देश की आईटी कैपिटल बेंगलुरु की सैर सर विश्वेश्वरय्या म्यूजियम के बगैर अधूरी है। यह देश के सबसे पुराने विज्ञान संग्रहालयों में से एक है। यहां इंजीनियरिंग और विज्ञान का अटूट संगम प्रस्तुत करने वाले तमाम मॉडल लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं और यही कारण है कि इस म्यूजियम को सर विश्वेश्वरय्या का नाम दिया गया है। दरअसल सर विश्वेश्वरय्या वो व्यक्ति थे, जिन्हें मशीनों से प्यार था, उन्होंने अपने अभियांत्रिकी गुणों का इस्तेमाल विकास की गाथा लिखने में किया। आज यानी 15 सितम्बर को उन्हीं की जयंती के अवसर पर देश भर में इंजीनियर्स डे यानी अभियंता दिवस मनाया जाता है।
भारत रत्न से नवाज़ा गया
सर विश्वेश्वरय्या को कर्नाटक का भगीरथ भी कहते हैं। जब वह केवल 32 वर्ष के थे, उन्होंने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को पानी की पूर्ति भेजने का प्लान तैयार किया जो सभी इंजीनियरों को पसंद आया। 1955 में उनके अभूतपूर्व कार्यों के लिए उन्हें भारत रत्न से नवाज़ा गया। 1962 में बीमारी के चलते उनका निधन हो गया
अभियांत्रिकी जौहर की शुरुआत हुई
15 सितंबर 1861 को सर विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर के कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर तालुक में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीनिवास शास्त्री तथा माता का नाम वेंकाचम्मा था। पिता संस्कृत के विद्वान थे और तेलुगू भाषी थे। अपने गॉंव में ही अपनी शुरुआती पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने बैंगलोर के सेंट्रल कॉलेज में दाखिला लिया। 1881 में बीए करने के बाद वे पुणे के साइंस कॉलेज में एलसीई व एफसीई करने चले गए। पुणे कॉलेज में उन्होंने प्रथम स्थान अर्जित किया। पढ़ाई के तुरंत बाद उन्होंने नासिक में सहायक इंजीनियर के पद पर अपनी सेवाएं देनी शुरू कीं और यहां से उनके अभियांत्रिकी जौहर की शुरुआत हुई।
अपने कार्यकाल में उन्होंने कई ऐसी संरचनाओं को साकार रूप दिया, उस दौरान भारत में जिसकी लोग कल्पना भी नहीं कर सकते थे। उनके कुछ प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं: –
* 1903 में सर विश्वेश्वरय्या ने ऑटोमेटिक वॉटर फ्लडगेट डिजाइन किए, जो जरूरत के हिसाब से बांध के पानी को रोकने का कार्य करता था। पहला ऑटोमेटिक फ्लडगेट पुणे के खडकवास्ला में इंस्टॉल किया गया।
* 1912 से 1918 में सर विश्वेश्वरय्या मैसूर के दीवान के पद पर रहे। यहां उनके पास मुख्य अभियंता की जिम्मेदारी भी थी। अपने इसी कार्यकाल के दौरान उन्होंने कृष्ण राजा सागर डैम का निर्माण कराया। उनके कार्यकाल में मैसूर का व्यापक रूप से कायाकल्प हुआ। उनकी इस डिजाइन का प्रयोग मध्य प्रदेश के टिगरा बांध और मैसूर के कृष्णराज सागर बांध पर भी किया गया।
* दक्षिण भारत के मैसूर, कर्र्नाटक को एक विकसित एवं समृद्धशाली क्षेत्र बनाने में एमवी का अभूतपूर्व योगदान है। भद्रावती आयरन एंड स्टील वर्क्स, मैसूर विश्वविद्यालय, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्टरी, बैंक ऑफ मैसूर समेत अन्य कई संरचनाएं सर विश्वेश्वरय्या के नेतृत्व में बनकर तैयार हुईं।
* कर्नाटक की सिंचाई व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए उन्होंने नए ब्लॉक सिस्टम को ईजाद किया। उन्होंने स्टील के दरवाजे बनाए, जिससे बांध के पानी को रोकने में मदद मिली।
* सर विश्वेश्वरय्या को 1917 में भारत की आर्थिक योजना का प्रणेता कहा जाता है। बेंगलुरु में उनके नाम से एक इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना की गई।