उत्तराखंड की बेटी ने बढ़ाया देश का मान,25 वर्षीय शीतल ने यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एल्ब्रुस पर तिरंगा फहराकर आजादी का जश्न मनाया

देश की बेटी ने एक बार फिर प्रदेश का मान बढ़ाने का गौरव हासिल कराया है। दरअसल, यहां बात हो रही है उत्तराखंड में कुमाऊं मंडल विकास निगम नैनीताल के एडवेंचर विंग में कार्यरत 25 वर्षीय शीतल की, जिन्होंने 75वें स्वतंत्रता दिवस के अमृत महोत्सव के अवसर पर यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एल्ब्रुस पर तिरंगा फहराकर आजादी का जश्न मनाया। वाकयी यह कोई साधारण कार्य नहीं था। असल में इसका अंदाजा तब लगाया जा सकता है, जब किसी पहाड़ चढ़ने वाले इंसान से उसकी यायावरी के किस्से सुनने को मिलें। लेकिन शीतल के बहादुरी भरे इस कारनामें के किस्से तो दुनिया अपनी जुबानी सुना रही है।

माउंट एल्ब्रुस की चढ़ाई

5,642 मीटर ऊंची यह चोटी रूस और जॉर्जिया की सीमा पर स्थित है। शीतल ने क्लाइम्बिंग बियॉन्ड द समिट्स (सीबीटीएस) द्वारा आयोजित चार सदस्यों की टीम का नेतृत्व करते हुए यह उपलब्धि हासिल की। सिर्फ इतना ही नहीं शीतल इससे पूर्व दुनिया की सबसे ऊंची एवरेस्ट, भारत की सबसे ऊंची कंचनजंगा और अन्नपूर्णा जैसे दुर्गम पर्वतों को फतह कर चुकी हैं। उनके नाम कंचनजंगा और अन्नपूर्णा को फतह करने वाली दुनिया की सबसे कम उम्र की महिला होने का रिकॉर्ड भी दर्ज है।

भारत के पहले जुड़वां भाई भी किया एल्ब्रुस फतह

उनकी यह कारनामा करने वाली टीम में राजस्थान के जुड़वां भाई तपन देव सिंह और तरुण देव सिंह भी एल्ब्रुस फतह करने वाले भारत के पहले जुड़वां भाई बने हैं। दोनों भाई शीतल से ही उत्तराखंड के कुमाऊं हिमालय की दारमा और व्यास घाटी में पर्वतारोहण सीख रहे हैं। आगे उनकी योजना 2023 में माउंट एवरेस्ट अभियान की शुरुआत करने की है। टीम के चौथे सदस्य केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से जिगमित थरचिन हैं, जिन्होंने इसी साल माउंट एवेरेस्ट को फतह किया है। वह केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के पहले युवा हैं, जिन्होंने यूरोप की सबसे ऊंची चोटी को फतह किया है।

टीम तीन दिन देरी से मास्को पहुंची थी

शीतल ने बताया कि 15 अगस्त को माउंट एल्ब्रुस को फतह करने के उद्देश्य से टीम ने योजना बनाई थी। अंतिम क्षणों में कोविड महामारी के कारण फ्लाइट रद्द होने के कारण टीम तीन दिन देरी से मास्को पहुंची। इसके बावजूद 13 अगस्त को 3,600 मीटर में अपना बेस कैंप बनाया और अगले दिन ही 14 अगस्त की रात को एल्ब्रुस को फतह करने के लिए निकले और 15 अगस्त को दिन के 1 बजे एल्ब्रुस की चोटी पर तिरंगा लहराकर आजादी का जश्न मनाया। 48 घंटे के अंदर बेस कैंप से चढ़कर यह कारनामा करना बहुत ही मुश्किल रहा। बहुत ही कम लोग ऐसा कर पाते हैं। उल्लेखनीय है कि एल्ब्रुस पर्वत कॉकस पर्वत शृंखला में स्थित एक सुप्त ज्वालामुखी है। इसके पश्चिमी शिखर 5,642 मीटर और पूर्वी शिखर 5,621 मीटर ऊंचे है।

बहुत ही गरीब परिवार से हैं शीतल

एवरेस्ट विजेता और सीबीटीएस के संस्थापक योगेश गर्ब्याल ने बताया कि शीतल बहुत ही गरीब परिवार से हैं। उसके पिता पिथौरागढ़ में लोकल टैक्सी चलाकर परिवार का पालन पोषण करते हैं। शीतल की पर्वतारोहण की क्षमता और उनकी प्रतिभा को देखकर विभिन्न संस्थाओं ने सहयोग किया। इसी साल शीतल को ‘द हंस फाउंडेशन’ ने दुनिया की सबसे खतरनाक माने जाने वाली चोटी अन्नपूर्णा के लिए स्पॉन्सर किया था। शीतल का लक्ष्य है कि वो दुनिया की 8,000 मीटर से ऊंची 14 सबसे ऊंची और दुनिया के सातों महाद्वीपों की ऊंची चोटियों पर देश का झंडा फहराए।