दीपावली प्रकाश पर्व है। यानी अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व है। आदिकाल से चली आ रही सांस्कृतिक यात्रा का यह त्योहार सामाजिक जीवन की प्रसन्नता और मंगल का प्रतीक रहा है। इस कालखण्ड में मानव ने मिट्टी, पत्थर, काठ, मोम और धातुओं के स्वरूप में हजारों तरह के शिल्प में दीपक गढ़े हैं। प्रकाश में ही अन्य सभी प्रकार के प्रकाश समाविष्ट रहते हैं। इसीलिए दीवाली को प्रकाश का पर्व कहा जाता है। कहा भी गया है-
शुभं करोति कल्याण आरोग्यं सुख संपदम्।
शत्रु बुद्धि विनाशं च दीपज्योतिः नमोस्तुते।।
जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना अंधेरा धरा पर कहीं रह न जायें..गोपाल दाल नीरज की ये कविता पीएम मोदी की उस अपील पर सटीक बैठती है जब उन्होंने पिछले साल दीपावली ‘लोकल के लिए वोकल’ के साथ ही, लोकल फॉर दीपावली के मंत्र दिया। उन्होंने कहा कि हर एक व्यक्ति जब गर्व के साथ लोकल सामान खरीदेगा, नए-नए लोगों तक ये बात पहुंचाएगा कि हमारे लोकल प्रोडक्ट कितने अच्छे हैं। किस तरह हमारी पहचान हैं, तो ये बातें दूर-दूर तक जाएंगी।
ओडिशा: भुवनेश्वर में कोविड के कारण दीए का कारोबार प्रभावित हुआ।
एक व्यक्ति ने बताया, “पहले हम 50-60 हजार दीए बनाते थे लेकिन कोविड के बाद अब सिर्फ़ 10 हजार दीए ही बना रहे हैं।दूसरी तरफ़ लोग अब दीए खरीद भी नहीं रहे हैं। वे चाइनीज़ लाइटों को ऑनलाइन खरीद लेते हैं।
उत्तर प्रदेश: त्योहारों के आगमन पर बाज़ार में मिट्टी के उत्पादों की मांग बढ़ गई है।
अलीगढ़ में मिट्टी की चीज़ें बनाने वाली एक महिला ने बताया, “दिपावली के आने से पहले हमारा मट्टी का काम अच्छा चल रहा है। हम करवाचौथ के लिए मिट्टी के मटके भी बना रहे हैं। कोरोना की संख्या कम होने और दिवाली के आगमन पर गोरखपुर में टेराकोटा बनाने के कारीगरों को अच्छे व्यापार की उम्मीद है।
एक कारीगर ने बताया, “हमारा माल पूरे देश में जाता है पर दक्षिण भारत में ज़्यादा मांग है। कोरोना की वजह से व्यापार में कमी आई, लोकिन अब मांग ठीक है।”
यानी साफ है कि अगर आर्थिक तंगी की मार झेल रहे लघु और छोटे उद्योगों और मिट्टी के दीये खरीदनें पर न सिर्फ उन्हें फायदा होगा बल्कि उनके घर पर रखे दीयों को भी बाती और तेल मिल जाएगा और उनका घर भी जगमगा उठेगा।