April 20, 2024

Khabribox

Aawaj Aap Ki

डॉ ललित योगी की स्वरचित कविता, विश्वदहन

लाशें बिछी हुई हैं यहां-वहां
जिंदगी बम के ढेरों में दबी है।
इंसानी आवाज जाने कहाँ गई
जहां तहां चीत्कार ही हो रही है ।।

इंसान की कीमत कुछ नहीं!
और हजारों लाश दफन हैं
यूक्रेन की धरती की कोख में
लाशों के असंख्य ढेर छुपे हैं।।

500 किलो के बमों को
लादकर ला रहे हैं-रॉकेट।
एक जगह बची थी-आसमान
अब वहां भी है दहशत।।

बम, बारूदों को भर भर
लाकर गिराया जा रहा है।
निर्दोषों पर कलजुगी दानव
कहर पर कहर ढा रहा है।।।

प्रेम बूटी जाने क्यों खो गयी है
हर तरफ मानवीयता रो रही है।
न बुद्ध हैं और न ही बचे हैं गांधी
हर तरफ साम्राज्य बढ़ाते नाजीवादी।।

रक्तधार बह रही है, अब और  ज्यादा
नगर और महानगर श्मशान हो रहे हैं।
दुःख है! मुझे कि विश्वबंधुत्व मर रहा है
यूक्रेन-रूस में वीभत्स बवंडर हो रहा है।।

बात महज इतनी नहीं कि दो देश लड़ मर रहे हैं!
बात यह है कि विश्व का दहन होना शुरू हुआ है।

डॉ. ललित योगी