अल्मोड़ा: लिवलीहुड बेस्ड स्किल डेवलपमेंट ऑफ मशरूम कल्टीवेशन एंड बी कीपिंग थ्रू दि पार्टिसिपेशन ऑफ स्टेकहोल्डर ऑफ दि हिमालयन रीजन‘ विषय पर हुआ वेबिनार

अल्मोड़ा: वनस्पति विज्ञान विभाग, सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा और स्पर्धा, अल्मोड़ा के संयुक्त तत्त्वावधान में लिवलीहुड बेस्ड स्किल डेवलपमेंट ऑफ मशरूम कल्टीवेशन एंड बी कीपिंग थ्रू दि पार्टिसिपेशन ऑफ स्टेकहोल्डर ऑफ दि हिमालयन रीजन शीर्षक वेबिनार हुआ। मौनपालन और मशरूम उत्पादन को लेकर हुए इस वेबिनार में अतिथियों ने मशरूम उत्पादन और मौन पालन की उपयोगिता पर विस्तार से जानकारी दी।

मुख्य अतिथि के रूप में यह लोग रहे उपस्थित

इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 नरेंद्र सिंह भंडारी, रिसोर्स पर्सन के तौर पर डॉ0 पी0 एस0 नेगी (पूर्व वैज्ञानिक एफ, डीआरडीओ), रिसोर्स पर्सन के तौर पर स्पर्धा, बीज वक्ता डॉ0 एच0के0 बगवारी(VPO, रुद्रप्रयाग),  अल्मोड़ा के चीफ फंक्शनरी श्री दीप चंद्र बिष्ट, वेबिनार के संयोजक डॉ0 बलवंत कुमार, वेबिनार के आयोजक सचिव डॉ0 धनी आर्य, वेबिनार के संयुक्त सचिव डॉ0 सुभाष चंद्र, आयोजन सदस्य के रूप में डॉ0 मंजूलता उपाध्याय, डॉ0 मनीष त्रिपाठी, डॉ0 प्राची जोशी ने वेबिनार की शुरूआत की।  

मशरूम उत्पादन कर अपनी आर्थिकी को मजबूत किया है

इस अवसर पर वनस्पति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष और वेबिनार के संयोजक डॉ0 बलवंत कुमार ने कहा कि मशरूम उत्पादन कर यहां की महिलाएं और युवा आत्मनिर्भर हो रहे हैं। कोविड-19 के दौरान कई युवाओं ने घर वापसी कर मशरूम उत्पादन कर अपनी आर्थिकी को मजबूत किया है। उन्होंने कहा कि मौन पालन इस पर्वतीय क्षेत्र के अनुकूल है। हमें मौनपालन को बढ़ा देना होगा। हमे शहद उत्पादन कर अपने स्वास्थ्य और अपनी जीवन पद्धति को बेहतर करना होगा।उन्होंने  कहा कि विभाग में इस सत्र से दो सेमेस्टर का एक डिप्लोमा कोर्स का संचालन किया जा रहा है। इसमें 40 वर्ष तक के लोग  प्रवेश ले सकते हैं और किसी भी वर्ग से 12वीं उत्तीर्ण प्रवेशार्थी प्रवेश ले सकते हैं। जिसके लिए 40 सीटें निर्धारित की गई हैं। उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में मेहनती  युवाओं की कमी नहीं है कि बशर्ते कि उनको सही दिशा देने की। उनको इस महामारी के दौर में अपने गृहक्षेत्र में स्वरोजगार हेतु ऐसे पाठ्यक्रमों की आवश्यकता है। इस पाठ्यक्रमों को करके वह समाज में अन्य लोगों को भी जागरूक कर सकता है। उन्होंने कहा कि युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय एकमात्र ऐसे विश्वविद्यालयों से है जहां युवाओं को रोजगार दिलवाने वाले कोर्सों का संचालन किया जा रहा है। ऐसे पाठ्यक्रम नवीन शिक्षा नीति 2020 में भी सम्मिलित किए गए हैं।   उन्होंने वेबिनार के विभिन्न पक्षों पर बात रखी।  

डॉ0 एच0के0 बगवारी ने मौन पालन के विभिन्न पक्षों पर बात रखी

इस अवसर पर  बीज वक्तव्य देते हुए मंदाकिनी, वीपीओ रुद्रप्रयोग के डॉ0 एच0के0 बगवारी ने मौन पालन के विभिन्न पक्षों पर बात रखी। उन्होंने कहा कि ग्रामों की आर्थिक सशक्तता के लिए मौनपालन एक जरिया है। इससे हम ग्रामों को आत्मनिर्भर बना सकते हैं। युवाओं को इस स्वरोजगार से जोड़कर हम अपने अपने क्षेत्रों की निर्धनता को दूर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमें स्वरोजगार को अपनाना होगा। हमें मशरूम उत्पादन, मौनपालन को बढ़ावा देना होगा।

बहुत कम लागत में रोजगार के अनेक अवसर हैं

इस वेबिनार में रिसोर्स पर्सन के तौर पर डॉ0 पी0 एस0 नेगी (पूर्व वैज्ञानिक एफ, डीआरडीओ) ने मशरूम उत्पादन के विषय में प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में बहुत कम लागत में रोजगार के अनेक अवसर हैं। यह कम लागत का स्वरोजगार है जिसको ग्रामीण भी अपनी आर्थिकी का माध्यम बना सकते हैं।  मशरूम विटामिन एवं मिनरल का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। मधुमेह व रक्तचाप से पीडित व्यक्तियों के लिए यह अत्यंत लाभदायी होता है। इसका उत्पादन बहुत कम लागत में हो सकता है। उन्होंने अपने व्याख्यान में तीन तरह के मशरूम उत्पादन की जानकारी दी। उन्होने बताया कि हम पॉलथिन बैग्स में भी इनका उत्पादन कर सकते हैं। बटन मशरूम, ओइस्टर मशरूम व मिल्की मशरूम की उपयोगिता, भंडारण की विधि और सुरक्षा के उपायों पर भी चर्चा की। उन्होंने मशरूम उत्पादन के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि मशरूम उत्पादन को लेकर प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले लोग स्वरोजगार में हाथ आजमा रहे हैं। उनकी आर्थिकी बेहतर हो गई है।