बेटे की चाह में,
क्यों भटकते हैं लोग राह से,
बस दिखता है कुल, खानदान, अभिमान…..
क्यो? आखिर क्यो नहीं दिखती एक नन्ही सी जान…
जो आई नहीं अभी इस दुनिया में,
भेज दिया उसे इस दुनिया से
उस दुनिया में
क्यों? आखिर कब तक मारा जाएगा इन्हें कोख में ,
कब तक एक मां मरती रहेगी इनके शोक में
क्या ? आखिर क्या कसूर हैं इनका,
की है ये एक लड़की,
क्यो भूल जाता हैं समाज
इन्हीं से खुलती हैं हर घर की दरवाजा खिड़की..
पर अब इन कुरूतिओ को किनारा करें,
हर बेटी हर परी का सहारा बने फिर कहीं ऐसा न हो राह में,
फिर भटकते रहे सब बेटी की चाह में।
वर्तिका भगत