआ था। उनके पिता का नाम माधव नारायण था व माता का नाम गंगा बाई था । जब वह ढाई साल के थे तो उन्हें
1827 में बाजीराव पेशवा द्वितीय ने गोद ले लिया था । और बाजीराव पेशवा की मृत्यु के बाद 1851 में उन्होंने गद्दी संभाली ।

ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जंग-ए-आजादी के मैदान में उतर गए

वर्ष 1857 में जनक्रांति के जरिए अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने का आह्वान किया। उनके द्वारा जगाई गई चिंगारी 90 वर्ष बाद 1947 में ज्वाला बनी और देश को अंग्रेजी शासन से मुक्ति मिली ।
मेरठ छावनी से मंगल पांडेय ने अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ आजादी का बिगुल फूंका, जो गंगा किनारे स्थित बिठूर में सुनाई दिया। नानाराव पेशवा ने अपने सैनिकों के साथ ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जंग-ए-आजादी के मैदान में उतर गए। पेशवा के सिपाही अंग्रेजों  पर कहर बन कर टूट पड़े ।  कानपुर से उन्हें खदेड दिया, तो बदले में अंग्रेज फौज ने पलटवार किया। कई माह तक दोनों के बीच जंग चलती रही। अंत में अंग्रेजों ने बिठूर पर कब्जा कर पेशवा के महल को जमीजोद कर दिया। नानाराव घिरने के बाद भी बच निकले और फिर कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे।

अंग्रजों के हाथ लगा सोना

जब अंग्रेजों ने नाना साहेब के महल पर हमला किया, तो उन्हें  नाना साहेब तो नहीं मिले । लेकिन अंग्रेजों ने उनके महल को कुरेदना शुरू कर दिया । लगभग आधी ब्रिटिश सेना को काम पर लगा दिया गया। खजाने की खोज के लिए अंग्रेजों ने कुछ भारतीय जासूसों की भी मदद ली । जिसके चलते उनके हाथ खजाना मिल गया । इसके बाद भी अंग्रेजों को लगता था कि नाना साहेब खजाने का एक बहुत बड़ा हिस्सा अपने साथ ले गए हैं।

उनकी मौत आज तक रहस्य

इसके बाद  नेपाल के ’देवखारी’ गांव में रहते हुए नाना साहेब भयंकर बुख़ार से पीड़ित हो गए और इसी के परिणामस्वरूप मात्र 34 साल की उम्र में 6 अक्टूबर, 1858 को इनकी मौत हो गई। वहीं कुछ इतिहासकारों का मत है कि उन्हें मार दिया गया, तो कुछ कहते हैं कि वह गोपनीय तरीके से गायब हो गए। हालांकि सच क्या है ये आज तक राज ही है।