उत्तराखंड में चैत्र संक्रांति में फूलदेई पर्व के साथ-साथ विवाहित महिलाओं का एक अनूठा पर्व भिटौली चैत्र माह के अंतिम दिन तक मनाया जाता है। सदियों से यह परंपरा चली आ रही है। भिटौली में विवाहित महिलाओं के भाई या पिता अपनी बेटी या बहन के लिए उपहार स्वरूप पकवान लेकर उसके ससुराल जाते हैं।
कल से शुरू हो रहे चैत्र माह में सभी विवाहित महिलाओं को दी जाती है भिटौली:
उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में हर साल चैत्र में मायके पक्ष से पिता या भाई अपनी बेटी यां बहन के लिए भिटौली लेकर उसके ससुराल जाते हैं। पहाड़ी अंचल में आज भी महिला को चैत्र माह में भिटौली दी जाती है।
सदियों से चली आ रही है परंपरा:
सदियों से चली आ रही भिटौली परंपरा का महिलाओं को बेसब्री से इंतजार है। पहाड़ की महिलाओं को समर्पित यह परंपरा महिला के मायके से जुड़ी भावनाओं और संवेदनाओं को बयां करती है।
उत्तराखंड में यह परंपरा पुराने रूप में आज भी है जीवित:
हालांकि पहाड़ की बदलते स्वरूप, दूरसंचार की उपलब्धता, आवागमन की बढ़ी सुविधाओं के बाद यह परंपरा कम होती जा रही है, लेकिन प्रदेश के दोनों मंडलों के पहाड़ी क्षेत्रों में यह परंपरा पुराने रूप में जीवित है।
क्या है भिटौली:
भिटौली का सामान्य अर्थ है भेंट यानी मुलाकात करना। उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों, पुराने समय में संसाधनों की कमी, व्यस्त जीवन शैली के कारण विवाहित महिला को सालों तक अपने मायके जाने का मौका नहीं मिल पाता था। ऐसे में चैत्र में मनाई जाने वाली भिटौली के जरिए भाई अपनी विवाहित बहन के ससुराल जाकर उससे भेंट करता था।
फूलदेई से लेकर पूरे माह भर मनाया जाता है त्यौहार:
उपहार स्वरूप पकवान लेकर उसके ससुराल पहुंचता था। भाई बहन के इस अटूट प्रेम, मिलन को ही भिटौली कहा जाता है। सदियों पुरानी यह परंपरा निभाई जाती है। इसे चैत्र के पहले दिन फूलदेई से पूरे माहभर तक मनाया जाता है।