देहरादून: कुदरत का करिश्मा कहें या दैवीय चमत्कार, बिना बीज बोए या बगैर पौध लगाए उगने वाले नगरास फूलों की भव्यता इसी अजूबे का बखान करती है। राज्य के जौनसार-बावर के सिद्धपीठ श्री महासू देवता मंदिर हनोल में सिर्फ फुलवारी की खुदाई कर के सैकड़ों वर्षों से उग रहे नगरास फूलों की भव्यता देखी जा सकती है और यह पूरे क्षेत्र में अपनी भव्यता और दुर्लभता के लिए विख्यात है। श्री महासू देवता की फुलवारी में चार माह तक खिलने वाले इस सुगंधित फूल का देव पूजा में बहुत अहम् स्थान माना जाता है।
आइये जाने इसकी मान्यता
स्थानीय लोगों की मान्यता है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व महासू मंदिर हनोल के देव फुलवारी में प्रतिवर्ष सावन मास के 25 गते की रात्रि को एक जंगली जानवर आता था और मंदिर की देव फुलवारी को रातोंरात अपने पंजों से खोदकर सुबह होने से पहले चला जाता था। ग्रामीण जब सुबह उठते थे तो देव फुलवारी की खुदाई देख हैरान रह जाते थे। बताया जाता है कि यहां की खुदाई का ये सिलसिला कई सालों तक चलता रहा। स्थानीय लोगों का मानना है कि स्थानीय तांदूर मुहासों ने इसकी जासूसी करना शुरू की और सावन मास के 25 गते की रात्रि को तांदूर मुहासे हथियारों से लैस होकर मंदिर के पास घात लगाकर बैठे रहे। और तभी उन्होंने देखा कि एक जंगली सुअर आकर पंजों से देव फुलवारी की खुदाई करने लगा। तांदूर मुहासों ने जंगली जानवर पर हमला किया और उसे मार गिराया।
इस घटना के बाद कई सालों तक देव फुलवारी की खुदाई नहीं होने से नगरास के फूल नहीं उगे जिसके परिणाम स्वरुप देवता का रोष तांदूर मुहासों को भुगतना पड़ा। इस पाप का प्रायश्चित करने के लिए तांदूर मुहासों ने महासू देवता के सामने गुहार लगायी। और माना जाता है कि देवता ने इसके प्रायश्चित के तौर पर तांदूर मुहासों को फावड़े-कुदाल से उसी तिथि को देव फुलवारी की खुदाई करने की आज्ञा दी। देवता की आज्ञानुसार तांदूर मुहासे हर साल फावड़े-कुदाल लेकर देव फुलवारी की खुदाई करने हनोल मंदिर आते हैं,और जहां राजगुरु के शंखनाद करने के बाद ढोल-बाजे के साथ यहां की खुदाई परंपरागत तरीके से शुरू की जाती है।
परंपरा का अनुसरण किया जाता रहेगा
स्थानीय लोगों का मानना है सैकड़ों वर्ष पहले करीब एक बीघा जमीन की खुदाई करने में जुटे 10 से 15 लोगों को फुलवारी खोदने में पांच से सात घंटे लगते थे और खुदाई के बाद महासू मंदिर की देव फुलवाड़ी में अक्टूबर से जनवरी माह के बीच सफेद व हल्के पीले रंग के सुगंधित नगरास के फूल उगते है। इसकी भव्यता देखते ही बनती है। जिसकी पातरी तीन महीने तक हर दिन मंदिर में शाम को होने वाली चौथे पहर की पूजा में चढ़ती है। इसके अलावा नगरास फूल देवलाड़ी माता और बाशिक महासू मंदिर मैंद्रथ, पवासी महासू मंदिर देवती-देववन और कुल्लू कश्मीर में उगते हैं।मंदिर के राजगुरु गोरखनाथ ने बताया कि देव फुलवारी में खुदाई पारंपरिक रूप से सैकड़ों वर्षों से की जा रही और आगे भी इस परंपरा का अनुसरण किया जाता रहेगा।