03 जून: आज है ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत, नोट कर लिजिए पूजा विधि और जानें इसका महत्व

आज 03 जून 2023 है। आज वट सावित्री का व्रत है। आज ज्येष्ठ महीने की व्रत वाली पूर्णिमा है और कल, यानी 4 जून को स्नान-दान करने वाली। वट सावित्री का व्रत साल में 2 बार रखा जाता है। पहला ज्येष्ठ अमावस्या और दूसरा ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन रखा जाता है। सुहागिन महिलाएं अपनी पति की लंबी आयु के लिए इस व्रत को रखती है। इस बार दूसरे ज्येष्ठ अमावस्या के दिन यानी 3 जून को वट पूर्णिमा का व्रत किया जाएगा।

वट पूर्णिमा व्रत

आज वट पूर्णिमा का व्रत किया जा रहा है। ग्रंथों में इस व्रत को सौभाग्य और समृद्धि देने वाला बताया है। भविष्य और स्कंद पुराण के मुताबिक ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा पर वट सावित्री व्रत किया जाता है। इस दिन बरगद के पेड़ के नीचे भगवान शिव-पार्वती के बाद सत्यवान और सावित्री की पूजा की जाती है। साथ ही यमराज को भी प्रणाम किया जाता है। अपने पति की लंबी उम्र के लिए शादीशुदा महिलाएं ये व्रत करती हैं।

जानें शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, वट पूर्णिमा का व्रत शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन रखा जाता है। वट पूर्णिमा व्रत की पूजा के लिए 3 जून को सुबह और दोपहर में अच्छा मुहूर्त है। सुबह के समय पूजा के लिए 7 बजकर 7 मिनट से 8 बजकर 51 मिनट तक मुहूर्त रहेगा। इसके बाद दोपहर में 12 बजकर 20 मिनट से 2 बजकर 2 मिनट तक रहेगा। बता दें कि वट पूर्णिमा का व्रत मुख्य रूप से गुजरात, महाराष्ट्र समेत दक्षिण भारत के राज्यों में मनाया जाता है।

जानें पूजा विधि

वट पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठने और स्नान आदि के बाद सुहागन महिलाएं पूजा के लिए अपनी थाली में रोली, चंदन, फूल, धूप, दीप आदि सब रख लें। इसके बाद सभी सामग्री वट वृक्ष पर अर्पित कर दें। साथ ही कच्चे सूत स वट की परिक्रमा करें। इसके बाद वट वृक्ष के नीचे बैठकर सत्यवान सावित्री की कथा पढ़ें। इस व्रत का पारण अगले दिन सात चने के दाने और पानी के साथ किया जाता है।

जानें इसका महत्व

सनातन धर्म में पूर्णिमा का दिन देवी-देवताओं का दिन कहा गया है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से घर में सुख-समृद्धि आती है। मानसिक तनाव, चिंताएं और परेशानियां दूर होती हैं। पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण की कथा का भी विधान है साथ ही रात में देवी लक्ष्मी की पूजा से धन-संपत्ति में वृद्धि होती है। कहा जाता है कि इसी तिथि पर भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज में गोपियों संग रास रचाया था, जिसे महारास के नाम से जाना जाता है।