इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अंग्रेजों के जमाने से अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाली शिक्षानगरी रुड़की वर्तमान में भी अपनी प्राचीन पहचान को कायम रखने में सफल है। दरअसल, शिक्षानगरी रुड़की की शान न केवल भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) से है बल्कि इलाके के कई बिना डिग्री के बेहतरीन अनुभव रखने वाले लोगों से भी हैं। जी हां, रुड़की के कुछ लोग ऐसे लोग भी हैं, जिनके आविष्कार को आज पूरी दुनिया में अलग पहचान मिल रही है। ऐसा ही एक आविष्कार इन दिनों खासा चर्चा में आया है।
200 साल पुराने पंखे को रेनोवेट कर किया आविष्कार
बताना चाहेंगे, इन दिनों केरोसिन फैन को लेकर रुड़की आम लोगों के बीच चर्चा में है। यहां के अरशद मूमान नामक व्यक्ति ने इसे बनाया है, जो करीब 200 साल पुराने पंखे को रेनोवेट कर तैयार किया गया है। इतने पुराने पंखे को एक नया रूप देना कोई आसान काम नहीं है।
भाप से चलने वाले इस पंखे की चर्चा आज देश में ही नहीं विदेश में भी
भाप से चलने वाले इस पंखे की चर्चा आज देश में ही नहीं विदेश में भी है। यह पंखा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकल फॉर वोकल की मुहिम को भी आयाम देता है। आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। यह भाप चालित पंखा इस कहावत का सटीक उदाहरण है। करीब 200 साल पहले जब ये पंखा वजूद में आया होगा तो शायद बिजली का किसी ने नाम भी न सुना हो। मगर आज जब पूरी दुनिया लाइट से जगमगा रही है, तो ऐसे समय भी इस भाप और केरोसिन चालित पंखे की चमक कम नहीं पड़ रही है। पहले यह सम्पन्न लोगों की गर्मी दूर भगाने के काम आता था।
पूर्वजों से मिला यह पंखा
रुड़की में रहने वाले अरशद मामून बताते हैं कि उनके पूर्वजों से यह पंखा उन्हें मिला है। इस पंखे को देखकर उन्होंने कुछ ऐसे ही भाप से चलने वाले पंखे को रेनोवेट किया है। पंखे की मांग देश के अलावा विदेश में भी है। अरशद मामून बताते हैं कि इसी पंखे से उनका कारोबार शुरू हुआ। लंबे अरसे से यह पंखा परिवार के भरण-पोषण का जरिया बना हुआ है। अरशद ने बताया यह भाप चालित पंखा मायानगरी मुंबई के लोगों को खूब रास आता है। स्पीड कम होने के कारण ज्यादातर लोग इसे शोपीस के रूप में रखते हैं।
इंजीनियरिंग की पढ़ाई और बिना डिग्री के अनुभव के कर दिखाया कमाल
बड़े संस्थानों के छात्र मॉडल तैयार कराने से लेकर प्रैक्टिकल के लिए अरशद की इस छोटी सी वर्कशॉप में आते हैं। बचपन से इंजीनियरिंग का हुनर रखने वाले अरशद का कहना है कि बिना इंजीनियरिंग की पढ़ाई और बिना डिग्री के यह अनुभव उनके पुरखों से मिला है। अरशद बताते हैं कि यह भाप का पंखा केरोसिन से चलता है। पहले पंखे के नीचे वाले हिस्से में तेल डालकर दीये के रूप में जलाया जाता है। इसके बाद पिस्टन की मदद से इसको चलाया जाता है।