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एक स्वतंत्रता सेनानी परिवार में जन्में प्रणब मुखर्जी स्वंय अपने जीवन में एक उतकृष्ट राजनेता, लेखक और सभी से प्रेम करने वाले व्यक्ति बने। किसी भी संकट को हल करने का उनका कौशल हो या फिर उनका सौम्य व्यवहार, उनकी प्रशासनिक क्षमता हो या फिर उनकी वाक कला इन सभी बातों के लिए वो जाने जाते रहे और यही वजह रही कि प्रणब मुखर्जी जब तक जिये हर कोई उनका कायल रहा। सरकार, संसद और समाज में उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता।
एक लंबे दौर तक लोगों के दिलों पर राज करने वाले पूर्व राष्ट्रपति एवं भारत रत्न प्रणब मुखर्जी अब हमारे बीच नहीं हैं। कड़ी मेहनत और अनुशासन के दम पर अपनी ख़ास शख्सियत गढ़ने वाले प्रणब मुखर्जी की आज जयंती है। इस मौके पर देश उन्हें याद कर रहा है। उनका जन्म आज ही के दिन पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में किरनाहार शहर के निकल मिराती गांव में 1935 में हुआ था। स्वतंत्रता सेनानी पिता कामदा किंकर मुखर्जी का प्रणब दा के जीवन पर गहरा प्रभाव रहा। रविंद्र संगीत की प्रख्यात गायिका शुभ्रा मुखर्जी से उनका विवाह हुआ। उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनिती शास्त्र में एम.ए के साथ-साथ वकालत की डिग्री हासिल की। शिक्षक और पत्रकार के तौर पर पेशेवर जीवन की शुरुआत की।
प्रणब मुखर्जी का राजनीतिक सफर
प्रणब मुखर्जी के राजनीतिक सफर की बात करें तो इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में 1969 में पहली बार वे कांग्रेस के टिकट पर राज्य सभा सदस्य बने। पांच दशक के अपने राजनीतिक जीवन में इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की सरकारों में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे। इंदिरा सरकार में 1973-74 में उद्योग मंत्रालय में उप-मंत्री और बाद में वित्त राज्य मंत्री बनाए गए। वर्ष 1982 में इंदिरा सरकार में देश के वित्त मंत्री बनाए गए। नरसिम्हा राव सरकार में योजना आयोग के उपाध्यक्ष बनाए गए। इसी सरकार में ही वाणिज्य मंत्री और विदेश मंत्री जैसे पदों को भी संभाला। मनमोहन सिंह सरकार में वर्ष 2004 से 2006 तक रक्षा मंत्री और 2006 से 2009 तक विदेश मंत्री रहे। वर्ष 2009 से 2012 तक वित्त मंत्री के तौर पर उन्होंने देश को अपनी सेवाएं प्रदान की। 2012 में प्रणब मुखर्जी को भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति के तौर पर चुना गया। प्रणब मुखर्जी ने तमाम अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत का बखूबी नेतृत्व किया। राजनीतिक तौर पर उनका जीवन सदा ही युवा पीढ़ी के लिए एक आदर्श नेता के तौर पर रहा।
आजादी की लड़ाई में भूमिका
प्रणब मुखर्जी के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे। बात उन दिनों की है, जब उनके पिता जेल में थे। लाहौर प्रस्ताव का पालन करने के लिए हर साल 26 जनवरी का तिरंगा फहराने का फैसला लिया गया। तब प्रणब के बड़े भाई पीयूष छत पर तिरंगा फहराते और नीचे प्रणब शपथ पढ़ा करते थे, जो कि बहुत लंबी होती थी। प्रणब की बहन अन्नपूर्णा ने कभी सोचा भी नहीं था कि उनका पलटू भी कभी राजनीति आकाश में छा जाएगा।
दादा की हाजिर जवाबी
संसद में प्रणब मुखर्जी ने अपनी पार्टी के लिए कई बार संकट मोचक की भूमिका निभायी। उनकी हाजिरी जवाबी और हर विषय पर गहन अध्ययन कमाल का था। अक्रॉस दा पार्टी लाइन लीडर उन्हें ऐसे ही नहीं माना गया, प्रणब हर किसी की बात गंभीरता से सुनते और फिर उन्हें राय रखने का मौका देते। इसके बाद ही फैसला लेते। जबतक सक्रिय राजनीति में रहे सुबह छह बजे उठकर रात दस बजे तक काम करना उनकी आदत में शुमार रहा।
कुल मिलाकर सहयोगियों के साथ-साथ राजनीतिक विरोधियों के दिलों में भी विशेष सम्मान रखने वाले प्रणब दा नेताओं की भीड़ में अपनी अलग पहचान के साथ हमेशा याद किए जाएंगे।
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