आज 7 जुलाई है। आज उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोकगायिका कबूतरी देवी की पुण्यतिथि है। उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोक गायिका और राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित कबूतरी देवी का 7 जुलाई 2018 को निधन हुआ था।
प्रसिद्ध लोकगायिका कबूतरी देवी का जन्म-
उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोकगायिका कबूतरी देवी का जन्म 1945 में चमोली जिले के एक मिरासी (लोक गायक) परिवार में हुआ था। संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा इन्होंने अपने गांव के देब राम और देवकी देवी और अपने पिता रामकाली से ली। जो उस समय के एक प्रख्यात लोक गायक थे। लोक गायन की प्रारम्भिक शिक्षा इन्होंने अपने पिता से ही ली। पहाड़ी गीतों में प्रयुक्त होने वाले रागों का निरन्तर अभ्यास करने के कारण कबूतरी देवी की शैली अन्य गायिकाओं से अलग थी। वे मूल रुप से सीमान्त जनपद पिथोरागढ के मूनाकोट ब्लाक के क्वीतड़ गांव की निवासी थीं, जहां तक पहुंचने के लिये आज भी अड़किनी से 6 कि०मी० पैदल चलना पड़ता है।
विवाह के बाद पति ने पहचानी प्रतिभा-
1959 में 14 वर्ष की आयु में कबूतरी देवी का विवाह क्वीतड़ गांवए जिला पिथौरागढ़ के लोक गायक वादक दीवानी राम के साथ हुआ। विवाह के बाद इनके पति ने इनकी प्रतिभा को पहचाना और आकाशवाणी और स्थानीय मेलों में गाने के लिये प्रेरित किया। आज पनि जौं. जौंए भोल पनि जौं गीत से राष्ट्रीय.अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान पाने वालीं उत्तराखंड की मशहूर लोकगायिका कबूतरी देवी के इस गीत को दुनिया भर में फैले उत्तराखंड के प्रवासियों के अलावा नेपाल में भी खूब प्यार मिला। इस गीत में कुछ शब्द नेपाल से भी आए हैं और इस लिह कबूतरी ने अपने लोकगीतों में उत्तराखंड की प्राकृतिक दृश्यावलियों को तो बखूबी पेश किया। कबूतरी देवी संस्कृतिकर्मी आकाशवाणी के लिये गाने वाली पहली महिला थीं। उन्होंने पर्वतीय लोक संगीत को अंतरराष्ट्रीय मंच दिलाया।
आकाशवाणी के लिए गाए 100 से अधिक गीत-
कबूतरी देवी ने आकाशवाणी के लिए करीब 100 से अधिक गीत गाए है। कबूतरी देवी को जीवन के लगभग 20 साल अभावों में बिताने के बाद 2002 से उनकी प्रतिभा को उचित सम्मान मिलना शुरू हुआ। इसके बाद उन्हें कई सम्मानों ने नवाजा गया। साथ ही उत्तराखंड के संस्कृति विभाग ने उन्हें पेंशन देने का भी फैसला किया। कबूतरी देवी ने सत्तर के दशक में उन्होंने रेडियो जगत में अपने लोकगीतों को नई पहचान दिलाई।