शास्त्री जी की जयंती विशेष: लाल बहादुर शास्‍त्री के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएं जो आज भी देती हैं प्रेरणा

भारत के इतिहास में बेहद साधारण व्‍यक्तित्व की बात करें तो सबसे ऊपर पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का नाम आता है। उनकी सादगी ही लोगों के लिए सबसे बड़ी प्रेरणा थी। शास्‍त्री जी के जीवन के तमाम किस्से हैं, जो आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। आइये एक नज़र डालते हैं भारत के लाल, लाल बहादुर शास्‍त्री के जीवन की कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं पर। 

कई किलोमीटर लंबी गंगा नदी पार करके जाते थे स्कूल

2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश में मुगलसराय में जन्मे भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री बचपन से ही इतने मेधावी थे कि हरिश्चंद्र इंटर कॉलेज में पढ़ाई के दौरान प्रायः देरी से पहुंचने के बावजूद सजा के तौर पर कक्षा के बाहर खड़े रहकर ही पूरे नोट्स बना लिया करते थे। दरअसल वे घर से प्रतिदिन अपने सिर पर बस्ता रखकर कई किलोमीटर लंबी गंगा नदी को पार करके स्कूल जाया करते थे। वे गांधी जी के विचारों और जीवनशैली से बहुत प्रभावित थे।

11 वर्ष की आयु में असहयोग आंदोलन में हुए शामिल

महात्मा गांधी ने एक बार भारत में ब्रिटिश शासन का समर्थन कर रहे भारतीय राजाओं की कड़े शब्दों में निंदा की थी। शास्त्री जी उससे इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने मात्र 11 वर्ष की आयु में ही देश के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कुछ करने की ठान ली। जब वे सोलह वर्ष के थे, उसी दौरान गांधी जी ने देशवासियों से असहयोग आन्दोलन में शामिल होने का आह्वान किया था। शास्त्री जी ने उनके इस आह्वान पर अपनी पढ़ाई छोड़ देने का ही निर्णय किया। परिजन पढ़ाई-लिखाई छोड़ने के उनके निर्णय के सख्त खिलाफ थे लेकिन शास्त्री जी ने किसी की एक न सुनी और असहयोग आन्दोलन के जरिये देश के स्वतंत्रता संग्राम का अटूट हिस्सा बन गए। स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के बाद उन्होंने कई विद्रोही अभियानों का नेतृत्व किया और वर्ष 1921 से लेकर 1946 के बीच अलग-अलग समय में नौ वर्षों तक ब्रिटिश जेलों में बंदी भी रहे।

उपवास रखने की की थी अपील

कांग्रेस सरकार के गठन के बाद शास्त्री जी ने देश के शासन में रचनात्मक भूमिका निभाई। रेल मंत्री, परिवहन एवं संचार मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, गृहमंत्री तथा तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू की बीमारी के दौरान वे बगैर विभाग के मंत्री भी रहे। अपने मंत्रालयों के कामकाज के दौरान भी कांग्रेस पार्टी से संबंधित मामलों को देखते रहे। 1964 में जब वे देश के प्रधानमंत्री बने, तब भारत बहुत सारी खाद्य वस्तुओं का आयात किया करता था और अनाज के लिए एक योजना के तहत उत्तरी अमेरिका पर ही निर्भर था।

1965 में पाकिस्तान से जंग के दौरान देश में भयंकर सूखा पड़ा। अमेरिका द्वारा उस समय अपने एक कानून के तहत भारत में गेहूं भेजने के लिए कई अघोषित शर्तें लगाई जा रही थी, जिन्हें मानने से शास्त्री जी ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि हम भूखे रह लेंगे लेकिन अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं करेंगे। उसके बाद उन्होंने आकाशवाणी के जरिये जनता से कम से कम हफ्ते में एकबार खाना न पकाने और उपवास रखने की अपील की। उनकी अपील का देश के लोगों पर जादुई असर हुआ।

उन्हीं दिनों को याद करते हुए लाल बहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री कहते हैं कि एक दिन पिताजी ने घर के सभी सदस्यों को रात के खाने के समय बुलाकर कहा कि कल से एक हफ्ते तक शाम को चूल्हा नहीं जलेगा। बच्चों को दूध और फल मिलेगा और बड़े उपवास रखेंगे। एक हफ्ते बाद उन्होंने हम सबको फिर बुलाया और कहा कि मैं सिर्फ देखना चाहता था कि यदि मेरा परिवार एक हफ्ते तक एक वक्त का खाना छोड़ सकता है तो मेरा बड़ा परिवार अर्थात् देश भी हफ्ते में कम से कम एकदिन भूखा रह ही सकता है। दरअसल, उनकी सबसे बड़ी विशेषता यही थी कि जो कार्य वे दूसरों को करने के लिए कहते थे, उससे कई गुना ज्यादा की अपेक्षा स्वयं से और अपने परिवार से किया करते थे। उनका मानना था कि अगर भूखा रहना है तो परिवार देश से पहले आता है। वे ऐसे इंसान थे, जो खुद कष्ट उठाकर दूसरों को सुखी देखने में खुश और संतुष्ट होते थे।

गरीबी और अज्ञानता के खिलाफ जंग 

शास्त्री जी का कहना था कि हमारी ताकत और मजबूती के लिए सबसे जरूरी है लोगों में एकता स्थापित करना। वे प्रायः कहा करते थे कि देश की तरक्की के लिए हमें आपस में लड़ने के बजाय गरीबी, बीमारी और अज्ञानता से लड़ना होगा।

मृत्यु को रहस्य के रूप में

11 जनवरी, 1966 को ताशकंद में उन्होंने अंतिम सांस ली । 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद में पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर करार के महज 12 घंटे बाद (11 जनवरी) लाल बहादुर शास्त्री की अचानक मृत्यु हो गई । कुछ लोग उनकी मृत्यु को आज भी रहस्य के रूप में देखते है ।