आज पूरे देश में करवाचौथ का त्यौहार धूम धाम से मनाया जाएगा । इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए पूरे दिन निर्जल व्रत रखती है ।कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है । करवाचौथ हिंदुओं का खास तौर पर महिलाओं का ऐसा त्योहार है जो वह पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाती है । इस दिन महिलाएं पूरे नियमों का पालन करती हैं और चांद के दर्शन करने के बाद ही अपना व्रत तोड़कर पानी पीती हैं । पौराणिक कथा के अनुसार यह बात कही जाती है कि एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ा था। जिसमें दानव देवताओं पर हावी हुए जा रहे थे। तभी ब्रह्मदेव ने आकर सभी देवियों को करवा चौथ का व्रत करने को कहा। इस व्रत को करने से दानवों की हार हुई । और इसके बाद से ही कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन से करवा चौथ का व्रत रखने की परंपरा शुरू हुई।
आइये जाने करवा चौथ के व्रत संबंध में कई प्रचलित लोककथाएं –
देवी पार्वती ने की थी करवा चौथ की शुरुआत
पौराणिक कथाओं के अनुसार सबसे पहले इस व्रत को करने की शुरूआत देवी पार्वती ने भोलेनाथ के लिए की थी। इसी व्रत को करने से उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई थी। इसीलिए सुहागिनें अपने पतियों की लंबी उम्र की कामना से यह व्रत करती हैं।
लोक प्रचलित कथा
इसी तरह से पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री थी। जो अपने पति से बेहद प्रेम करती थी एक बार उसका पति जब नदी में स्नान करने गया था।तभी उसके पैर को मगर ने पकड़ लिया। उसने मदद के लिए अपनी पत्नि करवा को पुकारा। तब करवा ने अपनी सतीत्व के प्रताप से मगरमच्छ को एक कच्चे धागे से बांध दिया और यमराज के पास ले गई। करवा ने यमराज से विनती की उसके पति के प्राण बचाने के साथ मगर को मृत्युदंड की सजा दे। लेकिन यमराज इसके लिए तैयार नही हुए उन्होंने कहा कि मगरमच्छ की आयु अभी शेष है, समय से पहले उसे मृत्यु नहीं दे सकता। इस पर करवा ने यमराज से कहा कि अगर उन्होंने करवा के पति को चिरायु होने का वरदान नहीं दिया तो वह अपने तपोबल से उन्हें नष्ट होने का शाप दे देगी। इसके बाद करवा के पति को जीवनदान मिल गया और और मगरमच्छ को मृत्युदंड मिला ।
द्रौपदी के व्रत से पांडवों को मिली संकट से मुक्ति
करवा चौथ व्रत की एक और कथा महाभारत काल की मिलती है जिसमें बताया गया है कि एक बार अर्जुन नीलगिरी पर्वत पर तपस्या करने गए थे। उसी दौरान पांडवों के सामने एक बड़ा संकट आ गया। तब द्रोपदी ने श्रीकृष्ण से पांडवों के संकट से उबरने का उपाय पूछा। तभी श्रीकृष्ण ने उन्हें कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन करवा का व्रत करने को कहा। इसके बाद द्रोपदी ने यह व्रत रखा और पांडवों को जल्द ही संकटों से मुक्ति मिल गई।