उत्तराखंड: पहले से भी कम ऊंचाई और अधिक दायरे में खिलने लगा है राज्य पुष्प, जानिये वजह

हिमालयी क्षेत्र में उगने वाले ब्रह्मकमल का उत्तराखंड और प्रकृति की सुंदरता बढ़ाने में बड़ा योगदान है। कुमाऊं-गढ़वाल की आस्था में ब्रह्मकमल का खास महत्व है। मुनस्यारी के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में खिला यह पुष्प प्रकृति की सुंदरता बढ़ा रहा है और पिछले सालों की अपेक्षा इस बार प्रचुर मात्रा खिला ब्रह्मकमल और इसका बढ़ा दायरा पर्यावरण प्रेमियों को आने वाले समय के लिए अच्छे संकेत दे रहा है। इस साल उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हुई अच्छी बारिश और सितंबर की शुरुआत में ही हुई बर्फबारी से ब्रह्मकमल का दायरा बढ़ा है। इस बार यह पुष्प महज तीन हजार मीटर पर ही खिल गया है

ब्रह्मकमल के खिलने का दायरा बढ़ा

आमतौर पर यह समुद्र तल से साढ़े तीन से चार हजार मीटर की ऊंचाई पर उगने वाला उत्तराखंड का राज्य पुष्प ब्रह्मकमल इस बार महज तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर खिल गया है। ब्रह्मकमल के इस बार बहुतायत में खिलने से यहां के जंगलों और बुग्यालों की रौनक बढ़ गई है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस पुष्प का दायरा बढ़ना और अधिक मात्रा में खिलना पर्यावरण के लिहाज से भविष्य के लिए सु:खद है। ब्रह्मकमल फूल आस्था के साथ ही औषधीय गुणों से भरपूर होता है। उत्तराखंड में पिछले वर्षों की तुलना में अधिक दायरे में ब्रह्मकमल इस बार खिला है और पहले से काफी कम ऊंचाई में खिला है।

ये औषधीय खूबियां हैं ब्रह्मकमल में

स्थानीय लोगों का मानना है कि ब्रह्मकमल को भिगाकर इस पानी को पिलाने से असाध्य रोगों के मरीजों का उपचार हो सकता है। इस पुष्प का इस्तेमाल सर्दी-जुकाम, हड्डी के दर्द आदि में भी किया जाता है। ब्रह्मकमल पुष्प का वानस्पतिक नाम सोसेरिया ओबोवेलाटा है और यह कई औषधीय गुणों से भरपूर भी माना जाता है। कैंसरग्रस्त मरीजों के लिए लाभदायक होने के साथ ही इसका प्रयोग अन्य रोगों की दवा के रूप में किया जाता है। मूलतः ये पिथौरागढ़ के छिपलाकेदार, कनार, बलाती, राजरंभा, सूरज कुंड, नंदा कुंड और रूरखान क्षेत्र में पाया जाता है।