अल्मोड़ा जिले से जुड़ी खबर सामने आई है। उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी ने प्रदेश सरकार से पूछा है कि अल्मोड़ा में ऐतिहासिक सांस्कृतिक महत्व की पुरातात्विक धरोहर मल्ला महल( कचहरी )को प्रदेश सरकार एक रहस्यमय ट्रस्ट को क्यों सौंपना चाहती है।
उपपा के केंद्रीय अध्यक्ष पी.सी. तिवारी ने कही यह बात-
जिसमें उपपा के केंद्रीय अध्यक्ष पी.सी. तिवारी ने कहा कि देश व दुनिया अपनी सांस्कृतिक व पुरातात्विक धरोहरों को भावी पीढ़ी के लिए बड़े जतन से संजों कर रखती है।
लेकिन प्रबुद्ध सांस्कृतिक बौद्धिक नगरी अल्मोड़ा की इस कलाकृति को सरकार एक ऐसे ट्रस्ट को सौंप रही है जिसकी जानकारी सूचना अधिकार अधिनियम में भी नहीं दी जा रही है। जिसमें उपपा ने प्रदेश के मुख्यमंत्री से इस पूरे घपले घोटाले की उच्च स्तरीय जांच और दोषियों पर कार्रवाई करने की मांग की है। जिसमें उपपा ने आरोप लगाया कि प्रदेश की संस्कृति मंत्री इस पूरे प्रकरण में सब कुछ जानने के बावजूद भी चुप्पी साधे हैं। तिवारी ने कहा कि इस प्रदेश का हाल यह साबित कर रहा है कि जब मांझी ही नांव डुबोने पर तुला है तो उसे कौन बचाएगा।
16 वीं शताब्दी में राजा रूद्रचंद्र द्वारा बनाया गया था मल्ला महल-
उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष पी.सी. तिवारी ने कहा कि 16 वीं शताब्दी में राजा रूद्रचंद्र द्वारा बनाया गया मल्ला महल और उसमें 1588 में निर्मित रामशिला मंदिर उत्तराखंड व देश की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक धरोहर है। इस बीच इसके नाम पर करीब 16 करोड़ रुपए से काम शुरू हुआ जिसके निर्माण व संरक्षण एजेंसी ने संरक्षण की प्रक्रिया की धज्जियां उड़ाते हुए स्मारक को बहुत क्षति पहुंचाई है। जो एक अपराधिक कृति है जिसकी विशेषज्ञों से जांच ज़रूरी है। उपपा ने कहा कि करोड़ों रुपए के इस निर्माण कार्य में भारी घपला घोटाला है अब इस पूरे परिसर को मनमाने ढंग से एक ऐसे ट्रस्ट को सौंपा जा रहा है जिसमें अधिकारियों के दो तीन ख़ास चेहरे शामिल हैं जिनकी इस क्षेत्र में विशेषज्ञता संदिग्ध है। तिवारी ने कहा कि सूचना अधिकार में इस ट्रस्ट की जानकारी भी नहीं दी जा रही है।
सरकार को ऐतिहासिक संस्कृति बचाओ संघर्ष समिति से अनेक ज्ञापन भेजे-
उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष पी.सी. तिवारी ने कहा कि इस धरोहर को बचाने के लिए अल्मोड़ा की जनता एकजुट हुई व उन्होंने प्रदेश व केंद्र सरकार को ऐतिहासिक संस्कृति बचाओ संघर्ष समिति से अनेक ज्ञापन भेजे धरना प्रदर्शन किए और आरोप लगाया कि जनता जन प्रतिनिधियों को विश्वास में लिए बिना घटिया निर्माण कार्य किया जा रहा है। लेकिन तत्कालीन सरकार ने इस मांग की अनसुनी की और इस आंदोलन में शामिल लोगों को गिरफ्तार तक किया गया।