कुमाऊंनी गीतों के स्टार कलाकार के रूप में तेजी से उभरे थे पप्पू कार्की, 9 जून 2018 में आज ही के दिन इस दुनिया को कह गए थे अलविदा

आज ही के दिन उत्तराखंड के मशहूर लोकगायक पप्पू कार्की का निधन हुआ था। पप्पू कार्की 34 साल की उम्र में आज ही के दिन कुछ साल पहले सड़क दुर्घटना में इस दुनिया को अलविदा कह गए थे। पप्पू कार्की ने पारंपरिक लोकगीतों को सहेजा और उन्हें संवारा भी था। पप्पू कार्की ने पारंपरिक लोकगीतों को नए कलेवर में ढालकर आज की युवा पीढ़ी के बीच लोकप्रिय बनाया।

पिथौरागढ के गाँव शेलावन में हुआ था जन्म-

पप्पू कार्की का जन्म पिथौरागढ के गाँव बेड़ीनाग तहसील की सैनर ग्राम पंचायत के शेलावन तोक में 1984 में हुआ था। उनके पिता कृषक थे। उनकी माँ का नाम कमला कार्की था। पप्पू कार्की अपने परिवार के इकलौते चिराग थे। पप्पू कार्की अपनी पत्नी कविता एवं 5 वर्षीय पुत्र दक्ष के साथ हल्द्वानी में किराए के मकान में रहते थे। पिथौरागढ़ के बेड़ीनाग निवासी लोक गायक पप्पू कार्की ने शुरुआती शिक्षा प्राथमिक विद्यालय हीपा से ग्रहण की। जूनियर हाईस्कूल की पढ़ाई जूनियर हाईस्कूल प्रेमनगर से की। हाईस्कूल राजकीय हाईस्कूल भट्टीगांव से किया।

हाईस्कूल के बाद नौकरी के लिए चले गए दिल्ली-

घर के आर्थिक हालात खराब होने के कारण पप्पू कार्की को हाईस्कूल के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी। जिसके बाद वह दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करने लगे। जहां दिल्ली में वे प्रिंटिंग प्रेस से लेकर पेट्रोल पम्प और चपरासी तक की नौकरी में करते रहे, फिर रुद्रपुर में फैक्ट्री में मजदूर भी रहे। पप्पू कार्की ने जिंदगी के इस ख़राब समय में भी लोकगीतों के लिए अपनी दीवानगी और सपने को नहीं मरने दिया।

पांच साल की उम्र से ही गाने का था शौक-

पप्पू कार्की पांच साल की उम्र से ही कान में हाथ लगा कर न्योली गाना शुरू कर दिया था। उनके गायन की प्रतिभा को बचपन में उनके रिश्ते के चाचा अध्यापक कृष्ण सिंह कार्की ने आंक लिया था। पप्पू कार्की होली, रामलीला एवं स्कूल में राष्ट्रीय पर्वों पर भी हमेशा गाते थे।

करना पड़ा खुब संघर्ष-

अपनी मंजिल के इस मुकाम तक पहुंचने के लिए पप्पू कार्की को काफी संघर्ष करना पड़ा। जिंदगी के समस्याएं उन्हें दिल्ली ले गयीं।

कई सुपरहिट कुमाऊंनी गीत गाए थे-

पप्पू कार्की के रिश्ते के चाचा व अध्यापक कृष्ण सिंह कार्की खुद लोक संगीत में रुचि रखते थे एवं कुमाऊंनी गीतों का एलबम बनाते थे। उन्होंने अपने एलबम ‘फौज की नौकरी में’ पप्पू को गाने का मौका दिया। उसके बाद 2002 में उनके अन्य एलबम ‘हरियो रूमाला’ में भी पप्पू ने गीत गाए। बाद में पप्पू ने 2003 में अपने पहले एलबम ‘मेघा’ से खुद के गाए गीतों के एलबमों की शृंखला शुरू की। पप्पू कार्की ने लोक गायक प्रहलाद महरा और नरेंद्र तोलिया के साथ मिलकर झम्म लागछी एल्बम रिकॉर्ड किया। 2010 में रामा कैसेटस की इस एल्बम के गीत ‘डीडीहाट की जमना छोरी’ सुपरहिट साबित हुआ। इसके बाद पप्पू कार्की ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद का उनकी संगीत यात्रा न सिर्फ उनकी कामयाबी की कहानी है बल्कि कुमाऊनी संगीत की यात्रा का भी एक अहम पड़ाव बना। पप्पू कार्की ने ऐसे लोकगीतों की झड़ी लगा दी जिस पर उत्तराखण्ड की 3 पीढ़िया थिरकती हैं। पप्पू कार्की ने 2017 में पीके इंटरप्राइसेस नाम से अपना खुद का स्टूडियो हल्द्वानी में खोला।

पप्पू कार्की को मिले थे कई सम्मान-

पप्पू कार्की ने वर्ष 2006 में दिल्ली में आयोजित उत्तराखंड आइडल में प्रतिभाग किया था। इसमें उन्हें दूसरा स्थान प्राप्त हुआ था। जिसमें 2006 में वे उत्तराखंड आइडल के रनर उप बने। वर्ष 2009 में मसूरी में आयोजित एक अवार्ड समारोह में उन्हें सर्वश्रेष्ठ नवोदित कलाकार का खिताब मिला। 2014 में बेस्ट सिंगर के लिए यूका अवार्ड से सम्मानित किया गया। वर्ष 2015 में मुंबई में गोपाल बाबू गोस्वामी अवार्ड भी मिला था। 

8 जून को गाया था गाना, जो हुआ था काफी हिट-

पप्पू कार्की के यू ट्यूब चैनल पीके एंटरटेनमेंट ग्रुप पर 8 जून 2018 को झोड़ा ऑडियो गाना ‘चांचरी’ अपलोड किया गया था। और उसके एक दिन बाद वह दुनिया को अलविदा कह गए। 9 जून 2018 की शाम 4 बजे इस गाने पर 63489 हिट्स थे और दो घंटे बाद ही हिट्स की संख्या 84224 पहुंच गई थी। उसके बाद लगातार यह गाना हिट हो रहा था। राज युवा महोत्सव में भी पप्पू कार्की ने यह गाना गाया था। इसी महोत्सव से लौटते वक्त 9 जून 2018  को सड़क हादसे में उनकी मौत हो गई।