आज 19 जुलाई है। आज आजादी के नायक अमर शहीद मंगल पांडेय की 194वीं जयंती है। इस अवसर तमाम बड़े नेताओं ने देश के महान सपूत को श्रद्धांजलि दी। देश के इस वीर सपूत की शहादत ने देश में क्रांति के पहले बीज बोए थे। लेकिन इस वीर सपूत को जब अंग्रेजों ने फांसी की सजा सुनाई तो भारत के जल्लाद भी इस महान क्रांतिकारी को फांसी नहीं लगाना चाहते थे।
जाने कब हुआ था जन्म-
मंगल पांडे को आजादी का सबसे पहला क्रांतिकारी माना जाता है। भारत के क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई, 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम दिवाकर पांडे और मां का नाम अभय रानी था। वे कलकत्ता (कोलकाता) के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री की पैदल सेना के 1446 नंबर के सिपाही थे। भारत की आजादी की पहली लड़ाई यानी 1857 के संग्राम की शुरुआत उन्हीं के विद्रोह से हुई थी। जब उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ ‘मारो फिरंगी को’ नारा दिया तो कुछ ही दिनों में हर आदमी की जुबान पर यह नारा गूंज रहा था।
1857 की क्रांति भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम था, जिसकी शुरुआत मंगल पांडे के विद्रोह से शुरू हुई थी-
29 मार्च 1857 को मंगल पांडे ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला था। उन्होंने कलकत्ता के पास बैरकपुर परेड मैदान में रेजीमेंड के अफसर पर हमला कर उसे घायल किया था। 6 अप्रैल 1557 को मंगल पांडेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और 8 अप्रैल, 1857 के दिन पूरे भारत में मंगल पांडे के इस महान बलिदान की खबर सुना दी गई। इस दिन मंगल पांडे को फांसी दी गई। जिसमें कलकत्ता से 4 जल्लाद बुलाए गए, जो मंगल पांडे को फांसी नहीं देना चाहते थे। आज भी भारत में भारत के वीर क्रांतिकारी मंगल पांडे का नाम बड़े गर्व और आदर के साथ लिया जाता है।