March 29, 2024

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20 मार्च: विश्व गौरैया दिवस: विलुप्त हो रहीं हैं घर आंगन की रौनक गौरैया, बचाने के हर संभव प्रयास है जरूरी

आज 20 मार्च 2023 है। आज विश्व भर में गौरैया दिवस मनाया जा रहा है। दुनिया में आज गौरैया की प्रजातियां धीरे- धीरे विलुप्त होने के कगार पर हैं।घरेलू गौरैया (House sparrow) गौरैया पक्षियों के पैसर वंश की एक जीववैज्ञानिक जाति है, जो विश्व के अधिकांश भागों में पाई जाती है। आरम्भ में यह एशिया, यूरोप और भूमध्य सागर के तटवर्ती क्षेत्रों में पाई जाती थी लेकिन मानवों ने इसे विश्वभर में फैला दिया है। यह मानवों के समीप कई स्थानों में रहती हैं और नगर-बस्तियों में आम होती हैं। यह दिवस लोगों में गौरैया के प्रति जागरुकता बढ़ाने और उसके संरक्षण के लिए मनाया जाता है। बढ़ते प्रदूषण सहित कई कारणों से गौरैया की संख्या में काफी कमी आई है और इनके अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।

गौरैया की दुनियां में पाई जाती हैं विभिन्न प्रजातियां

शहरी इलाकों में गौरैया की छह तरह की प्रजातियां पाई जाती हैं। ये हैं हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो। इनमें हाउस स्पैरो को गौरैया कहा जाता है। यह गाँव में ज्यादा पाई जाती हैं। आज यह विश्व में सबसे अधिक पाए जाने वाले पक्षियों में से है। लोग जहाँ भी घर बनाते हैं देर सबेर गौरैया के जोड़े वहाँ रहने पहुँच ही जाते हैं।

गौरैया हर तरह की जलवायु में रहना करती हैं पसंद

गौरैया एक छोटी चिड़ियां है। यह हल्की भूरे रंग या सफेद रंग में होती है। इसके शरीर पर छोटे-छोटे पंख और पीली चोंच व पैरों का रंग पीला होता है। 14 से 16 से.मी. लंबी यह चिड़ियां मनुष्य के बनाए हुए घरों के आसपास रहना पसंद करती हैं। यह लगभग हर तरह की जलवायु पसंद करती है पर पहाड़ी स्थानों में यह कम दिखाई देती है। शहरों, कस्बों,गाँवों, और खेतों के आसपास यह बहुत पाई जाती हैं।

ऐसे करें नर और मादा गौरैया की पहचान

नर गौरैया के सिर का ऊपरी भाग, नीचे का भाग और गालों पर पर भूरे रंग का होता है। गला चोंच और आँखों पर काला रंग होता है और पैर भूरे होते हैं। मादा के सिर और गले पर भूरा रंग नहीं होता है। नर गौरैया को चिड़ा और मादा चिड़ी या चिड़िया भी कहते हैं।

मानव सभ्यता के साथ गौरैया का 5 हजार साल से भी ज्यादा पुराना नाता

गौरैया का इंग्लिश में नाम हाउस स्पैरो और इसका साइंटिफिक नेम है पासर डोमेस्टिकस है। इन दोनों नाम में हाउस और डोमेस्टिक दोनों आता है। क्या कभी सोचा है ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए क्योंकि गौरैया का मानव सभ्यता के साथ आज से कम से कम 5 हजार साल पुराना नाता है। गौरैया ने हमेशा ही मानव के साथ रहना पसंद किया है। जहां मानव की बस्ती है, सभ्यता है उसी स्थान पर गौरैया भी रहती थी। क्यों रहती थी इस प्रश्न का जवाब यह है कि पूराने समय में जब महिलाएं अपने छत पर गेंहू जैसे अनाज सुखातीं थीं, अनाज दरती थीं, तो उससे गौरैया को दाना-पानी मिलता रहता था और उनका जीवन आसानी से चलता था। जानकर आश्चर्य होगा कि गौरैया एक ऐसी चिड़ियां है जो जंगल में नहीं पाई जाती, घास के लंबे-बड़े मैदानों के आसपास नहीं पाई जाती है, पहाड़ों पर 7 हजार फीट के नीचे ही जहां मानव की गृहस्थी और बस्ती है वहीं इनका भी वास होता है। रेगिस्तान में भी जहां मनुष्यों का वास नहीं है वहां ये नहीं पाई जातीं।

पूरी दुनिया में 1980 के बाद गौरैया की संख्या में आई भारी कमी

दरअसल, 1980 के बाद से यह बात सामने आई है कि गौरैया की संख्या में भारी कमी आई है और यह कमी 80 प्रतिशत तक दर्ज की गई है। यह कमी सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि अमेरिका, युरोप समेत पूरी दुनिया भर में देखी गई है।

