अध्ययन एवं अनुसंधान पीठ के द्वारा विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय तरंग संगोष्ठी का आयोजन किया गया । इसका केंद्रीय विषय था :- ‘ हिंदी के विकास में देवनागरी लिपि की भूमिका ‘।इस संगोष्ठी के संयोजक प्रख्यात साहित्यकार आचार्य चंद्र थे। उन्होंने संदेश दिया कि हिन्दी भारत की अस्मिता का प्रतीक है उसका सम्मान करके ही भारत का गौरव द्विगुणित किया जा सकता है,राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी की घोषणा और राष्ट्र लिपि के रूप में देवनागरी कई घोषणा ही वस्तुतः हिंदी के लिए हमारी संकल्पित कृतज्ञता की परिचायक हो सकती है।इंडोनेशिया के हिंदी सेवी लेखक धर्मयश इसमें प्रवासी अतिथि के रूप में आमंत्रित थे। नागरी प्रचारिणी परिषद से डॉ .हरिसिंह पाल मुख्य वक्ता थे । महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय,वर्धा के मानविकी के संकायाध्यक्ष प्रोफेसर अनिल अंकित राय बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित थे।विशिष्ट अतिथि के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय संबंध के संकायाध्यक्ष प्रोफेसर अनिल राय कार्यक्रम की शोभा बढ़ा रहे थे।कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ संघ प्रचारक माननीय कृपाशंकर ने की।
ब्राह्मी लिपि से देवनागरी लिपि के उद्भव और विकास की यात्रा को देवनागरी लिपि की विशेषताओं और भूमिका पर गंभीर विमर्श किया
मुख्य वक्ता हरिसिंह पाल ने ब्राह्मी लिपि से देवनागरी लिपि के उद्भव और विकास की यात्रा को उद्घाटित करते हुए बहुत प्रभावी तरीके से देवनागरी लिपि की विशेषताओं और भूमिका पर गंभीर विमर्श किया।उन्होंने कहा कि समस्त भारतीय भाषाओं के लेखन में देवनागरी लिपि का प्रयोग करके निश्चित रूप से हिंदी को और अधिक सशक्त बनाया जा सकता है और इससे राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी की स्वीकार्यता और अधिक बढ़ जाएगी।
प्रोफेसर अनिल राय ने कहा कि देवनागरी विश्व की वैज्ञानिक लिपियों में से एक है और यह हिंदी की आक्षरिक विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करती है।
व्यक्तिगत दृष्टांतों के माध्यम से हिंदी और देवनागरी के प्रति निज आत्मीयता और गौरव की भावना को अभिव्यक्ति प्रदान की
इंडोनेशिया की हिंदी सेवी धर्मयश ने अपने व्यक्तिगत दृष्टांतों के माध्यम से हिंदी और देवनागरी के प्रति निज आत्मीयता और गौरव की भावना को अभिव्यक्ति प्रदान की।उन्होंने कहा देवनागरी के स्थान पर रोमन में लिखने पर वैदिक मंत्रों का अर्थ और स्वरूप भ्रष्ट हो जाता है।कुशल मंच संचालन करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय की ओजस्वी वक्ता प्रोफेसर माला मिश्र ने कहा हिंदी भारत की आत्मा है और देवनागरी लिपि उसकी सांस्कृतिक और भाषिक वाहिका।इसे देवलिपि के रूप में चिन्हित किया गया है।देवनागरी के माध्यम से हिंदी और हिंदी के माध्यम से भारतवर्ष को सशक्तता प्राप्त होगी।प्रोफेसर अनिल अंकित राय ने स्पष्ट शब्दों में संदेश दिया कि हिंदी ही भारतमाता के जन मन की भाषा है।
सोशल मीडिया ने हिंदी को नई गति प्रदान की
कार्यक्रम की अत्यंत शानदार अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ हिंदी सेवी साहित्यकार और मीडिया विशेषज्ञ संघ प्रचारक माननीय कृपाशंकर ने हिंदी के आधुनिक रूपों पर दृष्टिपात किया और कहा सोशल मीडिया ने हिंदी को नई गति प्रदान की है।आज हिंदी संस्कार के साथ व्यापार की भाषा भी बन गई है। न्यू मीडिया ने हिंदी को फिल्मी क्षेत्र के साथ साथ तकनीक के साथ कदमताल करना भी सिखाया है।लेकिन समस्त संभावनाओं के साथ इसकी लिपि के संरक्षण की भी परम आवश्यकता है।इस प्रकार देश – विदेश के विभिन्न विशेषज्ञों एवं प्रतिभागियों की सक्रिय बौद्धिक उपस्थिति ने इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रासंगिक विषय को धार प्रदान की।इस सार्थक संगोष्ठी का प्रभावी समापन युवा प्रखर वक्ता एवं मीडिया विश्लेषक डॉ .राकेश कुमार दुबे के आत्मीय आभार ज्ञापन से हुआ।उन्होंने कहा कि मनीषी वक्ताओं को आभार ज्ञापित करने का सबसे विनम्र तरीका यही हो सकता है कि उनके द्वारा सुझाये गए मार्ग पर चलकर हिंदी को उसका प्राप्य सम्मान और देवनागरी के रूप में अभिव्यक्ति की सशक्त पहचान दिलवाने में हम सभी के प्रयास लक्ष्य केंद्रित हों।
एक नए रचनात्मक संकल्प देवनागरी में ही लेखन के साथ संगोष्ठी सम्पूर्ण हुई
संस्कृत के प्रकांड पंडित प्रोफेसर निलिम्प ,श्याम सुंदर दुबे ,दक्षिण भारत की वयोवृद्ध डॉ .लक्ष्मी अय्यर ,भारतीय शिक्षा परिषद से माखनलाल , पंचनद शोध संस्थान से ऋचा चतुर्वेदी ने कार्यक्रम की सार्थकता एवं सफलता की भूरि भूरि प्रशंसा की।एक नए रचनात्मक संकल्प देवनागरी में ही लेखन के साथ संगोष्ठी सम्पूर्ण हुई।