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उच्चतम न्यायालय ने कल इच्छामृत्यु के बारे में अपने 2018 के आदेश में संशोधन किया है। न्यायालय ने मरणासन्न रोगियों से लाइफ सपोर्ट हटाने की प्रक्रिया को रोगियों, उनके परिवारों और डॉक्टरों के लिए कम बोझिल बनाने का प्रावधान किया है। उच्चतम न्यायालय ने उस शर्त को हटा दिया जिसमें एक गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति को लाइफ स्पोर्ट से हटाने के लिए मजिस्ट्रेट की स्वीकृति अनिवार्य थी।
दस्तावेज़ पर अब “लिविंग विल” पर दो साक्ष्यों की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए जाएंगे
न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि दस्तावेज़ पर अब “लिविंग विल” पर दो साक्ष्यों की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए जाएंगे। पीठ ने यह भी कहा कि गवाह और नोटरी इस बात की तसल्ली करेंगे कि दस्तावेज़ को स्वेच्छा से और बिना किसी दबाव या प्रलोभन या मजबूरी के और सभी की पूरी समझ के साथ निष्पादित किया गया है। अग्रिम निर्देश के रूप में लिविंग विल एक कानूनी दस्तावेज है जो एक व्यक्ति अपनी इच्छाओं को व्यक्त करने में असमर्थ होने की स्थिति में करना चाहता है या नहीं करना चाहता है। इच्छामृत्यु, दर्द या पीड़ा खत्म करने के लिए जानबूझकर किसी व्यक्ति का जीवन समाप्त करने की प्रक्रिया है।
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