अल्मोड़ा: विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा और आईपीएस नई दिल्ली की संयुक्त रूप से राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें खाद्य सुरक्षा की उभरती चुनौतियों के समाधान के लिए फाइटोपैथोलॉजी के वर्तमान रुझानों पर चर्चा की गई। विशेषज्ञों ने अपनी-अपनी राय और सुझाव रखें।
बीज सामग्री के वितरण, पौधों के रोगजनकों की सटीक पहचान और निदान के बारे में बताया
राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ मुख्य अतिथि फसल विज्ञान के उपमहानिदेशक डॉ. टीआर शर्मा ने किया। उन्होंने संगोष्ठी में बीज सामग्री के वितरण, पौधों के रोगजनकों की सटीक पहचान और निदान, उपज हानि का आकलन और पौध रोगों के प्रबंधन एवं मुख्य फसलों में आनुवंशिक प्रतिरोध के लिए घरेलू संगरोध की आवश्यकता पर जोर दिया। इस दौरान संगोष्ठी में विशेषज्ञों ने वीएल गेहूं 892 में नये पीला रतुआ रोगरोधी जीन वाईआर 66 व वाईआर 67 पहचान का भी उल्लेख किया।
खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पर्वतीय कृषि में स्थिति, चुनौतियों और नए आयामों के विषय में जानकारी दी
वीपीकेएएस के निदेशक डॉ. लक्ष्मी कांत आजीविका में सुधार और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पर्वतीय कृषि में स्थिति, चुनौतियों और नए आयामों के विषय में जानकारी दी। उन्होंने अल्मोड़ा और संस्थान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर भी प्रकाश डाला। ऑस्ट्रेलिया के सिडनी विवि के डॉ. हरबंस बारियान, सिमिट मैक्सिको के डॉ. पवन कुमार सिंह, कोंकुक विवि सियोल दक्षिण कोरिया विवि के डॉ. संतोष कुमार आदि ने भी व्याख्यान दिए।
कीटों और रोगों के महत्व, उनके कारण होने वाले आर्थिक नुकसान के बारे में बताया
संगोष्ठी के अंतिम सत्र में एएसआरबी, नई दिल्ली के सदस्य डॉ. पीके चक्रवर्ती ने कीटों और रोगों के महत्व, उनके कारण होने वाले आर्थिक नुकसान और विभिन्न कीटों से होने वाले सटीक आकलन की आवश्यकता पर बल दिया।
संगोष्ठी में ये रहे मौजूद
ऑनलाइन संगोष्ठी में डॉ. हरवंश बेरियाना, डॉ. प्रतिभा शर्मा, डॉ. पवन कुमार सिंह, डॉ. संतोष कुमार, डॉ. गौरव वर्मा, डॉ. आशीष कुमार सिंह, जीवन बी, अमित पाश्चापुर, डॉ. केके मिश्रा, डॉ. राजशेखर समेत कई विशेषज्ञ मौजूद रहे।