26 मार्च 1973 को चमोली के रैणी गांव में गौरा देवी के नेतृत्व में चिपको आंदोलन हुआ था। गौरा देवी महिलाओं को जंगल बचाने के लिए प्रेरित करती थीं। आज इस आंदोलन के 49 साल पूरे हो गये हैं । चिपको आंदोलन चमोली जिले के रैणी गांव से हरे-भरे पेड़ों को कटने से बचाने के लिए किया गया था ।जिसके बाद आंदोलन को मुखर होते देख केंद्र सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम बनाया था ।
महिलाओं ने ठेकेदारों का और मजदूरों का डटकर मुकाबला किया
26 मार्च 1973 को साइमन एंड कमीशन के मजदूर रैणी गांव में पेड़ों के कटान के लिए गए थे । प्रशासन की मदद से ही साइमन एंड कमीशन को पेड़ों को कटाने की अनुमति दी गयी थी । 26 मार्च को ही प्रशासन ने चमोली गाँव के लोग को तहसील में भूमि मुआवजे के लिए बुलाया । सुबह होते ही मजदूरों ने जैसे ही जंगल को आरी और कुल्हाड़ी लेकर दौड़ लगाई तो महिलाओं ने काफी हो हल्ला करना शुरू कर दिया । इसके बाद गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाओं ने ठेकेदारों का और मजदूरों का डटकर मुकाबला किया ।
ये जंगल हमारा मायका है
महिलाओं का कहना था कि ये जंगल हमारा मायका है । हमारी जान चली जाए पर हम इन्हें कटने नहीँ देंगे । इसके बाद जैसे ही जंगल कटने शुरू हुए । तो गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाओं ने एकजुट होकर पेड़ों से चिपकना शुरू कर दिया ।और परवाह किए बिना ही उन्होंने पेड़ों को घेर लिया और पूरी रात भर पेड़ों से चिपकी रहीं । अगले दिन यह खबर आग की तरह फैल गई और आसपास के गांवों में पेड़ों को बचाने के लिए लोग पेड़ों से चिपकने लगे । चार दिन के टकराव के बाद मजदूरों और ठेकेदारों को बैरंग हाथ लौटना पड़ा ।
सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम बनाया
वहीँ 1973 में शुरू हुए इस आंदोलन ने पर्यावरण को बचाने के सुर छेड़ दिए । और इसकी गूंज केंद्र सरकार तक पहुंच गयी ।आंदोलन को देखते हुए केंद्र सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम बनाया । इस अधिनियम का उद्देश्य वन की रक्षा करना और पर्यावरण को जीवित करना था । इसके बाद चिपको आंदोलन के चलते 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक विधेयक बनाया था । जिसके तहत सभी हिमालयी क्षेत्रों मेंवनों के काटने पर 15 सालों का प्रतिबंध लगा दिया गया था ।