पण्डित दीन दयाल उपाध्याय जयंती, अंत्योदय के प्रणेता

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर 1916 को जयपुर के निकट धानक्या गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय था, जो नगला चंद्रभान (फरह, मथुरा) के निवासी थे
आज पं. दीन दयाल उपाध्‍याय की पुण्‍य तिथि है। उन्‍हीं ने ही देश को अंत्‍योदय का सही मतलब सिखाया। अंत्योदय यानि समाज के गरीब से गरीब व्यक्ति का कल्याण। 

बचपन से ही गरीबी और अभाव को झेला था

पंडित दीनदयाल उपाध्याय बचपन से ही गरीबी और अभाव को झेला था। ढाई साल की आयु में पिता का साया उठ गया और सात साल की आयु में माता भी चल बसीं। माता-पिता की छत्रछाया से वंचित होकर बचपन से ही वे रिश्तेदारों के आश्रय में शिक्षा के लिए भटकते रहे। नाना के पास गये तो दस साल की आयु में नाना का भी निधन हो गया। उसके बाद मामा के घर गये तो 15 साल की आयु में मामी का निधन हो गया। 18वें साल में छोटे भाई का मोतीझरा के कारण निधन हो गया। जब दसवीं पास की तो एकमात्र सहारा नानी भी चल बसीं। बाद में ममेरी बहन के पास रहने लगे तो एम.ए. की पढ़ाई करते हुए बहन का भी निधन हो गया और इस कारण एम.ए. फाइनल की परीक्षा नहीं दे सके।


अंत्योदयी योजक

दीनदयाल जी मानते थे कि समष्टि जीवन का कोई भी अंगोपांग, समुदाय या व्यक्ति पीड़ित रहता है तो वह समग्र यानि विराट पुरुष को विकलांग करता है। इसलिए सांगोपांग समाज-जीवन की आवश्यक शर्त है अंत्योदय। मनुष्य की एकात्मता तब आहत हो जाती है जब उसका कोई घटक समग्रता से पृथक पड़ जाता है। इसलिए समाज के योजकों को अंत्योदयी होना चाहिए। दीनदयाल जी ने एकात्म मानव के अंत्योदय दर्शन को अपने व्यवहार में जीया।

मंत्र का पालन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार कर रही है

वर्ष 2014 में भारतीय जनता पार्टी की ऐतिहासिक जीत का श्रेय नरेंद्र मोदी के प्रति देश के विश्‍वास के साथ-साथ पार्टी कार्यकर्ताओं की मेहनत को भी जाता है। खास तौर से पार्टी के अंत्योदय संगठन को। यह वो संगठन है, जो अंतिम पंक्ति में खड़े व्‍यक्ति की समस्‍याओं का हल करने के लिए बना है। दरअसल इस संगठन को बनाने के पीछे सुप्रसिद्ध विचारक एवं चिंतक दीनदयाल उपाध्याय की सोच है।  नीति निर्धारण में समाज के गरीब से गरीब व्यक्ति के कल्याण का दर्शन दीनदयाल जी ने 1950 के दशक में दिया। वे कहा करते थे कि सरकार में बैठे नीति-निर्माताओं को कोई भी नीति बनाते समय यह विचार करना चाहिए कि यह नीति समाज के अंतिम व्यक्ति यानि सबसे गरीब व्यक्ति का क्या भला करेगी? इसी मंत्र का पालन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार कर रही है।

अंत्योदयी योजक

दीनदयाल जी मानते थे कि समष्टि जीवन का कोई भी अंगोपांग, समुदाय या व्यक्ति पीड़ित रहता है तो वह समग्र यानि विराट पुरुष को विकलांग करता है। इसलिए सांगोपांग समाज-जीवन की आवश्यक शर्त है अंत्योदय। मनुष्य की एकात्मता तब आहत हो जाती है जब उसका कोई घटक समग्रता से पृथक पड़ जाता है। इसलिए समाज के योजकों को अंत्योदयी होना चाहिए। दीनदयाल जी ने एकात्म मानव के अंत्योदय दर्शन को अपने व्यवहार में जीया।

अल्प रोजगार भी बेकारी समान

आज विश्व की जनसंख्या करीब 7.8 अरब है, जिसमें करीब 60 करोड़ आबादी (2019 में) वंचित है। आज दुनिया में करीब 82 करोड़ लोग भूखे सोते हैं। भारत में यह संख्या करीब 20 करोड़ है। मनुष्यों के अलावा दुनिया में पशु-पक्षी और कीट-पतंग भी हैं। उनकी भी तो चिंता करनी होगी। इसलिए वैश्वीकरण और केन्द्रीयकरण जैसी बातें तब तक स्वीकार्य नहीं हो सकती जब तक विश्व में एक भी व्यक्ति वंचित है। दीनदयाल जी अंत्योदय के लिए लोकतंत्र को आवश्यक मानते हैं क्योंकि इससे राजनीति में समाज के अंतिम व्यक्ति की सहभागिता का आश्वासन मिलता है। इसी प्रकार वे आर्थिक लोकतंत्र को भी परम आवश्यक मानते हैं। वे कहते हैं, ‘प्रत्येक को वोट जैसे राजनीतिक प्रजातंत्र का निकष है, वैसे ही प्रत्येक को काम आर्थिक प्रजातंत्र का मापदंड है।

समाज के गरीब से गरीब व्यक्ति के कल्याण की बात करता है

दीनदयाल उपाध्याय का चिंतन जहां समाज के गरीब से गरीब व्यक्ति के कल्याण की बात करता है वहीं प्रत्येक क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी प्रेरित करता है। उनका चिंतन देश और समाज के समग्र विकास की गीता है।