16 जून: पृथ्वी पर गंगा मां के अवतरण का पर्व है गंगा दशहरा, आइए जानें पूजा- विधि, स्नान‌ का महत्व व गंगा दशहरा से जुड़ी पौराणिक कथा

आज 16 जून है। आज गंगा दशहरा है। आज गंगा दशहरा है। हिंदू दर्म में गंगा दशहरा का पावन पर्व बेहद धूमधाम के साथ मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, इस दिन मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। इस बार गंगा दशहरा आज 16 जून, रविवार को है।

स्नान का खास महत्व

गंगा दशहरा के अवसर पर मां गंगा, भगवान शिव और श्रीहरि विष्णु की पूजा करने की परंपरा है। ऐसा करने से तीनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन गंगा में स्नान करने से सारे पाप मिट जाते हैं, जीवन का उद्धार हो जाता है, मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त होता है। आज गुरुवार को आप भगवान विष्णु और देव गुरु बृहस्पति की पूजा करते हैं, तो विवाह का योग बनता है, दांपत्य जीवन खुशहाल रहता है। इस दिन दोनों को पीले रंग की मिठाई या फिर गुड़ और चने की दाल का भोग लगाना चाहिए। इनकी कृपा से गुरु ग्रह भी मजबूत होते हैं, जिससे कार्य में सफलता मिलती है, यश एवं कीर्ति में वृद्धि होती है।

जानें पूजा- विधि

स्नान करने के बाद मां गंगा या उनकी मूर्ति को 10 प्रकार के फूल, फल, अक्षत्, धूप, दीप, गंध आदि अर्पित करें। इस​ दिन पूजन सामग्री भी 10 की संख्या में ही रखते हैं। इस दौरान नीचे दिए गए गंगा पूजन मंत्र का उच्चारण करते रहें। फिर मां गंगा की आरती करें।

जाने शुभ मुहूर्त

ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 16 जून को रात 02 बजकर 32 मिनट से शुरू होगी और दशमी तिथि का समापन 17 जून को सुबह 04 बजकर 34 मिनट पर होगा। साथ ही इस दिन पूजन का समय सुबह 7 बजकर 08 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 37 मिनट तक रहेगा। वहीं स्नान दान का समय रविवार, 16 जून को सुबह 04 बजकर 03 मिनट से लेकर 04 बजकर 43 मिनट तक रहेगा।

जानें ये पौराणिक कथा

पौराणिक कथानुसार, प्राचीन काल में भागीरथ नामक राजा अयोध्या में निवास करते थे । उन्हें भगवान श्रीराम का पूर्वज माना जाता है। एक बार राजा भागीरथ को अपने पूर्वजों की तर्पण करने के लिए गंगाजल की आवश्यकता हुई। उस समय मां गंगा सिर्फ स्वर्ग में ही बहती थी। तब मां गंगा को धरती पर लाने के लिए राजा भागीरथ ने कई वर्षों तक कठोर तपस्या की। लेकिन फिर भी उन्हें सफलता नहीं मिली। चिंतित हुए राजा भागीरथ तपस्या के लिए हिमालय पर चले गए और वहां जाकर वह फिर से कठोर तप में लीन हो गए। उन की कठोर तपस्या को देख मां गंगा बेहद प्रसन्न हुईं और उन्हें आशीर्वाद देने के लिए भागीरथ के सामने प्रकट हो गईं। मां गंगा को अपने समक्ष देखकर राजा भागीरथ बहुत प्रसन्न हुए। फिर, उन्होंने मां गंगा से धरती पर आने का आग्रह किया।यह सुनकर मां गंगा ने भागीरथ के आग्रह को स्वीकार कर लिया। लेकिन, मां गंगा का वेग बहुत ज्यादा था। यदि वह धरती पर आती तो पूरी धरती तबाह हो जाती। इस बात से राजा भागीरथ बहुत परेशान थे। उनके इस परेशानी का हल सिर्फ महादेव यानी भगवान शिव के पास ही था। इसका पता चलते ही राजा भागीरथ ने भगवान शिव की तपस्या करनी शुरू कर दी। इस प्रकार राजा भागीरथ ने एक साल तक भगवान शिव की कठोर तपस्या की। कभी वह पैर के अंगूठे पर खड़े होकर तपस्या करते थे, तो कभी उपवास रख कर। राजा भागीरथ की इस कठोर तप को देख भगवान शिव बेहद प्रसन्न हुए और उनके आग्रह को स्वीकार कर लिया। इसके बाद ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से मां गंगा की धारा प्रवाहित की ओर भगवान शिव ने मां गंगा को अपनी जटाओं में बांध लिया।इस तरह लगभग 32 दिनों तक मां गंगा शिवजी की जटाओं में बहती रही। फिर, ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को भगवान शिव ने अपनी एक जटा खोली और गंगा माता धरती पर अवतरित हुईं। उधर, राजा भगीरथ ने गंगा मां को धरती पर आने के लिए हिमालय के दुर्गम पहाड़ियों के बीच से रास्ता बनाया। इस प्रकार जब मां गंगा पहाड़ से मैदानी इलाके में पहुंची, तब जाकर राजा भागीरथ ने गंगा के पवित्र जल से अपने पूर्वजों का तर्पण कर उन्हें मुक्ति दिलाई।गंगा जिस दिन धरती पर अवतरित हुई थी, वह जेष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि थी। इसलिए इसी दिन से हर साल देशभर में गंगा दशहरा मनाया जाने लगा।