रोल ऑफ एनटोमोफौना इन इकोसिस्टम रिस्टोरेशन एंड इम्पू्रविंग लाइवलीहुड ऑफ रूरल पीपुल थ्रू स्टेब्लिसमेंट ऑफ़ बेनिफिशियल इनसेक्ट्स बेस्ड स्माॅल, स्केल इंडस्ट्रीज‘ विषय पर हुआ सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा में वेबिनार

जंतु विज्ञान विभाग, सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा द्वारा ‘रोल ऑफ एंटोमोफौना इन इकोसिस्टम रिस्टोरेशन एंड इम्पू्रविंग लाइवलीहुड ऑफ रूरल पीपुल थ्रू इलस्टेब्लिसमेंट ऑफ़ बेनिफिशियल इनसेक्ट्स बेस्ड स्माॅल, स्केल इंडस्ट्रीज‘ विषय पर राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार में मुख्य अतिथि के रूप में कुलपति प्रो0 नरेंद्र सिंह भंडारी,  बीज वक्ता के रूप में प्रो0 चंद्रशेखर जे0 हिव्रे (पूर्व निदेशक, सेरीकल्चर, महाराष्ट्र सरकार और जंतु विभाग, बीएएमयू, औरंगाबाद, महाराष्ट्र), रिसोर्स पर्सन के तौर पर डाॅ0 नीलेंद्र जोशी (एंटोमोलाॅजी और प्लांट-पैथोलाॅजी विभाग, Arkansas,Fayetteville,USA), प्रो0 आर0 जे0 चवान (जंतु विज्ञान विभाग, बीएएमयू, औरंगाबाद, महाराष्ट्र), प्रो0 बी0 बी0 वाइकर (संकायाध्यक्ष, जंतु विभाग एवं साइंस एंड टेक्नाॅलाॅजी, बीएएमयू, औरंगाबाद, महाराष्ट्र), प्रो0 लक्ष्मीकांत वी0 शिंदे (विभागाध्यक्ष, जूलाॅजी, जेइएस काॅलेज, जलना, महाराष्ट्र), वेबिनार संयोजक प्रो0 इला बिष्ट (विभागाध्यक्ष, जंतु विज्ञान विभाग), वेबिनार संयोजक डाॅ0 संदीप कुमार (जंतु विज्ञान विभाग), वेबिनार सचिव डाॅ0 आर0 सी0 मौर्य (जंतु विज्ञान विभाग), वेबिनार सचिव डाॅ0 मुकेश सामंत (जंतु विज्ञान विभाग) ने शुभारंभ किया।

कुलपति प्रो0 नरेंद्र सिंह भंडारी ने अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किये

 उद्घाटन सत्र पर जंतु विज्ञान विभाग की अध्यक्ष और वेबिनार की समन्वयक प्रो0 इला बिष्ट ने वेबिनार के विषय, उद्देश्य और उसके विभिन्न सत्रों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने वेबिनार में अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत किया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में वेबिनार के वक्ताओं, प्रतिभागियों और आयोजन समिति को संबोधित करते हुए सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 नरेंद्र सिंह भंडारी ने कहा कि हम इस प्रकृति से जुड़े हुए हैं। मानव भी इस पर्यावरण व्यवस्था का एक अभिन्न हिस्सा है। इस प्रकृति में असंख्य जीव-जंतु, कीट विद्यमान हैं जो इस पर्यावरण की व्यवस्था को बनाने, उसकी निरंतरता को बनाए रखने में किसी-न-किसी प्रकार से अपना सहयोग दे रहे हैं। बीजों को उत्पादित करने, पौधों को बढ़ाने, मिट्टी की उर्वरकता, खाद बनाने में इन कीटों के योगदानों को भूल नहीं सकते। मिट्टी की उर्वरकता इन कीटों पर ही निर्भर है और ये कीट हमारी आजीविका से जुड़े हैं। किंतु जिस तरह से प्रकृति के साथ गलत व्यवहार किया जा रहा है। उससे पर्यावरण व्यवस्था ध्वस्त हो रही है। प्रकृति की निरंतरता बाधित हुई है। पर्यावरण व्यवस्था चरमराने की वजह से मानव-जीवन के साथ-साथ कीटों और जीव-जंतुओं पर भी इसका प्रभाव पड़ा है, जो इस प्रकृति की निरंतरता को बनाने में अपनी भूमिका निभाए हुए हैं। हमें पर्यावरण की व्यवस्था को बनाए रखने के लिए हरसंभव प्रयास करने होंगे। उन्होंने कहा कि हमारे आस-पास फैले हुए कीट फल, सब्जी, फसलों के उत्पादन आदि में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। हमें इनकी विविधता को बनाए रखना होगा। इन कीटों के सहयोग से विश्व की आर्थिक व्यवस्था सुदृढ हुई है। सेरीकल्चर और एपीकल्चर के संबंध में उन्होंने कहा कि इनके संवर्धन से हम छोटे-मझौले उद्योगों को बढ़ावा दे सकते हैं। हम ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ठीक कर सकते हैं। ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बना सकते हैं। हम उत्तराखंड की समाजार्थिक व्यवस्था को मजबूत बना सकते हैं।