गौरैया के जीवन पर संकट आने का कारण है मानव की बदलती जीवन शैली

गौरैया की संख्या में कमी के कारण की बात करें तो वह है इनके रहने के स्थान, भोजन में कमी। सबसे पहले वो ऐसी जगहों पर रहती थी जहां लोगों के घर की दीवारों में कहीं टूटी-फूटी जगह होती थी। जैसे छेद, टूटे पाइप लाइन जहां प्रकाश और हवा आती थी ऐसी जगहों पर गौरैया का वास होता था लेकिन अब जिस तरह कंक्रीट की घरें बन रही हैं उसमें उनके लिए कोई जगह नहीं बची।

पर्यावरण प्रदूषण से भी गौरैया की संख्या में आई कमी

इसके अलावा पेड़ों का कटना, पर्यावरण प्रदूषण, कैमिकल का छिड़काव जिससे कीड़े-मकोड़ों की कमी के कारण उनके खाने पर असर हुआ। बता दें कि गौरैया सिर्फ अनाज ही नहीं बल्कि छोटे कीट, पतंगें, पत्तियां भी खाती हैं। ऐसे में कैमिकल के छिड़काव से उनके खाने पर असर हुआ। जिससे मानव के साथ गौरैया का जो 5 हजार सालों का संबंध था वह आज टूट चुका है। उनके जीवन पर संकट आया और आज स्थिति यह है कि गौरैया की संख्या 100 प्रतिशत से आज मात्र 20 प्रतिशत रह गई है।

मानव के प्रयासों से बढ़ सकती है गौरैया की संख्या

गौरैया की संख्या में भारी गिरावट आई है। जिसे ठीक करने के लिए थोड़ा प्रयास की जरूरत है। इसके लिए हम सबको अपने घर के छत के नीचे निकले हुए भाग में कार्ड बोर्ड आदि का घोसला बनाना चाहिए, ऐसा करने पर ये घरों के आसपास आ सकती हैं। घरों के आस पास दाना-पानी रख सकते हैं जिससे उन्हें खाने की खोज में दूर ना जाने पड़े, गौरैया को सबसे ज्यादा मिट्टी की दीवारें पसंद होती हैं लेकिन अब पुराने घरों में भी कमी आई है। जिससे गौरैया विलुप्त होती जा रहीं हैं।

मोबाइल टावरों से निकले वाली तंरगों को भी गौरैयों के लिए माना जाता है हानिकारक

बताते चलें कि पिछले कुछ सालों में शहरों में गौरैया की कम होती संख्या पर चिन्ता प्रकट की जा रही है। आधुनिक स्थापत्य की बहुमंजिली इमारतों में गौरैया को रहने के लिए पुराने घरों की तरह जगह नहीं मिल पाती। सुपरमार्केट संस्कृति के कारण पुरानी पंसारी की दुकानें घट रही हैं। इससे गौरैया को दाना नहीं मिल पाता है। इसके अतिरिक्त मोबाइल टावरों से निकले वाली तंरगों को भी गौरैयों के लिए हानिकारक माना जा रहा है। ये तंरगें चिड़ियां की दिशा खोजने वाली प्रणाली को प्रभावित कर रही हैं और इनके प्रजनन पर भी विपरीत असर पड़ रहा है जिसके परिणाम स्वरूप गौरैया तेजी से विलुप्त हो रही हैं। साथ ही इनकी घटती संख्या का एक कारण जंगलों का कम होना भी है। जिससे गौरैया जंगल छोड़कर शहरों में रहने के लिए प्रवास कर जाती हैं किंतु गौरैया शहरों में भी ज्यादा तापमान सहन नहीं कर सकती। प्रदूषण और विकिरण से शहरों का तापमान बढ़ रहा है, जिससे गौरैया की संख्या में कमी आ रही है।

विश्व गौरैया दिवस 2023 की थीम है “आई लव स्पैरो”

इस साल विश्व गौरैया दिवस 2023 की थीम है “आई लव स्पैरो”। विश्व गौरैया दिवस की स्थापना द नेचर फॉरएवर सोसाइटी के संस्थापक मोहम्मद दिलावर (Mohammed Dilawar) ने की थी। पहला विश्व गौरैया दिवस वर्ष 2010 में आयोजित किया गया था। 2011 में, वर्ल्ड स्पैरो अवार्ड्स की स्थापना की गई थी। यह पुरस्कार उन व्यक्तियों को दिया जाता है जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण और सामान्य प्रजातियों के संरक्षण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया हो।