April 20, 2024

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विश्व एड्स दिवस 2021 : जानें कहां से और कब आया एचआईवी का पहला मामला, स्वास्थ्य विशेषज्ञ की महत्वपूर्ण सलाह

1988 से हर साल 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है। यह जागरूकता बढ़ाने, शिक्षित करने और वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में एचआईवी के बारे में समझ विकसित करने के प्रति समर्पित दिवस है। लेकिन एड्स विश्व भर में आज भी एक भयावह शब्द है, जिसे सुनते ही भय के मारे पसीना छूटने लगता है। एड्स (एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिन्ड्रोम) का अर्थ है शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता कम होने से अप्राकृतिक रोगों के अनेक लक्षण प्रकट होना।

एचआईवी संक्रमण के बाद ऐसी स्थिति बन जाती है कि इससे संक्रमित व्यक्ति की मामूली से मामूली बीमारियों का इलाज भी दूभर हो जाता है और रोगी मृत्यु की ओर चला जाता है। आज भी यह खतरनाक बीमारी दुनियाभर के करोड़ों लोगों के शरीर में पल रही है। एड्स महामारी के कारण अफ्रीका के तो कई गांव के गांव नष्ट हो चुके हैं। ‘रॉयटर्स’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1980 के दशक में एड्स महामारी शुरू होने के बाद से 77 मिलियन से भी अधिक लोगों में इसका वायरस फैल चुका है। वर्ष 2017 में विश्वभर में करीब 40 मिलियन लोग एचआईवी संक्रमित थे।

एड्स का इतिहास

अमेरिका में न्यूयॉर्क तथा कैलिफोर्निया में 1981 में जब न्यूमोसिस्टिस न्यूमोनिया, कपोसी सार्कोमा तथा चमड़ी रोग जैसी असाधारण बीमारी का इलाज करा रहे पांच समलैंगिक युवकों में एड्स के लक्षण पहली बार मिले थे। देखते ही देखते यह बीमारी तेजी से दुनिया भर में फैलने लगी तो हंगामा मच गया था। चूंकि जिस समय उन मरीजों में एड्स के लक्षण देखे गए थे, वे सभी समलैंगिक थे इसलिए उस समय इस बीमारी को समलैंगिकों की ही कोई गंभीर बीमारी मानकर इसे ‘गे रिलेटेड इम्यून डेफिशिएंसी’ (ग्रिड) नाम दिया गया था।

इन मरीजों की शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता
असाधारण रूप से कम होती जा रही थी लेकिन कुछ समय पश्चात् जब दक्षिण अफ्रीका की कुछ महिलाओं और बच्चों में भी इस बीमारी के लक्षण देखे जाने लगे, तब जाकर यह धारणा समाप्त हुई कि यह बीमारी समलैंगिकों की बीमारी है। गहन अध्ययन के बाद पता चला कि यह बीमारी एक सूक्ष्म विषाणु के जरिये होती है, जो रक्त एवं यौन संबंधों के जरिये एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचती है। तत्पश्चात् इस बीमारी को एड्स नाम दिया गया, जो एचआईवी नामक वायरस द्वारा फैलती है। यह वायरस मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली पर हमला करके मानव रक्त में पाई जाने वाली श्वेत रक्त कणिकाओं को नष्ट करता है और धीरे-धीरे ऐसे व्यक्ति के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता पूरी तरह नष्ट हो जाती है। यही स्थिति ‘एड्स’ कहलाती है।

भारत में पहला केस

भारत में 1986 में एड्स का पहला मामला सामने आया था। उसके बाद से बीते वर्षों में एड्स के ढेरों मामले सामने आए। अगर एड्स के कारणों पर नजर डालें तो मानव शरीर में एचआईवी का वायरस फैलने का मुख्य कारण हालांकि असुरक्षित सेक्स तथा अधिक पार्टनरों के साथ शारीरिक संबंध बनाना है लेकिन कई बार कुछ अन्य कारण भी एचआईवी संक्रमण के लिए जिम्मेदार होते हैं। शारीरिक संबंधों द्वारा 70-80 फीसदी, संक्रमित इंजेक्शन या सुईयों द्वारा 5-10 फीसदी, संक्रमित रक्त उत्पादों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया के जरिये 3-5 फीसदी तथा गर्भवती मां के जरिये बच्चे को 5-10 फीसदी तक एचआईवी संक्रमण की आशंका रहती है।

एड्स पीडि़तों से भेदभाव

डब्ल्यूएचओ तथा भारत सरकार के सतत प्रयासों के चलते हालांकि एचआईवी संक्रमण तथा एड्स के संबंध में जागरुकता बढ़ाने के अभियानों का कुछ असर दिखा है और संक्रमण दर घटी है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2010 से अभीतक एचआईवी संक्रमण की दर में करीब 46 फीसदी की कमी आई है जबकि इस संक्रमण की वजह से होने वाली मौतों का आंकड़ा भी 22 फीसदी कम हुआ है। फिर भी भारत में एड्स के प्रसार के कारणों में आज भी सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर स्वास्थ्य संबंधी जागरुकता एवं जिम्मेदारी का अभाव, अशिक्षा, निर्धनता, अज्ञानता और बेरोजगारी प्रमुख कारण है।