डाॅ0 संदीप कुमार ने अपने संबोधन में यह कहा…

वेबिनार संयोजक डाॅ0 संदीप कुमार ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि पर्यावरण संतुलन में कीटों का योगदान काफी है। ये असंख्य कीट इस पर्यावरण को बेहतर बनाते हैं। ये इस पर्यावरण को बनाए रखने के बेहतर निर्माता हैं। उन्होंने कहा कि कीट इन सबके अलावा कई चीजें करते हैं, जो मानव नहीं कर सकते। जैसे सिल्क उत्पादन, शहर उत्पादन, लाख उत्पादन। पर्यावरण की निरंतरता को बनाए रखने के साथ-साथ कीट कई उत्पादन कार्य करते हैं। वह पर्यावरण की निरंतरता को बनाने के साथ-साथ इन सब कार्यों में अपना योगदान देते हैं। वेबिनार के संबंध में कहा कि इस वेबिनार के माध्यम से प्रतिभागी कीट फौना, रणनीति और सिद्धांत, कीटों को बचाने के के प्रयासों के साथ-साथ फौना को बचाने और उनके संवर्धन के विषय में विस्तार से प्रतिभागियों को जानकारी मिलेगी। जिससे सभी प्रतिभागी इस प्रर्यावरण के संरक्षण के लिए प्रयास कर सकें। उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्रों में कीटों के सहयोग से हम स्वरोजगार को अपनाकर आत्मनिर्भर बन सकते हैं।  

प्रो0 चंद्रशेखर जे0 हिवे्र ने तकनीकी सत्र में सेरीकल्चर के बारे में विस्तार से बात रखी

मुख्य वक्ता के रूप में प्रो0 चंद्रशेखर जे0 हिवे्र ने तकनीकी सत्र में सेरीकल्चर के बारे में विस्तार से बात रखी। उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए सेरीकल्चर एक रीढ़ की हड्डी की भांति है। सेरीकल्चर से हम लोगों को रोजगार मुहैया करा सकते हैं। हम निर्धनता को दूर कर धनी बन सकते हैं। ग्रामीण समाज को आत्मनिर्भर बनाने के लिए हम सेरीकल्चर को बढ़ावा दे सकते हैं। उन्होेने फ्लोरा और फाॅना को लेकर भी चर्चा करते हुए कहा कि यह देश इन सबकों लेकर समृद्ध है।

डाॅ0 नीलेंद्र जोशी ने  अपने व्याख्यान में यह कहा

रिसोर्स पर्सन के तौर पर डाॅ0 नीलेंद्र जोशी ने कहा कि विश्व में पच्चीस हजार नेटिव मधुमक्खी यों की प्रजातियां हैं जो परागकण के लिए अपना योगदान देती हैं। उन्होंने कहा कि 80 फीसदी फल, सब्जी, फूलों की फसलों में मधुमक्खी का योगदान प्राकृतिक परागकण के लिए होता है। उन्होंने नेटिव मधुमक्खी को सामान्य मधुमक्खियों की तुलना में ज्यादा बेहतर बताया और अपने व्याख्यान के माध्यम से नेटिव बी की आदतों, उनके संरक्षण के संबंध में भी विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने क्षेत्रीय फ्लोरा, मधुमक्खियों के रहने की सामग्री, उनके लिए आवश्यक सामग्री के विषय में भी प्रकाश डाला।

प्रो0 आर0 जे0 चवान ने चीटियों के योगदान और उनकी महत्वपूर्ण भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला

रिसोर्स पर्सन के तौर पर प्रो0 आर0 जे0 चवान ने पर्यावरण को बनाए रखने, मिट्टी के बायोटर्बेशन, इरेजन और चीटियों के योगदान और उनकी महत्वपूर्ण भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला।
रिसोर्स पर्सन के तौर पर प्रो0 बी0 बी0 वाइकर ने मधुमक्खी और परागकण के संबंध में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि हम कृषि उत्पादन के साथ-साथ मौन पालन को बढ़ावा दे सकते हैं। उन्होंने मधुमक्खी द्वारा किए जाने वाले परागकण के संबंध में विस्तार से बात रखी।साथ ही कहा कि हम इनके माध्यम से उत्तम फल और फसलों के बीज उत्पादित कर सकते है। उन्होंने विभिन्न मधुमक्खियों के शहद उत्पादन प्रक्रिया पर चर्चा करते हुए कहा कि शहद का एक दवा के रूप में प्रयोग होता है। हमें मौन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए छोटे उद्यमियों को प्रोत्साहन देना होगा।  

प्रो0 लक्ष्मीकांत वी शिंदे ने मच्छरों की विविधता पर विस्तार से व्याख्यान दिया

रिसोर्स पर्सन के तौर पर प्रो0 लक्ष्मीकांत वी शिंदे ने मच्छरों की विविधता पर विस्तार से व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि मच्छर एक बेहतर जैव दिशा निर्देशक होते हैं। उनके अनुसार मच्छर, विश्व की 07 फीसदी अर्थव्यवस्था सूक्ष्म जैविक शस्त्र के रूप में तय करती है। उन्होंने कहा कि भारत में मिलने वाले मच्छर केवल तीन जीनस के अंतर्गत पाई जाती हैं। उन्होेंने मच्छर और पर्यावरण के संबंध में विस्तार से चर्चा की।    

यह लोग रहे मौजूद

वेबिनार के सचिव डाॅ0 आर0 सी0 मौर्य ने सभी अतिथियों, वक्ताओं और प्रतिभागियों का आभार जताया तथा संचालन सुश्री दीक्षा सती ने किया।
इस वेबिनार में सचिव डाॅ0 मुकेश सामंत, आयोजन समिति के सदस्य रूप में वेनी पांडे, डाॅ0 सतीश चंद्र पांडे, शोभा उपे्रती, दीक्षा सती, सन उल्लाह भट आदि सहित देश-विदेश के सैकड़ों जंतुविज्ञानी, विद्वान, शिक्षक, छात्र-छात्राएं, शोधार्थी मौजूद रहे।