पिथौरागढ: उत्तराखंड में विशिष्ट पहचान रखने वाली पिथौरागढ़ की हिलजात्रा को मिलेगी वैश्विक पहचान

उत्तराखंड से जुड़ी खबर सामने आई है। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ की हिलजात्रा प्रदेश में विशिष्ट पहचान रखती है।

इस योजना पर काम शुरू

जिसके बाद अब पिथौरागढ़ की हिलजात्रा को यूनेस्को की धरोहर में शामिल कराने की कोशिश शुरू हो गई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक संस्कृति विभाग की तरफ से जीबी पंत राजकीय संग्रहालय ने इस योजना पर काम शुरू कर दिया है। इसके तहत संस्कृति विभाग एक डाक्यूूमेंट्री को तैयार करेगा। इस कार्य के लिए जिला योजना से बजट मिलेगा। इन अनूठी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को यूनेस्को की धरोहर में शामिल करने का प्रस्ताव तैयार होगा।

दी यह जानकारी

इस संबंध में कुछ दिनों पहले जीबी पंत राजकीय संग्रहालय, अल्मोड़ा के निदेशक डॉ. चंद्र सिंह चौहान ने बताया हैं कि प्रस्ताव को तैयार कर पहले संगीत नाट्य अकादमी दिल्ली को जाएगा, फिर वहां से संस्कृति मंत्रालय जाएगा। संस्कृति मंत्रालय प्रस्ताव का परीक्षण करेगा। फिर मंत्रालय स्तर से यूनेस्को की धरोहर में शामिल करने की आगे की कार्रवाई होगी।

पिथौरागढ की हिलजात्रा

रिपोर्ट्स के मुताबिक सोरघाटी पिथौरागढ़ में मनाए जाने वाला एक ऐसा ही ऐतिहासिक लोकपर्व है हिलजात्रा। इस पर्व में इस्तेमाल होने वाले मुखौटे, दिखने में साधारण से लगने वाले इन मुखौटों का इतिहास करीब 500 साल पुराना है। जिसे नेपाल के राजा ने पिथौरागढ़ के कुमौड़ गांव में रहने वाले चार महर भाईयों को उनकी वीरता के प्रतीक के रूप में भेंट किये थे। इसके बाद से ही पिथौरागढ़ में इन मुखौटों का इस्तेमाल कर यहां हिलजात्रा नाम से उत्सव शुरू हुआ तभी से पिथौरागढ़ की सोरघाटी में ये पर्व बड़ी धूम धाम से मनाया जाता रहा है। मान्यता है कि भगवान शिव के 12वें गण लखिया की उत्पत्ति उनके क्रोध से हुई जिसके चलते लखिया हमेशा क्रोध में ही रहतें है। लखिया के क्रोध को शांत करने के लिए ग्रामीण फूल अक्षत से उनकी फूल अक्षत से उनकी अर्चना कर उन्हें मनाते हैं। इस अर्चना से लखिया खुश होते हैं और लोगों को धन धान्य का आशीर्वाद देते हैं।