अधिकांशतः लोग एड्स के लक्षण उभरने पर भी बदनामी के डर से न केवल एच.आई.वी. परीक्षण कराने से कतराते हैं बल्कि एचआईवी संक्रमित किसी व्यक्ति की पहचान होने पर उससे होने वाला व्यवहार बहुत चिंतनीय है। इस दिशा में लोगों में जागरुकता पैदा करने के संबंध में सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा भले ही कितने भी दावे किए जाएं पर एड्स पीड़ितों के साथ भेदभाव के सामने आने वाले मामले, विभिन्न राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटियों एवं सरकारी तथा गैर सरकारी प्रयासों की पोल खोलते नजर आते हैं।

कारण, लक्षण और बचाव के बारे में स्वास्थ्य विशेषज्ञ की महत्वपूर्ण सलाह

एचआईवी का संक्रमण एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या है, वैसे तो किसी को भी हो सकता है, लेकिन कुछ लोगों में इसका खतरा ज्यादा होता है। एम्स में मेडिसिन विभाग में प्रोफेसर डॉ संजीव सिन्हा बताते हैं कि इस संक्रमण को मरीज में जब 4-5 साल हो जाते हैं तब कई अलग-अलग लक्षण आने लगते हैं जिनमें दस्त लगना, वजन घटना, बुखार होने लगता है। इसके अलावा खांसी-बलगम आना, कई दूसरे तरह के संक्रमण होना, टीबी की समस्या होना शामिल हैं।

संकेत एवं लक्षण

> एचआईवी के लक्षण संक्रमण के स्तर के आधार पर भिन्न होते हैंI प्रारंभिक संक्रमण के बाद पहले कुछ हफ़्तों में व्यक्ति को किसी तरह के लक्षणों का अनुभव नहीं होता है या बुखार, सिरदर्द, दाने या गले में ख़राश सहित इन्फ्लूएंजा जैसे लक्षण महसूस हो सकते है।

> संक्रमण बढ़ने पर किसी व्यक्ति में अन्य संकेत एवं लक्षण जैसे कि लिम्फ नोड्स में सूजन, वज़न में कमी, बुखार, दस्त और खांसी हो सकती है।

> उपचार के बिना उनमें गंभीर रोगों जैसे कि तपेदिक, मेनिन्जाइटिस, गंभीर बैक्टीरियल संक्रमण और कैंसर विकसित हो सकता हैं।

बचाव या इलाज

डॉ. सिन्हा बताते हैं कि हाई रिस्क वाले मरीज या एचआईवी के लक्षण हैं उन्हें तुरंत एआरटी सेंटर जाना चाहिए, जो हर अस्पताल में मौदूज होता है। एचआईवी का वायरस शरीर में पहुंच कर सीधे CD-4 कोशिकाओं पर हमला करता है और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देता है। इसलिए अगर सही समय पर इलाज न किया जाए तो मरीज की स्थिति बिगड़ने लगती है।

एड्स के लिए जागरूकता सबसे बेहत्तर रोकथाम है। एचआईवी संक्रमण का कोई उपचार नहीं है। हालांकि, प्रभावी एंटीरिट्रोवाइरल (एआरवी) दवाएं वायरस को नियंत्रित करती हैं तथा वायरस फैलने में मदद करती हैं। एंटीरेट्रोवाइरल (एआरवी) थेरेपी के माध्यम से एचआईवी से पीड़ित लोग और पर्याप्त ज़ोखिम वाले लोग स्वस्थ, दीर्घ और रचनात्मक जीवन का आनंद ले सकते हैं।

एचआईवी से बचाव के सामान्य उपाय

> डॉ. सिन्हा बताते हैं कि इसके लिए जरूरी है प्रोटेक्टेड सेक्स करना चाहिए। कंडोम का प्रयोग करें, मल्टीपल पार्टनर नहीं होने चाहिए।

> अगर कोई गर्भवती मॉं एचआईवी से संक्रमित है तो उन्हें डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए और जरूरी दवाओं का सेवन करना चाहिए बच्चा इस वायरस से सुरक्षित रहे।

> इसके अलावा एंटी नेटल क्लिनिक में एचआईवी की जांच कराएं

> संक्रमण रहित खून ही चढ़ाएं

> साफ और संक्रमण रहित सुई या सिरिंज का प्रयोग करें

कैसे नहीं फैलता एचआईवी

> गले मिलने, हाथ मिलाने, तौलिया साझा करने, खाना बांटने या एचआईवी-पॉजिटिव पीड़ित के साथ खाना खाने से यह नहीं फैलता है।

> मच्छरों, टिक या अन्य रक्त-चूसने वाले कीटों से एचआईवी नहीं फैलता है।

डॉ. सिन्हा का कहना है कि बचाव के लिए जरूरी है कि एचआईवी संक्रमण के बारे में जानकारी हो, जोखिम भरे व्यवहार से बचाव किया जाए। सावधानी अपनाकर एचआईवी के संक्रमण से बचा जा सकता है। इसके लिए सबसे जरूरी जागरूकता है।